सम्यक दर्शन, ज्ञान और चरित्र को प्राप्त कर आत्मा का कल्याण करें

धर्मसभा में दुर्लभमति माताजी ने नीति पथ का मार्ग बताते हुए कहा
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अक्षरविश्व न्यूज. उज्जैन श्रद्धा में जान है तो भगवान हमसे दूर नहीं और अगर श्रद्धा ही हमारी डामाडोल है तो वह लकड़ी में लगी दिम्मक की तरह सड़ जायेगी। इसलिए हमारी श्रद्धा का जल सदैव देव शास्त्र गुरु के प्रति समर्पित होना चाहिए। हमें पंच इंद्रियों के विषयों को जहर मानकर छोड़ देना चाहिए। जिनवाणी मां हमको ऐसा प्रकाश दो कि हम स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और कर्ण इन पंच इंद्रियों के विषयो में न उलझ कर सम्यक दर्शन, ज्ञान, चरित्र को प्राप्त कर अपनी आत्मा का कल्याण करें।
धर्म सभा में आर्यिका श्री दुर्लभमति माताजी ने प्रश्नोत्तर रत्नमालिका ग्रंथ में नीति पथ का मार्ग बताते हुए यह बात कही। चार्तुमास सेवा समिति ने बताया कि दिगंबर जैन समाज के सबसे बड़े आचार्य श्री 108 विद्या सागरजी महाराज की शिष्या आर्यिका श्री 105 दुर्लभमति माता जी उज्जैन शहर के फ्रीगंज जिनालय में विराजमान हैं जिनके प्रवचन, धार्मिक क्लास और गुरु भक्ति से सैकड़ों साधर्मी जन लाभान्वित हो रहे है।
प्रतिदिन प्रवचन के पूर्व प्रात: 6 से 7 बजे तक जैन धर्म की आधार शिला विषय पर क्लास ली गई, युवा वर्ग को ध्यान करवाया गया, पूज्य गुरुदेव के चित्र का अनावरण और दीप प्रज्ज्वलित कर धर्म सभा को प्रारंभ किया जाता हैं। इसके बाद दोपहर को 3 बजे द्रव्य संग्रह की क्लास और संध्या को गुरु भक्ति का आयोजन किया जाता हैं।