2019 से अब तक खरीदे गए 22,217 चुनावी बॉन्ड

नई दिल्ली: स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) ने चुनावी बॉन्ड को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल किया है. यह हलफनामा SBI के चेयरमैन दिनेश कुमार खारा की तरफ से दाखिल किया गया है. इस हलफनामे में कहा गया है कि बैंक ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा 15 फरवरी को दिए गए आदेश का पालन कर दिया है. बता दें कि SBI ने सुप्रीम कोर्ट से यह जानकारी एक पेन ड्राइव में दो पीडीएफ फाइल बनाकर ये जानकारी साझा की है. दोनों ही पीडीएफ फाइलों का पासवर्ड सुरक्षित है.

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SBI के हलफनामे के अनुसार, एक अप्रैल 2019 से 15 फरवरी 2024 तक 22 हजार 217 इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे गए। इनमें से 22,030 बॉन्ड का पैसा राजनीतिक पार्टियों ने कैश करा लिया है। पार्टियों ने 15 दिन की वैलिडिटी के भीतर 187 बॉन्ड को कैश नहीं किया, उसकी रकम प्रधानमंत्री राहत कोष में ट्रांसफर कर दी गई।

आखिर चुनावी बॉन्ड होता क्या है?

चुनावी बॉन्ड एक वचन पत्र की तरह होता है जिसमें भुगतानकर्ता और प्राप्तकर्ता का विवरण होता है। चुनावी बॉन्ड में लेनदेन में पार्टियों के बारे में कोई जानकारी नहीं होती है। यही कारण है कि चुनावी बॉन्ड पूरी तरह से गोपनीय होता है। इसकी जानकारी केवल स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को ही होती है।

चुनावी बॉन्ड को कौन खरीद सकता है?

चुनावी बॉन्ड को भारत में कोई भी व्यक्तियों या कंपनी खरीद सकती है। भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की देशभर में फैली 29 शाखाओं को चुनावी बॉन्ड बेचने के लिए अधिकृत किया गया है। चुनावी बॉन्ड को प्रत्येक वर्ष जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में 10 दिनों के लिए बेचा जाता है। खरीदार की पहचान एसबीआई को छोड़कर सभी के लिए गुमनाम रहती है।

बॉन्ड विशेष रूप से राजनीतिक दलों को धन के योगदान के लिए जारी किए जाते हैं। ये बॉन्ड एसबीआई द्वारा जारी किए जाते हैं और कम से कम 1,000 रुपये में बेचे जाते हैं जबकि अधिकतम सीमा नहीं है। इस योजना के तहत कॉर्पोरेट और यहां तक कि विदेशी संस्थाओं द्वारा दिए गए दान पर 100% कर छूट मिलती है।

दान कैसे किया जाता है?

किसी राजनीतिक दल को दान देने के लिए केवाईसी-कम्प्लेंट अकाउंट के जरिए बॉन्ड खरीदे जा सकते हैं। राजनीतिक दलों को बॉन्ड प्राप्त होने के 15 दिन के भीतर उसे भुनाना होता है। कोई भी व्यक्ति या कंपनी कितने चुनावी बॉन्ड खरीद सकती है, इसकी संख्या तय नहीं है।

चुनावी बॉन्ड के जरिए कौन धन प्राप्त कर सकता है?

चुनावी बॉन्ड के जरिए धन प्राप्त करने वाले राजनीतिक दलों को लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत होना चाहिए। इसके साथ ही इन दलों को पिछले लोकसभा या विधानसभा चुनावों में डाले गए वोटों का कम से कम एक प्रतिशत वोट मिले हों।

चुनावी बॉन्ड के लिए नियम कानून क्या हैं?

जनवरी 2018 में केंद्र सरकार ने चुनावी बॉन्ड की योजना को अधिसूचित किया था। सरकार ने कहा था कि यह कदम देश में राजनीतिक फंडिंग की व्यवस्था को साफ करने के लिए उठाया गया है। पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2017-18 का केंद्रीय बजट पेश करते हुए कहा था कि आजादी के 70 साल बाद देश राजनीतिक दलों को वित्त पोषित करने का एक पारदर्शी तरीका विकसित नहीं कर पाया है जो स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव व्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है।

चुनावी बॉन्ड योजना को अदालत चुनौती क्यों मिली?

दो गैर-सरकारी संगठनों एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) और कॉमन कॉज और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने चुनावी बॉन्ड योजना को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की थीं। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि इस योजना से राजनीतिक फंडिंग में गैर-पारदर्शिता की अनुमति दी गई और बड़े पैमाने पर चुनावी भ्रष्टाचार को वैध बनाया गया।

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