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भाव के इंतजार में तेज ठंड-बारिश में तीन दिन से मंडी में डेरा डाले किसान

आज फसल बेचो, पैसा बाद में मिलेगा, खर्चा कैसे चलेगा…

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अक्षरविश्व न्यूज उज्जैन। कृषि उपज मंडी में किसान अपनी फसल सही दामों पर बेचने के लिए तीन-चार दिन से खुले आसमान के नीचे डेरा डाले हैं। तेज ठंड और बारिश के बीच ट्रॉली पर प्लास्टिक-कंबल में लिपटा किसान गले तक आक्रोश में भरा है। किसानों का कहना है आज फसल बेचेंगे तो रुपए चार-आठ दिन बाद खाते में आएंगे। सोयाबीन के दाम भी 3500 से 4000 रुपए के बीच मिल रहे हैं। व्यापारी आते हैं और नाममात्र की खरीदी कर चले जाते हैं। अच्छे भाव के इंतजार में कई किसान तीन-चार दिन से मंडी में बैठे हैं।
नकद पैसा चाहिए तो सस्ते दाम मिलेंगे

किसानों का कहना है मंडी में कई व्यापारी ऐसे हैं जो फसल का तुरंत नकद पैसा देने को तैयार है लेकिन उनका भाव ३५०० रुपए क्विंटल से भी कम है।

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खर्चे के लिए 100-50 किलो बेच रहे

मंडी में रुके किसान अपना खर्च निकालने के लिए 100-50 किलो सोयाबीन खुले में बेचने को मजबूर हैं।

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यह है आवक की स्थिति

कृषि उपज मंडी में गुरुवार को सोयाबीन की आवक 15,217 क्विंटल रही। सोयाबीन मंडी में बिकने आई, जिसमें किसानों को न्यूनतम भाव 2,000 रुपए और अधिकतम भाव 5,000 रुपए प्रति क्विंटल तक मिला। भावान्तर भुगतान योजना के तहत पंजीकृत 1,918 किसानों ने लगभग 37,915 किंवटल, जबकि अपंजीकृत 2,867 किसानों ने करीब 35,323 क्विंटल सोयाबीन की बिक्री की है।

फसल हमारी, तो भाव भी हमें तय करने दो

होशियारी गांव के इंदर सिंह गुर्जर तीन दिन से सोयाबीन बेचने के इंतजार में मंडी में बैठे हैं। इनका कहना है व्यापारी औना-पौना दाम लगा रहे हैं कैसे बेच दे कम दाम में। हमारी फसल है तो दाम भी हमारा ही मिलना चाहिए।

 रिंगोनिया के रामेश्वर ने बताया 10 बीघा में सोयाबीन पर 50 हजार खर्च किया। 10 क्विंटनल सोयाबीन आई है। 5 हजार का भाव मिले तो भी लागत नही निकलेगी। व्यापारी 35 सौ से ज्यादा का भाव दे ही नहीं रहे।

रिंगोनिया के ही कुलदीप आंजना ने बताया सोयाबीन की लागत 10 हजार प्रति बीघा आ रही है। उनके पास 40 क्विंटल सोयाबीन है। तीन दिन से मंडी में पड़े हैं। व्यापारी भाव ही नहीं दे रहे। व्यापारी कम दाम में फसल खरीदने के लिए मजबूर रहे हैं।

 खेड़ा चितावलिया के नागूसिंह खींची का कहना है १० हजार के भाव में ही सोयाबीन पूर रही है। यहां साढ़े तीन से चार हजार से ज्यादा भाव नहीं मिल रहे। भाड़े-खर्चे के लिए थोड़ा-थोड़ा सोयाबीन रोज बेच रहे हैं। तब जाकर खाना-पीना हो पा रहा है।

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