इधर जेईई एडवांस का रिजल्ट आया उधर एक ही टॉपर पर एलन और फिटजी के दावे शुरू
ALLEN- हमारे क्लासरूम प्रोग्राम से स्टूडेंट ने की है पढ़ाई
FIITJEE-ऑनलाइन क्लासरूम प्रोग्राम से मिली सफलता
आप तय करें टॉपर किसका फीटजी या एलन का….
अक्षरविश्व न्यूज. उज्जैन:क्या एक समय पर एक स्टूडेंट दो कोचिंग इंस्टिट्यूट से फुल टाइम पढाई कर सकता है, इसका जवाब या तो कोचिंग संस्थान दे सकते हैं या वह स्टूडेंट खुद जिसकी सफलता और नाम का उपयोग यह कोचिंग संस्थान कर रहे हैं।
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, जब किसी कॉम्पिटेटिव एग्जाम के टॉपर को अलग अलग कोचिंग सेंटर या इंस्टिट्यूट ने अपना विद्यार्थी बताया है। यह खेल सालों से चल रहा है।
जब भी इन परीक्षाओं में कोई छात्र टॉप रैंकिंग में आता है तो अपने कोचिंग का धंधा चलाने के लिए सभी कोचिंग उस टॉपर को अपना बताने लगती है और तमाम जगह उसके नाम और उपलब्धि का उपयोग कर प्रचार प्रसार करती है जिससे इन परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्र और उनके मां-बाप इनके झांसे में आए जाए और प्रभावित होकर वो बच्चे इन कोचिंग सेंटरों में अपना दाखिला करवा लें।
अधिकांश विद्यार्थियों का किसी भी कोचिंग संस्थान में प्रवेश लेने का जो निर्णय होता है वह मुख्य रूप से उस कोचिंग संस्थान द्वारा किये जा रहे प्रचार प्रसार या उस कोचिंग संस्थान से सफलता प्राप्त किये हुए बच्चों का रिफरेन्स होता है। कोचिंग संस्थान विगत वर्षों के परीक्षा परिणाम उनके द्वारा चयनित करवाए गए विद्यार्थियों के फोटो तथा प्रदेश स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर मेरिट में चयनित हुए विद्यार्थियों के फोटो का प्रकाशन करते हैं।
कोचिंग संस्थानों के इन दावों पर सवाल तब उठ ते हैं जब एक ही स्टूडेंट के फोटो एक से अधिक कोचिंग संस्थान वाले उपयोग कर अपने अपने दावे करते हैं। इन दावों में कितना दम है इसकी पड़ताल एक अभिभावक को अपने बच्चे के कोचिंग संस्थान चयन करने से पहले ठीक तरह से कर लेना चाहिए। ऐसा केवल प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कराने वाले कोचिंग क्लासेस ही नहीं अन्य शैक्षणिक प्रतिष्ठान भी प्रचार प्रसार के माध्यम से टॉपर्स का उपयोग अपनी उपलब्धि के तौैर पर करते है।
नंबर में सिलेक्शन की बजाय परसेंटेज को प्राथमिकता दें
शिक्षाविद् प्रो.नागेश शिन्दे के अनुसार एक बात का और बहुत विशेष तरीके से ध्यान रखना चाहिए वह यह है कि कोचिंग द्वारा दिखाए गए टोटल सिलेक्शन की संख्या को लेकर। किसी भी कोचिंग में एडमिशन लेने के पहले कभी भी नंबर ऑफ सिलेक्शन को आधार नहीं बनाना चाहिए।
कोचिंग के सक्सेस रेशों ध्यान में रखकर निर्णय लेना चाहिए। मान के चलो कि किसी कोचिंग संस्थान में कुल मिलाकर 1000 विद्यार्थी पढ़ते हैं और उनमें से किसी भी परीक्षा में 25 विद्यार्थियों का चयन होता है तो इस प्रकार से उस कोचिंग का सक्सेस रेशों या रिजल्ट 2.5 प्रतिशत रहा है ।
वहीं दूसरी ओर किसी कोचिंग में 500 विद्यार्थी पढ़ते हैं और 20 विद्यार्थियों का चयन होता है तो यहां पर उस कोचिंग का सक्सेस रेशों 4 प्रतिशत रहा। अत: आप जब भी किसी कोचिंग में एडमिशन लेने का सोचे तो टोटल नंबर ऑफ सिलेक्शन की बजाय सिलेक्शन परसेंटेज को प्राथमिकता दें।
कोचिंग क्लास के चयन में सक्सेस रेशों अर्थात रिजल्ट परसेंटेज को आधार बनाना चाहिए। सक्सेस रेशों यह रिजल्ट परसेंटेज को आधार बनाएंगे तो आपको उस कोचिंग की हकीकत पता चलेगी की उस कोचिंग में कितनी ज्यादा मात्रा में विद्यार्थी असफल हो रहे,जिसका उल्लेख कोई कोचिंग संस्थान अपनी प्रचार सामग्री में नहीं करता।
बिना अनुमति टॉपर विद्यार्थी के नाम और रैंक का उपयोग उचित नहीं
कानून के जानकारों के अनुसार बिना बच्चे या अभिभावक के अनुमति के बिना उस टॉपर विद्यार्थी का नाम और रैंक का इस्तेमाल करना कहीं से भी उचित नहीं है। कोई संस्थान इस तरह का कार्य करता है तो वह जालसाजी है।
वरिष्ठ अभिभाषक द्वारकाधीश चौधरी का कहना है कि मौजूदा समय में पैसा कमाने की होड़ में कई इंस्टिट्यूट ऐसे हैं जो बच्चों को अपने इंस्टिट्यूट की ओर आकर्षित करने के इरादे से इस तरह के कार्य करते हैं, जो बिल्कुल गलत है। बच्चे के जीवन के साथ खिलवाड़ करने का अधिकार किसी भी संस्था को नहीं है। सरकार को इसे अविलंब रोकना चाहिए।
लाभ लेकर कोचिंग की सहमति
जानकारों के अनुसार एक ही टॉपर के अलग-अलग कोचिंग का छात्र होने के दावों पर संचालकों का कहना होता है कि वह विद्यार्थी हमारी टेस्ट सीरीज का स्टूडेंट रहा है। वह हमारे डिस्टेंस लर्निंग प्रोग्राम का स्टूडेंट रहा है। वह हमारे स्पेशल बैच का स्टूडेंट रहा है। ऐसा करने के में टॉपर की अनुमति भी होती है।
इसके लिए स्टूडेंट को बड़ी राशि का भुगतान कर अनुबंध कर लिया जाता है। इन सबके बीच सवाल यही है कि एक छात्र 4 से 6 घंटे कैसे अलग अलग संस्थाओं में दे सकता है। इतना ही नहीं, कई स्टूडेंट्स रुपए की खातिर अपनी सफलता को प्रचार की वस्तु तो बना लेते हैं,लेकिन ऐसा कर वे आने वाली नई पीढ़ी को गलत मैसेज दे रहे हैं। इसमें ऐसे टॉपर भी शामिल है,जो आर्थिक लाभ लेकर कई कोचिंग को उनके संस्थान का स्टूडेंट होने की लिखित सहमति प्रदान कर देते है।