27 दिन बाद होलिका दहन, प्रदोष काल में पूजन करना सर्वश्रेष्ठ

खूबसूरत वातावरण में फूलों ने दिया ऋतु परिवर्तन का संकेत
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अक्षरविश्व न्यूज. उज्जैन बसंत आ चुका है और फाल्गुन माह की शुरुआत हो गई है। पलाश और अन्य फूलों के साथ आम के पेड़ों पर बौर ने ऋतु परिवर्तन का संकेत दें दिया है। ठीक 27 दिन बाद फाल्गुन पूर्णिमा पर 24 मार्च को होलिका का पूजन होगा। इस बार होलिका पूजन के समय प्रदोषकाल में पाताल वासिनी भद्रा रहेगी। टेसू (पलाश) के पेड़ों पर सुर्ख लाल फूल और आम के पेड़ पर बौर ने परिवर्तन का संकेत देते हैं। आमतौर पर फाल्गुन माह में पतझड़ प्रारंभ हो जाता है। अधिकांश पेड़ों के पत्ते झडऩे लगते है। अधिकतर वृक्ष सूखे दिखाई देते हैं। इसके विपरीत टेसू (पलाश) और आम के पेड़ों पर फूल आने लगते है। दोनों के फूलों से शहर के कुछ हिस्से गुलजार नजर आने लगे हैं। यह फूल ऋतु परिवर्तन का संकेत देते हैं।

होली पर पाताल वासिनी भद्रा
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार कुछ स्थानों पर भद्रा के बाद पूजन की मान्यता बताई गई है। ज्योतिष शास्त्र में भद्रावास का विशेष महत्व है। पाताल वासिनी भद्रा की साक्षी में पूजन करने से किसी प्रकार का कोई दोष नहीं लगता है। एक या दो साल के अंतराल में होलिका पूजन के दिन भद्रा का साया रहता है। आमतौर पर भद्रा का नाम आते ही लोग इसे अशुभ मानते हैं। शास्त्र के अनुसार भूलोक वासिनी भद्रा अशुभ होती है। अगर होलिका पूजन के समय भूलोक वासिनी भद्रा हो, तो उस समय को त्याग देना चाहिए। लेकिन स्वर्ग व पाताल वासिनी भद्रा का शुभ माना जाता है। इनके साए में पूजन करने से किसी प्रकार का दोष नहीं लगता है। पंचांग की गणना के अनुसार इस बार फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा 24 मार्च को रविवार के दिन आएगी।









