उज्जैन की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. सतिंदर कौर सलूजा का प्रेरक सफर

जीने की इच्छा ही जीवन की सबसे बड़ी शक्ति है…
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!
उज्जैन के चिकित्सा क्षेत्र में यदि किसी नाम को समर्पण, संवेदना और सेवा का पर्याय कहा जाए, तो वह नाम है डॉ. सतिंदर कौर सलूजा का। वे सिर्फ एक कुशल स्त्री रोग विशेषज्ञ नहीं, बल्कि तीन पीढिय़ों की भरोसेमंद फैमिली डॉक्टर, कैंसर विजेता, और महिलाओं में स्वास्थ्य जागरूकता फैलाने वाली एक सक्रिय समाजसेवी भी हैं। जयपुर में प्रारंभिक शिक्षा के बाद उन्होंने इंग्लैंड में चिकित्सकीय अनुभव प्राप्त किया। वहां की उन्नत चिकित्सा पद्धतियों को समझकर वे उज्जैन लौटीं, जहां उन्होंने न सिर्फ अपना क्लीनिक संभाला, बल्कि समाज के स्वास्थ्य स्तर को बेहतर बनाने में निर्णायक योगदान दिया।

कैंसर से जंग और फिर नई शुरुआत
जीवन की सबसे कठिन लड़ाइयों में से एक कैंसर से संघर्ष को उन्होंने साहस, और विश्वास के साथ जीता। बीमारी से उबरने के बाद उन्होंने अपनी जंग को केवल व्यक्तिगत विजय तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उन्होंने ‘जिजिविषा’ नामक संस्था की स्थापना की। यह संस्था महिलाओं को कैंसर के प्रति जागरूक करने, समय पर जांच करवाने, उपचार की जानकारी देने और मानसिक रूप से मजबूत बनाने का महत्वपूर्ण कार्य कर रही है। उनकी पहल ने कई महिलाओं को जीवन के प्रति नया दृष्टिकोण दिया है। डॉ. सतिंदर कौर सलूजा ने अक्षर विश्व से अपनी जीवन यात्रा, अनुभवों और संघर्षों को साझा किया। उनका सफर यह संदेश देता है कि-
‘कठिनाइयां हमें तोड़ती नहीं, बल्कि नए उद्देश्य के साथ आगे बढऩा सिखाती हैं।’
उज्जैन की अनगिनत महिलाओं और परिवारों के लिए डॉ. सलूजा सिर्फ डॉक्टर नहीं, बल्कि मार्गदर्शक हैं। उनकी चिकित्सा सेवा, सामाजिक योगदान और अदम्य साहस यह साबित करते हैं कि एक व्यक्ति का संकल्प समाज में कितना बड़ा परिवर्तन ला सकता है।
डॉ. सतिंदर कौर सलूजा सिर्फ डॉक्टर नहीं, बल्कि एक संकल्प की प्रतिमूर्ति, एक कैंसर विजेता, और कई महिलाओं की प्रेरणा हैं। उनकी कहानी यह याद दिलाती है-
जीवन तब तक नहीं हारता जब
तक हम उसकी डोर नहीं छोड़ते।
डॉ. सलूजा का जीवन इस बात का जीवंत उदाहरण है कि जीने की इच्छा ही जीवन की सबसे बड़ी शक्ति है।
बचपन कहां बीता और डॉक्टर बनने की प्रेरणा कैसे मिली?
जन्म और बचपन जयपुर में बीता। पिता राजस्थान सरकार में थे। बचपन से ही मैं डॉक्टर बनने का सपना देखती थी। खेल-खेल में भी मैं खुद को डॉक्टर बनाकर परिवार वालों का ‘इलाज’ करती थी। मेरे माता-पिता ने मेरे सपने को पूरा करने में हमेशा प्रेरणा और समर्थन दिया। डॉक्टर के समर्पण को देखकर मेरे भीतर भी सेवा की भावना जागी।
चिकित्सा सफर को आप किस नजर से देखती हैं?
जयपुर मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस और एमडी किया। विवाह हुआ और मैं इंग्लैंड चली गई। इंग्लैंड में जूनियर कंसल्टेंट के रूप में कार्यरत रही। लगभग दस वर्षों का वह अनुभव मेरे लिए शिक्षाप्रद और आत्मविश्वास बढ़ाने वाला रहा। लेकिन मन में हमेशा था कि भारत लौटकर लोगों की सेवा करनी है।
उज्जैन आने का निर्णय क्यों लिया?
इंग्लैंड जाने से पहले ही तय कर लिया था कि वापस भारत में मेडिकल सेवा देनी है। ससुर डॉ. जोधासिंह की इच्छा थी कि उज्जैन में आधुनिक नर्सिंग होम हो, क्योंकि यहां चिकित्सा सुविधाएं बहुत सीमित थीं। हमने उज्जैन में जमीन खरीदकर नर्सिंग होम शुरू किया।
आप कई परिवारों की फैमिली डॉक्टर बन गई हैं, यह अनुभव कैसा रहा?
यह मेरे लिए गर्व और संतोष की बात है कि 35 सालों में हमारे नर्सिंग होम से हजारों लोग जुड़े। कई परिवार ऐसे हैं जहां तीन-तीन पीढिय़ों ने हमारे यहां इलाज कराया। विशेषकर नायता पटेल समाज में लोगों ने हम पर बहुत भरोसा किया है। लोग अक्सर कहते हैं कि उन्हें हमारे यहां सिर्फ इलाज नहीं, बल्कि सही मार्गदर्शन भी मिलता है। शायद यही भरोसा हमारे साथ लंबे समय से अब तक बना हुआ है।
आपको कैंसर कब हुआ और आपने इसे कैसे हराया?
2016 में नियमित जांच के दौरान मुझे कैंसर का पता चला। मेरी मां को भी कैंसर था, इसलिए मैं अपनी जांच कराती रहती थी। इसी वजह से बीमारी समय रहते पकड़ में आ गई। मैंने दिल्ली और इंदौर में उपचार कराया। कैंसर खतरनाक इसलिए है क्योंकि ज्यादातर लोगों को इसका पता देर से चलता है। महिलाएं अपने परिवार की चिंता करती हैं लेकिन खुद की अनदेखी कर देती हैं। मैं सौभाग्यशाली थी कि समय पर जांच करा लेती थी और बीमारी शुरुआती अवस्था में पकड़ में आई तो इससे लड़ाई आसान हो गई। दिल्ली, इंदौर के इलाज से जल्दी ही काबू पा लिया गया।
कैंसर होने बाद ‘जिजिविषा’ की नींव क्यों और कैसे रखी गई?
कैंसर से गुजरते हुए मुझे महसूस हुआ कि महिलाओं को जागरूक करना बेहद जरूरी है। महिलाएं अगर शुरुआती लक्षण समझ लें और समय पर जांच कराएं तो इस बीमारी से बच सकती हैं। इसी सोच ने ‘जिजिविषा’ को जन्म दिया। ‘जिजिविषा’ का अर्थ ही है— जीने की इच्छा। हम इस अभियान के माध्यम से महिलाओं को कैंसर के शुरुआती लक्षणों, जांच, इलाज और काउंसिलिंग के बारे में जागरूक करते हैं।
जिजिविषा के माध्यम से आप किस तरह काम कर रही हैं?
हम हर महीने नि:शुल्क कैंप लगाते हैं। महिलाओं की जांच की जाती है, लक्षण दिखने पर आगे के परीक्षण होते हैं। यदि किसी महिला में कैंसर डायग्नोस होता है तो उसकी आर्थिक स्थिति के अनुसार इलाज की व्यवस्था की जाती है। सक्षम होने पर उचित अस्पतालों की सलाह दी जाती है, और यदि वह संसाधनहीन हों तो सरकारी योजनाओं के माध्यम से उपचार कराया जाता है। काउंसिलिंग हमारा महत्वपूर्ण हिस्सा है, क्योंकि कैंसर से ज्यादा डर लोगों के मन में बसा भ्रम पैदा करता है।
उज्जैन की मेडिकल सुविधाओं में आपने क्या बदलाव देखा?
जब हम इंग्लैंड से आए थे तब यहां कई सुविधाओं की कमी थी। कई मशीनें हमें खुद इंग्लैंड से लानी पड़ीं। लेकिन अब उज्जैन काफी आगे बढ़ चुका है। आज लगभग हर सुविधा यहां उपलब्ध है। अब लोग सिर्फ सेकेंड ओपिनियन के लिए इंदौर जाते हैं।
फिर भी लोग उज्जैन की तुलना में इंदौर को बेहतर क्यों मानते हैं?
यह मानसिकता है। उज्जैन वाले इंदौर जाते हैं, इंदौर वाले मुंबई, और मुंबई वाले विदेश। हमारे डॉक्टर किसी भी बड़े शहर के डॉक्टर से कम सक्षम नहीं हैं। बस हमें खुद पर भरोसा बढ़ाने की जरूरत है।
व्यस्त पेशे में होते हुए समाजसेवा के लिए समय कैसे निकाल लेती हैं?
डॉक्टर का पेशा व्यस्त होता है, लेकिन जहां चाह वहां राह। मैं समय का मैनेजमेंट बेहतर तरीके से करती हूं। ऑपरेशन जल्दी कर लेती हूं और अब बच्चे भी बड़े हो गए हैं, इसलिए अधिक समय समाजसेवा को दे पाती हूं। मेरी फैमिली हमेशा मेरा साथ देती है और कभी डिस्टर्ब नहीं होती।
आपकी आगे की योजनाएं क्या हैं?
जिजिविषा के माध्यम से और अधिक महिलाओं तक पहुंचना। मेरा लक्ष्य है कि कोई भी महिला सिर्फ जागरूकता की कमी के कारण कैंसर से अपनी जान न गंवाए। महिला स्वस्थ होगी तो परिवार स्वस्थ रहेगा।—इसी सोच के साथ हम काम कर रहे हैं।
अब तक का सफर कैसा रहा?
मैं अपने सफर से बहुत संतुष्ट हूं। उज्जैन में जो सम्मान मिला, वह शायद कहीं नहीं मिलता। हम यहां पैसा कमाने नहीं आए थे। पैसा तो इंग्लैंड में ज्यादा था। हम यहां सेवा करने आए थे, और उज्जैन के लोगों ने इस सफल बनाया।
आपकी सफलता के पीछे किसका सबसे बड़ा योगदान है?
मेरे पति आर.एस. सलूजा का। उन्होंने हमेशा मेरा साथ दिया, कभी किसी बात के लिए रोका नहीं। वह मेरे लिए शक्ति और प्रेरणा रहे हैं।
उज्जैन क्या मायने रखता है?
उज्जैन में जो अपनापन, सम्मान और प्रेम मिला है, वह अनोखा है। इंग्लैंड में भी वह भाव नहीं मिला जो उज्जैन ने दिया। मेरे पिता चाहते थे कि मैं जयपुर में रहूं, ससुर चाहते थे उज्जैन में और मैंने उज्जैन को इसलिए चुना—क्योंकि यहां मेरी जरूरत ज्यादा थी।











