नगर निगम और पीएचई का ध्यान सिर्फ पानी बदलने में, दूषित पानी का स्थायी समाधान नहीं
अक्षरविश्व न्यूज. उज्जैन नगर निगम और पीएचई के अफसर शिप्रा नदी में कान्ह का दूषित व केमिकल युक्त पानी स्टोर होने के बाद पर्व और त्योहार के समय नर्मदा का पानी शिप्रा नदी में छोड़कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर रहे हैं, जबकि सच्चाई यह है कि कान्ह के दूषित पानी को शिप्रा नदी में मिलने से रोकने का स्थायी समाधान निकालने पर किसी का ध्यान नहीं है जिसका परिणाम यह कि नदी में रहने वाली हजारों मछलियों के साथ अन्य जलीय जीव दूषित पानी में मर रहे हैं।
इस वर्ष 10 से अधिक बार लिया नर्मदा का पानी
शिप्रा में त्रिवेणी से कालियादेह महल तक बारिश का पानी ही स्टोर था, इसके बाद कान्ह का दूषित पानी शिप्रा नदी में मिलना शुरू हुआ। मकर संक्रांति पर स्नान के लिए नर्मदा का साफ पानी शिप्रा में स्टोर किया। कुछ दिनों बाद मिट्टी का स्टॉपडेम टूटने के बाद शिप्रा नदी में फिर से कान्ह का पानी मिल गया। जनवरी से लेकर मई माह तक पीएचई द्वारा 10 से अधिक बार नर्मदा का लाखों लीटर पानी शिप्रा नदी में छोड़ा जा चुका है।
गऊघाट पाले पर ऐसा लगा मछली मार्केट लगा हो
सुबह निगम के सफाईकर्मी गऊघाट पाले पर नदी किनारे मृत मछलियों को जालियों से नदी के बाहर निकालकर घाट पर ढेर लगा रहे थे। गऊघाट पाले के एक ओर कान्ह का दूषित और केमिकल युक्त पानी स्टोर है। पीएचई अफसरों का दावा है कि गऊघाट पर नर्मदा का साफ पानी स्टोर है। हालांकि अफसरों के दावे कितने सही और कितने गलत हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि चार दिनों पहले तक त्रिवेणी स्थित हरियाखेड़ी के पास नागफनी से नर्मदा का साफ पानी शिप्रा नदी में छोड़ा जा रहा था। यह पानी त्रिवेणी और गऊघाट पाले तक स्टोर होने की बात कही जा रही थी, जबकि दूसरी तरफ त्रिवेणी से ओवरफ्लो होकर कान्ह का दूषित पानी लगातार शिप्रा नदी में मिलना जारी है।
आयुक्त से संपर्क नहीं हुआ
शिप्रा की साफ-सफाई और प्रदूषित पानी में मछलियों के मरने के संबंध में नगर निगम आयुक्त आशीष पाठक से संपर्क किया गया, लेकिन उनके मीटिंग में व्यस्त होने के कारण चर्चा नहीं हो सकी। बता दें कि शिप्रा की साफ-सफाई और स्वच्छ पानी के लिए प्रदेश सरकार और स्थानीय प्रशासन द्वारा लगातार प्रयास किए जा रहे हैं।
सफाईकर्मी बोले- देखकर दुख होता है, नौकरी कर रहे हैं
नगर निगम और पीएचई अफसरों की अनदेखी व अदूरदर्शिता के कारण अकाल काल का ग्रास बन रहीं हजारों मछलियों और अन्य जलीय जीवों की लाशें नदी से निकाल रहे सफाईकर्मियों ने कहा कि पहली बार इतनी बड़ी संख्या में मछलियों को मरते देखा है। इनको नदी से निकालते समय बहुत दुख होता है, लेकिन अफसरों के निर्देशों का पालन करना मजबूरी है हम तो सिर्फ नौकरी कर रहे हैं। अब इन मछलियों को कचरा कलेक्शन सेंटर पर पहुंचाएंगे।
पानी बदलने में लाखों का खर्चा
शिप्रा नदी में कान्ह का दूषित व केमिकल युक्त पानी मिलना वर्षों से जारी है, शासन द्वारा इस पानी को शिप्रा नदी में मिलने से रोकने के लिये कान्ह डायवर्शन और त्रिवेणी स्थित कान्ह नदी पर मिट्टी का स्टापडेम बनाया गया लेकिन उक्त दोनों ही योजनाएं कारगर साबित नहीं हुई जिसका परिणाम यह है कि शिप्रा नदी में आज तक कान्ह का दूषित पानी लगातार मिल रहा है, इसके विपरीत नगर निगम व पीएचई अफसर शिप्रा नदी में कान्ह का पानी स्टोर होने के बाद पर्व और त्योहारों पर इस पानी को स्टॉपडेम के गेट खोलकर आगे बहाने के बाद लाखों रुपये खर्च कर पाइप लाइन के माध्यम से नर्मदा का साफ पानी नदी में स्टोर करते हैं, लेकिन समस्या यह कि साफ पानी अधिक दिनों तक नदी में स्टोर नहीं रह पाता।