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महाकाल मंदिर में सबसे पहले हुआ होलिका दहन

शहर में उड़ा रंग-गुलाल

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उज्जैन। महाकालेश्वर मंदिर में सबसे पहले होलिका का पूजन कर दहन किया जाता है। यह परंपरा आज भी कायम है। महाकाल मंदिर में रविवार को होली दहन हुआ .इसके बाद ही अन्य स्थानों पर होली जलाई गई। होलिका दहन के बाद मंदिर परिसर में ही प्राकृति गुलाल व फूलों के माध्यम से दर्शनार्थियों द्वारा होली खेली गई।

 

श्री महाकालेश्वर मंदिर में होलिका दहन का रविवार को संध्या आरती के पश्चात हुआ। अगले दिन सोमवार को धुलेंडी का पर्व मनाया गया। मंदिर परिसर में श्री ओंकारेश्वर मंदिर के सामने परिसर में होलिका दहन मंदिर के पुजारी-पुरोहितों द्वारा विधिवत पूजन-अर्चन एवं गुलाल अर्पित कर किया गया। परिसर में ही भक्तों द्वारा फूल और गुलाल से होली खेली गई .

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महाकाल मंदिर में रविवार से होली उत्सव की शुरुआत हुई। संध्या आरती में पुजारी भगवान महाकाल को गुलाल अर्पित की। इसके बाद मंदिर परिसर में ओंकारेश्वर मंदिर के सामने पुजारी वैदिक मंत्रोच्चार के साथ पूजन कर होलिका का दहन किया। 25 मार्च को तड़के 4 बजे भस्म आरती में राजाधिराज भक्तों के साथ हर्बल गुलाल से होली खेली।

रात्रि 11.13 के बाद करें होलिका पूजन

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रविवार को प्रात: 9.57 से भद्रा प्रारंभ हो गई, जो रात्रि 11.13 तक रहेगी। भद्रा के बाद होलिका का पूजन एवं दहन करना संपूर्ण विश्व के लिए शुभ रहेगा। रात्रि 11.13 के बाद ही होलिका का पूजन करें। पं. चंदन श्यामनारायण व्यास ने बताया कि फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा होलिका उत्सव मनाया जाता है। फाल्गुन पूर्णिमा आज 24 मार्च रविवार को है। पूर्णिमा तिथि रविवार प्रात: 9.57 से प्रारंभ होकर 25 मार्च सोमवार को दोपहर 12.30 तक रहेगी। 25 मार्च को धुलेंडी रहेगी। होलिका का पूजन रविवार रात्रि में करना शुभ है।

सिंहपुरी में कंडों की होली का दहन होगा

फाल्गुन पूर्णिमा पर रविवार को सिंहपुरी में गाय के गोबर से बने पांच हजार कंडों से इकोफ्रेंडली होली बनाई जाएगी। शाम को प्रदोषकाल में चार वेद के ब्राह्मणों द्वारा चतुर्वेद ऋचाओं से होलिका का पूजन किया जाएगा। इसके बाद महिलाएं पूजन करेंगी। सिंहपुरी स्थित आताल पाताल भैरव के प्रांगण में अर्वाचीन संस्कृति का पालन करते हुए होली का निर्माण किया जाता है। इसके कंडे भी जब पंक्तिबद्ध होते हैं तो वेद मंत्र की ऋचाएं गाई जाती है।

सिंहपुरी में यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी निर्वाह की जा रही है। होली में लकड़ी का बिल्कुल भी उपयोग नहीं होता है। होली के डांडे की बजाय मध्य में प्रहलाद स्वरूप में ध्वज लगाया जाता है। यह भी एक चमत्कार है कि होलिका दहन करने पर ध्वज जलता नहीं है, बाद में ध्वज के कपड़े को श्रद्धालु आपस में बांट लेते हैं, इसके ताबीज बनाए जाते हैं। मान्यता है बच्चों को होली के ध्वज का ताबीज बांधने से नजर नहीं लगती है।

महाकाल मंदिर में मंगलवार से बदल जाएगा आरती का समय

महाकाल मंदिर में चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से परंपरानुसार महाकालेश्वर भगवान की आरती के समय में परिवर्तन हो जाएगा। यह क्रम चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से आश्विन पूर्णिमा तक रहेगा। भगवान महाकालेश्वर को शीतल जल से स्नान का क्रम भी शुरू हो जाएगा। मंगलवार से भगवान महाकाल की प्रतिदिन होने वाली आरती का समय भी बदल जाएगा।

भगवान महाकाल को शीतल जल से स्नान कराया जाएगा। मंगलवार से भगवान महाकाल की प्रथम भस्मआरती प्रात: 4 से 6 बजे तक, द्वितीय दद्योदक आरती प्रात: 7 से 7.45 बजे तक, तृतीय भोग आरती प्रात:10 से 10.45 बजे तक,चतुर्थ संध्याकालीन पूजन सायं 5 से 5. 45 बजे तक, पंचम संध्या आरती शाम 7 से 7.45 बजे तक, शयन आरती रात्रि 10.30 से 11 बजे तक होगी। भस्म आरती व शयन आरती अपने निर्धारित समय पर ही होगी।

रंगपंचमी पर टेसू के फूलों से बने रंग से होली खेलेंगे भगवान

मालवा की लोक परंपरा में होली के बाद रंगपंचमी पर गीले रंग से होली खेलने का प्रचलन है। महाकाल मंदिर में भी रंगपंचमी हर्षोल्लास से मनाई जाती है। इस बार 30 मार्च को रंगपंचमी मनाई जाएगी। इस दिन भगवान महाकाल टेसू के फूलों से बने सुगंधित प्राकृतिक रंग से होली खेलते हैं। मंदिर के पुजारी एक दिन पहले टेसू के फूलों से प्राकृतिक रंग तैयार करते हैं। भस्मआरती में पूरे समय भगवान पर रंग धारा अर्पित की जाती है।

ध्वज चल समारोह:रंगपंचमी पर शाम 7 बजे बैंड-बाजे व आकर्षक विद्युत रोशनी से झिलमिलाती झांकियों के साथ महाकालेश्वर ध्वज चल समारोह निकलेगा। मंदिर के पुजारी, पुरोहित परिवार द्वारा निकाले जाने वाले ध्वज चल समारोह में शाम 7 बजे भगवान वीरभद्र व ध्वज का पूजन किया जाएगा। इसके बाद चल समारोह की शुरुआत होगी।

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