फिल्म ‘जर्सी’ एक ऐसे लड़के की कहानी दिखाती है, जो अपने करियर के बीच में ही क्रिकेट खेलना छोड़ देता है। फिर 36 साल की उम्र में कई मुश्किलों के साथ कमबैक करता है। तो चलिए इसकी पूरी कहानी आपको बताते हैं।
‘सौ में से कोई एक ऐसा होता है, जिसे कामयाबी मिलती है, लेकिन अर्जुन की कहानी उन 99 लोगों की है जो नाकामयाब होकर भी कभी कामयाबी की उम्मीद नहीं छोड़ते हैं।’ इस लाइन में अर्जुन तलवार (Shahid Kapoor) का पूरा परिचय दिया जाता है। फिल्म की कहानी क्रिकेटर अर्जुन तलवार की जिंदगी के ईर्द-गिर्द घूमती है।
वो एक ऐसा पति है, जो अपनी पत्नी विद्या तलवार (Mrunal Thakur) की नजरों में नकारा बन चुका है। एक पिता है, जो बेटे किट्टू (Ronit Kamra) की नजरों में हमेशा हीरो बने रहना चाहता है। अर्जुन पूर्व रणजी क्रिकेट खिलाड़ी हुआ करता था, जिसने अपने करियर के शीर्ष पर खेलना छोड़कर सरकारी नौकरी करनी शुरू कर दी थी। लेकिन झूठे केस में फंसकर उसके हाथ से सरकारी नौकरी भी चली जाती है।
अब अर्जुन घर पर हारकर बैठ जाता है, जिसकी जिंदगी का कोई खास मकसद नहीं है। उसकी जिंदगी में मोड़ तब आता है, जब उसका बेटा 500 रुपये की जर्सी बर्थडे पर मांग लेता है। अर्जुन कई कोशिशों के बाद भी जर्सी के लिए पैसे नहीं जुटा पाता और अपनी ही नजरों में गिर जाता है। अपने बेटे की नजरों में इज्जत बनाए रखने के लिए अर्जुन 36 साल की उम्र में कमबैक करने की ठान लेता है।
इसमें उसका फुल सपोर्ट करते हैं कोच (Pankaj Kapur)। अब अर्जुन इस कोशिश में कितना कामयाब होता है? उसने 10 साल पहले क्रिकेट खेलना क्यों छोड़ दिया? इन सभी सवालों के जवाब आपको फिल्म देखने के बाद मिलेंगे।
फिल्म ‘जर्सी’ में शाहिद कपूर अपने रोल में खूब जमे हैं। क्रिकेटर के रोल में शाहिद ने हताशा, गुस्सा, दुख, खुशी हर इमोशन्स को बखूबी निभाया है। लेकिन कुछ सीन्स में उनके कबीर सिंह वाले लुक की याद आ जाती है।
वहीं विद्या के किरदार में मृणाल ठाकुर ने अच्छा काम किया है। उनके किरदार को भी काफी अच्छे से लिखा गया है। रोनित कामरा ने भी अपने रोल में अच्छी एक्टिंग की है।
बाप-बेटे के बीच की केमेस्ट्री और पर्दे पर अच्छी लगेगी। कोच के किरदार में पंकज कपूर काफी सहज लगे हैं। उन्होंने न सिर्फ कोच का रोल निभाया बल्कि पिता के रूप में भी दिखे। शाहिद और पंकज कपूर के कई सीन्स बेहद बेहतरीन है।
निर्देशन
गौतम तिन्ननुरी ने ही नानी-स्टारर जर्सी (तेलुगु) बनाई थी और अब रिमेक फिल्म का जिम्मा भी उन्होंने अपने कंधे पर उठाया। निर्देशक ने कहानी को बखूबी पर्दे पर उतारा है। उन्होंने क्रिकेट के रोमांच के साथ इमोशन्स को अच्छे से दिखाया है। गौतम ने हार-जीत के अलावा रिश्तों का ताना-बाना भी अच्छे से बुना है। उन्होंने पति-पत्नी, बाप-बेटे और खिलाड़ी-कोच के रिश्ते को फिल्म में दिखाया है।
रह गई कुछ कमियां
निर्देशक गौतम ने फिल्म की कहानी को अच्छे से दिखाया है लेकिन भावनात्मक स्तर पर ये उतना कनेक्ट नहीं कर पाती है। 174 मिनट की फिल्म शुरुआत में धीमी रफ्तार में रहती है। कुल मिलाकर फिल्म फर्स्ट हाफ में काफी स्लो चलती है। ये सेकेंड हाफ में स्पीड में आती है।
क्यों देखें फिल्म
अगर आप शाहिद कपूर के फैन है तो उनकी बेहतरीन एक्टिंग के लिए फिल्म देख सकते हैं। इसके अलावा फिल्म में बाप-बेटे के रिश्ते और क्रिकेट के रोमांच के लिए फिल्म देखी जा सकती है। फिल्म के गाने सीन्स के साथ ही चलते रहते हैं। सचेत-परंपरा के संगीत की बात करें तो मेहरम और बलाकी दोनों ही गाने अच्छे हैं।