इंदौर के भिखारियों का उज्जैन में तांडव भोजन सामग्री नहीं, इन्हें पैसे चाहिए

बच्चों को गोद में लेकर बोतल टच कर देती हैं महिलाएं, एक या दो का सिक्का दें तो भन्ना जाते हैं
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अक्षरविश्व न्यूज:उज्जैन। इंदौर कलेक्टर आशीष सिंह ने इंदौर को भिक्षुक मुक्त शहर बनाने के लिए कमर कस रखी है। वहां जबरदस्त कार्रवाई हो रही है। इंदौर से भाग कर आए भिखारियों ने उज्जैन को अपनी भिक्षुक राजधानी बना लिया है। यहां भिखारियों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। कार्रवाई न होने से भिखारी भी तांडव मचाने लगे हैं। लोगों से बेअदबी से पेश आना, सिक्का फेंक देना, दूध की बोतल टच कर देना आम बात हो गई है।

भिखारियों की बढ़ती संख्या शहरवासियों के लिए परेशानी का सबब बनती जा रही है। इंदौर में हो रही सख्त कार्रवाई का परिणाम यह है कि वहां के भिखारियों ने उज्जैन में अपना डेरा जमा लिया है। यह कौन हैं वाकई में भिखारी हैं या संदिग्ध हैं इनकी खैर खबर कौन लेगा? कुछ तो चेहरे, हावभाव और पहनावे से लगता है कि ये भिखारी हैं। कुछ ऐसे हैं जिन्हें भिखारी नहीं कहा जा सकता। इनकी भाषा और बातचीत की शैली अपने प्रदेश की नहीं लगती है।
पैरों में लोट लगाते हैं लेकर ही दम लेते हैं
इन भिखारियों ने अपने बच्चों को तैयार कर रखा है। वे राहगिरों के पैरो में गिर जाते हैं। कई बात तो यह देखा गया है कि वे पैर पकड़ लेते हैं, छोड़ते भी नहीं। जिद्दी बच्चे आखिर कुछ न कुछ लेकर ही दम लेते हैं। आप दान के रूप में कुछ राशि दे देते हैं फिर क्या होता है, यह आप नहीं जानते। इन्हीं भिखारियों में कुछ मुस्टंडे अस्पताल के पीछे और पे्रम छाया से लगे फुटपाथ पर बैठ कर चीलम सुलगाते हैं, दम लगाते हैं।
चामुंडा माता मंदिर चौराहा पर
भिखारियों की हरकत और अदा देखना है तो कुछ देर के लिए चामुंंडा मंदिर चौराहे पर खड़े हो जाइए। गोद में बच्चा लेकर घूम रही महिलाएं वाहर के पास आ जाती हैं। शीशा बंद है तो खटखटाएंगी। यदि लाल बत्ती होने पर बाईक या दोपहिया वाहन पर चालक सवार हैं तो दूध की बोतल टच कर देंगी। ऐ बाबू, तेरे घर में भी बच्चे हैं, दे दे, बच्चा भूखा है। आठ-दस लोगों से दूध के पैसे मिल जाने पर भी बच्चे की भूख शांत नहीं होती। कई बार तो नहा-धोकर निकले लोग मंदिर जाते हैं और ये महिलाएं जब बोतल टच कर देती हैं तब उनका झल्लाना देखने लायक रहता है।
इन भिखारियों को नकदी न दें
इंदौर प्रशासन जब वहां संख्ती बरत सकता है तो उज्जैन प्रशासन को भी हरकत में आना चाहिए। प्रशासन अपना काम करेगा, लेकिन हम भी अपनी जिम्मेदारी निभाएं। दान के नाम पर किसी को नकदी न दें। हम समझते हैं कि दान करने से परमात्मा प्रसन्न होगा। ऐसे भिखारियों को दान देने से उनकी आदत बिगड़ेगी। भावुक न हों। वृद्धों को भोजन दें।
रामघाट पर लड़ चुके हैं भिखारी
पिछले दिनों रामघाट पर दो भिखारी समूहों में भीख मांगने की बात पर विवाद हो गया। बरसों से यहां भीख मांग रहे भिखारियों का नयों में झगड़ा हुआ। उज्जैनी भिखारियों का कहना था कि यह बाहरी हैं, यहां डेरा जमाए हुए हैं। यह भिखारी नहीं हैं। कोई और हैं। कोई और हैं, यह बात गौर करने वाली थी। मौके पर मौजूद देवास के सुरेंद्र सिंह गौतम और इंदौर के डॉ. सुरेंद्र सिंह चौहान ने बीच-बचाव कर दोनों समूहों को अलग किया। सिद्धवट पर भी भिखारियों में लड़ाई हो चुकी है।
एक-दो के सिक्के फेंक देते हैं
भिखारियों का आलम यह है कि वे एक या दो रुपए के सिक्के नहीं लेते। यदि किसी ने दे दिए तो वह झल्ला कर फेंक देते हैं। ऊपर से डॉयलाग अलग मारते हैं। कहते हैं, रख ले, तेरे काम आएंगे। पांच का सिक्का भी मुंह सिकोड़ कर स्वीकार करते हैं।








