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सिविल हास्पिटल की ओपीडी में रैबीज के इंजेक्शन उपलब्ध नहीं

खबर सोशल मीडिया से

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रात में भी सेवा उपलब्ध नहीं होती, 700 रुपए देकर प्रायवेट अस्पताल में करवाना पड़ा उपचार

 

अक्षरविश्व न्यूज : उज्जैन। स्ट्रीट डॉग के काटने से घायल लोगों को शासन द्वारा सिविल अस्पताल में रैबिज के इंजेक्शन लगाये जाते हैं, यह इंजेक्शन ओपीडी खुलने के समय ही लगते हैं, यदि किसी व्यक्ति को रात में स्ट्रीट डॉग काट ले तो उसे अगले दिन ओपीडी खुलने का इंतजार करना होगा। वहीं रैबिज के इंजेक्शन खत्म होने पर भी लोगों को मजबूरी में प्रायवेट अस्पतालों में उपचार कराना पड़ रहा है। इसी समस्या से सामना कर चुके नंदकिशोर शर्मा ने सोशल मीडिया के फेसबुक ग्रुप पर अपना अनुभव साझा किया जिस पर लोगों ने कुछ इस प्रकार अपनी प्रतिक्रिया दी…

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यह पोस्ट डाली थी पीडि़त ने

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अभी कल रात्रि को 8 बजे अपने निवास के पास की गली में पैदल भ्रमण कर घर की ओर आ रहा था कि अचानक पीछे से एक कुत्ते ने झपट कर पैरों की पिंडली में काट लिया। गहरा जख्म हो गया। कुत्ता तुरंत भाग गया। रक्त बहने लगा। जैसे तैसे लडख़ड़ाते घर आया। बालक को लेकर सिविल हॉस्पिटल पहुंचा ओपीडी में तीन डाक्टर बैठे थे।

उन्होंने कहा कि अभी इंजेक्शन उपलब्ध नहीं हैं। कल आकर पास के चरक अस्पताल में लगवा लेना। हमने कहा बहुत तेज पेन हो रहा हैं। परंतु उन्होंने कोई इलाज नहीं किया हमने निवेदन किया कि बाजार का इंजेक्शन ही लिख दो। परंतु उन्होंने इंकार कर दिया। विवश होकर आखिर निजी अस्पताल में जाकर सात सौ रुपए खर्च हुए इंजेक्शन लगवाया अब अलग-अलग दिनांक पर पांच इंजेक्शन लगेंगे।

शासकीय अस्पताल में डाक्टर का रवैया रुचिकर नहीं लगा। जबकि वहां कुत्ता काटने के नि:शुल्क इंजेक्शन लगते है। परंतु यह सेवा रात्रि को उपलब्ध नहीं हैं। क्या अस्पताल प्रशासन या जिम्मेदार इस और ध्यान देंगे इस समय हमारे नगर उज्जैन में कुत्तों का प्रकोप बढ़ा हुआ है। बच्चे, वृद्ध आदि कोई भी सुरक्षित नहीं हैं। -नंदकिशोर शर्मा

लोगों नेे जताई नाराजगी

उज्जैन के सभी सरकारी अस्पतालों में यही हाल है, जिम्मेदार डॉ. अपनी सही भूमिका नहीं निभाते हैं। मजबूरी में मरीज को प्रायवेट अस्पताल का रुख करना पड़ता है। प्रमोद पंवार

अरे भाई सब हमारे महिदपुर के सिविल हॉस्पिटल मे तो टिटनेस का इजेक्शन नहीं हैं। कल गया था। नर्स ने कहा मार्किट से जा कर ले आओ। और कहने के लिए करोड़ो का हॉस्पिटल बनाया हैं। नरेंद्र राठौर

सरकारी टीके, दवाईयां बेच दी जाती हैं। ईश्वर मालवीय

अगर आपको ये इंजेक्शन दे देंगे तो मेडिकल के साइड रूम में इनके क्लिनिक कैसे चलेंगे। एन. पटेल

सरकारी डाक्टर को तो बस तनखा चाहिये, बाकी ईलाज तो ये लोग अपने प्रायवेट क्लिनिक या हॉस्पीटल में ही करते हैं। यहां तो ये सिर्फ थोड़ी देर के लिए हाजरी लगाने के लिए ही आते है सरकार को सभी सरकारी डाक्टर को प्रायवेट क्लिनिक या हॉस्पीटल खोलने पर प्रतिबंध लगाना चाहिए ताकी ये अपनी पूरी सेवा सरकारी हॉस्पीटल में दे सकें वर्ना पहले नौकरी से इस्तीफा दे फिर निजी हॉस्पिटल या क्लिनिक खोले। जीतेन्द्र परमार

सरकारी अस्पताल के डाक्टरों के इस प्रकार के रवेयै के कारण ही नीजी अस्पताल को बढ़ावा मिल रहा है। अकरम मिर्जा

उज्जैन शहर में कुत्तों का आतंक इतना बढ़ गया है कि वह दिन दूर नहीं जब कुत्ते बाहर घूमेंगे और इंसान घर में बंद रहेगा। बेचारे कुत्ते भी स्वच्छ अभियान के अंतर्गत भूखे घूम रहे हैं खाने को सड़कों पर गलियों में कुछ भी नहीं मिल रहा है भूखे रहते हैं दिनभर तो इंसान को देखते ही बेजुबान खाना मांग नहीं सकते हैं भोकते हैं और फिर काट लेते हैं प्रशासन का ध्यान ही नहीं जा रहा है जब किसी वीआईपी को काटेंगे कुत्ते, तभी प्रशासन का ध्यान जायेगा। अगर उन भूखे कुत्तों को खाने के लिए जैसे गौशाला बनी है अगर वैसे ही डॉग हाउस बना दिए जाए तो एक भी कुत्ता किसी को नहीं काटेगा। शासन ने सभी के लिए योजनाएं बनाई हैं तो फिर इनके साथ अन्याय क्यों। आरती उदय

आवारा कुत्तों के स्थान पर पर अब निराश्रित कुत्तों की भी शासन व्यवस्था करेगा, चाहे मनुष्य बिना शासकीय सुविधा के कष्ट उठाते रहे, डॉक्टर को पहले ईश्वर का प्रतीक या स्वरूप मानते थे, अब तो कुछ लिख नहीं सकते हैं, उनके बारे में। भाई साहब अच्छा हुआ कि आप प्राइवेट में चले गए। डॉक्टर व शासन दोनों की मिली भगत है हमेशा ही आम जनता को परेशानी का सामना करना पड़ता है। आपके शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना बाबा महाकाल से करते हैं। प्रशासन व शासन से कोई उम्मीद नहीं है। ए. के. निगम

आपकी बात सही है सरकारी हॉस्पिटल चाहे पांच मंजिल बन जाते हैं लेकिन छोटी सुविधा भी यह नहीं दे पाते हैं कई बार दवाई नहीं होती है कई बार डॉक्टर नहीं होते हैं कई बार इमरजेंसी में देखने वाला कोई नहीं होता है और अगर ज्यादा बोलो तो बोलतेे हैं नेतागिरी मत करो पुलिस का डर बताएंगे और आपको मजबूरन प्राइवेट हॉस्पिटल की तरफ जाना ही पड़ता है इसलिए इस ग्रुप के माध्यम से प्रशासन को अवगत करवाना चाहिए कि सरकारी अस्पताल में थोड़ी सुविधाएं बढ़ाई जाएं और लोगों को सेवा दी जाए 70 या 80 हजार लेकर अपने बच्चों को विदेश पढ़ाने से अच्छा है गरीबों का भी भला किया जाए क्योंकि कोई देखे ना देखें ऊपर वाला बाबा महाकाल सब देख रहा है। भारत तिवारी

एक आदमी को कुत्ते ने काट लिया वो डॉक्टर के पास गया साहब मुझे कुत्ते ने काट लिया है देख लो डॉक्टर साहब बोले तुम्हे पता नहीं मेरा टाइम 8 से 2 का है, मरीज बोला मुझे पता है साहब पर कुत्ते को पता नहीं। सुभाष व्यास

शाम 6.00 बजे बाद इंजेक्शन नहीं लगता है सिविल अस्पताल में कुत्ते के काटने पर मजबूर होकर प्राइवेट अस्पतालों में जाना पड़ता है पीडि़तों को। रोहित शर्मा

सुझाव पर विचार करेंगे
रात के समय रैबिज के इंजेक्शन मरीजों को लगाए जा सकें इस पर विचार किया जा सकता है, अस्पताल में इंजेक्शन उपलब्ध हैं। फिलहाल ओपीडी शिफ्टिंग का कार्य चल रहा है इस कारण मरीजों को कुछ परेशानी आ सकती है।
-डॉ. अजय दिवाकर, सिविल सर्जन

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