श्री कृष्ण की शिक्षा स्थली उज्जयिनी में आज भी सांदीपनि आश्रम श्रद्धा और प्रेरणा का केंद्र है। लेकिन शायद श्रीकृष्ण के द्वापर युग से प्रकाश चंद्र सेठी के सत्ता काल में रही अपेक्षाओं-आशाओं को पूरा करने वाला नेता पहली बार मध्यप्रदेश की सत्ता के सिंहासन पर बैठा है।
सीएम के रूप में मोहन यादव के कार्यकाल का एक वर्ष पूरा होने जा रहा है। इस अवधि में जिस तेजी से उज्जैन, इंदौर के अलावा सुदूर रीवा जैसे इलाकों के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य, उद्योग, परिवहन, पानी, बिजली और मकान की सुविधाओं का विकास और कल्याण के कार्यक्रम शुरू हुए हैं।
वह एक नया अध्याय है। इसे मेरा अपने गृह नगर के प्रति या पूर्वाग्रह मत समझिए, क्योंकि उज्जैन से दिल्ली आए मुझे लगभग 53 वर्ष हो गए हैं। भले ही मेरे इस दौरान मध्यप्रदेश के नेताओं मुख्यमंत्रियों से संपर्क रहा हो, लेकिन मोहन यादव से न अधिक मुलाकातें हुईं और न ही नजदीकी संबंध रहे हैं। इसलिए तटस्थ भाव से कह सकता हूं कि मोहन यादव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के विश्वास को बहुत तेज गति से विकास योजनाओं के माध्यम से पूरा कर रहे हैं।
उनकी सफलता का बड़ा कारण यह है कि वह सामान्य परिवार, सामाजिक सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से आते हैं। मोहनजी को भाजपा के लंबे शासन काल के दौरान जनता को दी गई सुविधाओं और लाभ का अनुभव मिल रहा है। शिवराजसिंह के शिक्षा मंत्री रहते हुए उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नई शिक्षा नीति को तेजी से लागू किया। शिक्षा राज्य का विषय है और यदि मोदीजी मध्यप्रदेश को शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्रों में विस्तार के लिए विशेष सहायता दें तो मोहन यादव आने वाले दशकों में देश का ही नहीं विश्व का एक महत्वपूर्ण श्रेष्ठ शैक्षणिक प्रदेश और स्वास्थ्य रक्षा कॉरिडोर बना सकते हैं।
आखिर यह इलाका सांदीपनि, कालिदास, विक्रमादित्य, राजा भोज, महारानी अहिल्याबाई होल्कर, बालकृष्ण शर्मा नवीन, माखनलाल चतुर्वेदी, द्वारका प्रसाद मिश्र, शंकर दयाल शर्मा, सेठ गोविंददास, डॉक्टर शिवमंगलसिंह सुमन, श्रीकृष्ण सरल जैसी विभूतियों का है। मध्यप्रदेश के मेडिकल कॉलेजों से निकले डॉक्टर देश-विदेश में चिकित्सा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देते रहे हैं। पर्यटन के लिए मध्यप्रदेश के पास उज्जैन, ओंकारेश्वर से लेकर नर्मदा-चंबल के सुंदर किनारे, वन अभयारण्य और भेड़ाघाट, पचमढ़ी जैसे केंद्र हैं।
इसे कुछ हद तक दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि द्वारका प्रसाद मिश्र, गोविंद नारायण सिंह, श्यामाचरण शुक्ल, प्रकाशचंद्र सेठी, अर्जुन सिंह, मोतीलाल वोरा, दिग्विजयसिंह, कमलनाथ जैसे कांग्रेस के अनुभवी और शिक्षित मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल में राजनीतिक खींचातानी और अस्थिरता के कारण प्रदेश के विकास की गति धीमी रही। भाजपाराज में मध्यप्रदेश में विकास और कल्याण की योजनाएं मोदी सरकार के सहयोग से अच्छी तरह क्रियान्वित हो रही हैं।
इस दृष्टि से मोहन यादव को भी पार्टी, केंद्रीय नेतृत्व और स्थानीय संस्थाओं, पंचायत, नगर पालिका-निगमों और जनता के सहयोग मिलता रहा तो प्रदेश औद्योगिक विकास एवं रोजगार उपलब्ध कराने में असाधारण सफलता हासिल कर सकता है । सीएम बनने के बाद यादव ने उज्जैन के बाद प्रदेश के अन्य प्रमुख शहरों के साथ मुंबई, कोलकाता में उद्यमी निवेश सम्मलेन किए हैं। इतना नहीं विदेशी निवेश लाने के लिए उन्होंने ब्रिटेन और जर्मनी में भी बैठकें कीं।
विभिन्न क्षेत्रों में पूंजी निवेश के समझौते होने से एक नया विश्वास पैदा हुआ है। हां अपेक्षाओं का पहाड़ बड़ा है और विकसित भारत का 2047 तक लक्ष्य हासिल करने की प्रतियोगिता भी कम नहीं है। पहले वर्ष में बनती सुनहरी तस्वीर मोहन यादव के नेतृत्व में मध्यप्रदेश को सही अर्थों में गौरवशाली प्रदेश बना सकती है। हमारी शुभकामनाएं।
आलोक मेहता
पद्मश्री, संपादक लेखक