Wednesday, November 29, 2023
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Satyaprem Ki Katha Review

समीर विद्वांस का नाम भले फिल्म ‘सत्यप्रेम की कथा’ के जरिये ही हिंदी सिनेमा के दर्शकों ने पहली बार सुना हो लेकिन मराठी सिनेमा पर नजर रखने वाले उनकी कलाकारी के बारे में खूब जानते हैं।

उनकी बनाई फिल्म ‘आनंदी गोपाल’ जो देश की पहली महिला फिजीशियन की सच्ची कहानी कहती है, देश दुनिया में खूब सराही जा चुकी है। इसके पहले वह ‘मला काहिच प्रॉब्लन नाही’ और ‘डबल सीट’ से भी अपनी तरफ फिल्म जगत का ध्यान खींच चुके थे, लेकिन ‘आनंदी गोपाल’ ने उनका आत्मविश्वास न सिर्फ बढ़ाया बल्कि हिंदी फिल्म जगत के नामी फिल्म निर्माताओं में से एक साजिद नाडियाडवाला के दरवाजे भी उनके लिए खुल गए। ‘सत्यनारायण की कथा’ नाम से इस फिल्म का एलान साजिद ने तब किया था जब कार्तिक को फिल्म ‘दोस्ताना 2’ से निकाले जाने की खबर खूब सुर्खियां बना रही थी।

फिल्म ‘सत्यप्रेम की कथा’ में सत्यप्रेम हीरो का नाम है और कथा नाम है इसकी नायिका का। यानी कि लैला मजनू, हीर रांझा, शीरी फरहाद, सपना वासू और राज सिमरन जैसा कुछ कुछ बनाने की कोशिश यहां की जा रही है। निर्देशक समीर विद्वांस के सुख दुख के साथी रहे हैं, उनके लेखक करण श्रीकांत शर्मा। दोनों ने मराठी सिनेमा से हिंदी सिनेमा तक आने की ये लंबी छलांग साथ साथ लगाई है।

गैरहिंदी भाषी निर्देशकों का हिंदी फिल्में बनाना कोई नई बात नहीं हैं। हां, मनमोहन देसाई के जमाने में के के शुक्ला और कादर खान जैसे लोग कहानी का कनेक्शन गंगा जमुनी संस्कृति से जोड़े रखने में बड़ी भूमिका निभाते थे। समीर और करण के सामने फिल्म ‘सत्यप्रेम की कथा’ में सबसे बड़ी चुनौती इसे उन इलाकों से जोड़ पाने की रही है जहां कहते हैं कि हिंदी फिल्मों का कारोबार मुंबई के बाद सबसे ज्यादा होता है। और, अपनी इस पहली हिंदी कोशिश में दोनों सफल भी होते दिख रहे हैं।

कहानी बहुत चौंकाने वाली नहीं है ‘सत्यप्रेम की कथा’ की, ये बात दर्शक फिल्म का ट्रेलर और इसके गाने देखकर समझ ही चुके हैं। करण जौहर ऐसी कहानियों के मास्टर रहे हैं। उनकी अगली फिल्म ‘रॉकी और रानी की प्रेम कहानी’ का टीजर भी ‘सत्यप्रेम की कथा’ जैसा ही है। यहां सत्यप्रेम के सामने अपनी कथा को पाने, परिवार को मनाने और उसे खोने का डर मिटाने की चिंताएं हैं। वह अलमस्त युवा है।

जमाने की परवाह उसे नहीं है। और, कहानी की दिक्कत भी यहां सबसे ज्यादा यही है कि इसका जमाने से वाकई कोई लेना देना नहीं है। फिल्म ‘सत्यप्रेम की कथा’ उस काल्पनिक लोक की कथा है जो वास्तविकता की देहरी लांघते ही थक जाती है।

चुनौती फिर कार्तिक आर्यन के सामने आती है कि वह अपनी कॉमिक इमेज से निकलकर वरुण धवन की छाया से दूर हो पाएंगे या फिर उनकी जैसी मुस्कुराहट, उनकी ही जैसी छिछोरी हरकतों वाले किरदार करके उन युवाओं में घुसपैठ करने की कोशिश करते रहेंगे, जिनको ‘अवतार 2’ और ‘फास्ट 10’ जैसी फिल्मों में बेहतर आनंद मिलने लगा है। ‘बदरीनाथ की दुल्हनिया’ के वरुण की याद बार बार दिलाने वाले कार्तिक से बेहतरी की अभी तमाम गुंजाइश हैं और उम्मीद है कि वे ‘फ्रेडी’ जैसी फिल्मों से अपना नाम अभी आगे और चमकाएंगे।

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