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गर्मी से बचाने के लिए बाबा महाकाल के शीश पर बांधी गई गलंतिका

उज्‍जैन ज्योतिर्लिंग महाकाल मंदिर में वैशाख कृष्ण प्रतिपदा पर गलंतिका बांधी गई। मिट्टी से निर्मित मटकियों से भगवान के शीश पर सतत शीतल जलधारा प्रवाहित की जा रही है। ज्योतिर्लिंग की परंपरा अनुसार वैशाख कृष्ण प्रतिपदा से ज्येष्ठ पूर्णिमा तक दो माह प्रतिदिन सुबह 6 बजे से शाम 4 बजे तक गलंतिका बांधी जाती है।

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बाबा महाकाल के मस्तक पर जो जल की गलंतिका बांधी जाती है। इनमें प्रतीकात्मक रूप से गंगा, यमुना, सरस्वती, शिप्रा, कावेरी, सरयू, नर्मदा, सिंधु, गंडक के नाम अंकित किए जाते हैं। भोलेनाथ पर सतत जलधारा का ये क्रम रोजाना भस्मारती से लेकर संध्या आरती तक रहेगा। शहर के अन्य मंदिर मंगलनाथ और अंगारेश्वर में भी इस तरह की गलंतिका बांधने का नियम है। कई शिव मंदिरों में ये नियम निभाया जाता है।

 

धार्मिक मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन के समय भगवान शिव ने गरल (विष) पान किया था। गरल अग्नि शमन करने के लिए ही आदिदेव सदाशिव का जलाभिषेक किया जाता है। गर्मी के दिनों में विष की उष्णता (गर्मी) और भी बढ़ जाती है। इसलिए वैशाख व ज्येष्ठ मास में भगवान को शीतलता प्रदान करने के लिए मिट्टी के कलश से ठंडे पानी की जलधारा प्रवाहित की जाती है। जिसको गलंतिका कहते हैं।

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धर्म-सिंन्‍धु पुस्‍तक के अनुसार ”अत्र मासे प्रपादान देवे गलंतिका बंधन व्‍यजनच्‍छत्रोपान वंदनादिदान महाफलम” अर्थात इस मास में प्रपाका दान (जलदान) पशु-पक्षी,देवताओं,ऋषियों,मनुष्यों को जलसेवा करनी चाहिए, देव के गलंतिका(कंठी) बांधना और बीजना(बोवाई) छत्र,चन्‍दन, धान्‍य आदि के दान का महान फल होता है। वैशाख एवं ज्‍येष्‍ठ माह तपन के माह होते है। भगवान शिव के रूद्र एवं नीलकंठ स्‍वरूप को देखते हुए सतत शीतल जल के माध्‍यम से जलधारा प्रवाहित करने से भगवान शिव प्रसन्‍न एवं तृप्‍त होते है तथा प्रजा एवं राष्‍ट्र को भी सुख समृद्धि प्रदान करते है।गलंतिका केवल श्री महाकालेश्‍वर मंदिर में ही नही अपितु 84 महादेव एवं संपूर्ण भारतवर्ष में भी लगायी जाती है।

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