देश में शिक्षा का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है, शहर से लेकर गांव तक हर जगह प्रतिवर्ष हजारों नए स्कूल-कॉलेज खुल रहे हैं। जिनमें पढ़ाने के लिए प्रतिवर्ष शिक्षकों की नई भर्तियां भी होती हैं, जाहिर है कि इस क्षेत्र में न कभी मंदी आई है और न ही आएगी। हालांकि कोरोना के कारण यह क्षेत्र अभी जरूर प्रभावित हुआ है। शिक्षक कैसे बना जाए और उसके क्या फायदे व नुकसान है, आइए जानते हैं पूरी जानकारी
बैचलर ऑफ एजुकेशन (Bachelor of Education)
शिक्षा के क्षेत्र में आने के लिए युवाओं के बीच यह कोर्स काफी लोकप्रिय है। पहले यह कोर्स एक साल का था, जिसे 2015 से बढ़ाकर दो साल का कर दिया गया है। इस कोर्स को करने के लिए एंट्रेंस एग्जाम देना होता है। एग्जाम देने के लिए ग्रेजुएट होना जरूरी है। इस कोर्स को करने के बाद उम्मीदवार प्राइमरी, अपर प्राइमरी और हाई स्कूल में पढ़ाने के लिए एलिजिबल हो जाते हैं। कई प्राइवेट कॉलेज एंट्रेंस टेस्ट के बिना भी सीधे एडमिशन तो देते हैं मगर उन कॉलेजों से बीएड करना ज्यादा लाभदायक है जो एंट्रेंस प्रोसेस के तहत दाखिला देते हैं। हर साल बीएड कोर्स के लिए एंट्रेंस टेस्ट कंडक्ट किया जाता है, राज्यस्तरीय परीक्षाओं के अलावा इग्नू, काशी विद्यापीठ, बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी, दिल्ली यूनिवर्सिटी के बीएड पाठ्यक्रमों को काफी बेहतर माना जाता है।
बेसिक ट्रेनिंग सर्टिफिकेट
बीटीसी सिर्फ उत्तर प्रदेश के उम्मीदवारों के लिए है। यह भी दो साल का कोर्स है, इस कोर्स को करने के लिए एंट्रेंस एग्जाम देना होता है, इस परीक्षा के लिए जिले स्तर पर काउंसलिंग कराई जाती है, परीक्षा देने के लिए उम्मीदवारों का ग्रेजुएट होना जरूरी है, साथ ही इसके लिए आयु सीमा 18 से 30 साल रखी गई है। इस कोर्स को करने के बाद उम्मीदवार प्राइमरी और अपर प्राइमरी लेवल के टीचर बनने के योग्य हो जाते हैं।
नर्सरी टीचर ट्रेनिंग (Nursery Teacher Training)
यह कोर्स महानगरों में ज्यादा प्रचलित है, यह दो साल का होता है, इस कोर्स में एडमिशन 12वीं के अंकों के आधार पर या कई जगह प्रवेश परीक्षा के आधार पर दिया जाता है। प्रवेश परीक्षा में करंट अफेयर्स, जनरल स्टडी, हिन्दी, रीजनिंग, टीचिंग एप्टीट्यूड और अंग्रेजी से सवाल पूछे जाते हैं। इस कोर्स को करने के बाद उम्मीदवार प्राइमरी टीचर बनने के लिए एलिजिबिल हो जाते हैं।
बैचलर इन फिजिकल एजुकेशन (Bachelor in Physical Education)
फिजिकल एजुकेशन में रोजगार के काफी नए अवसर शिक्षकों को मिल रहे हैं। निजी और सरकारी स्कूल बड़े पैमाने पर फिजिकल टीचरों की बहाली कर रहे हैं, इस पाठ्यक्रम में शिक्षक बनने के लिए दो तरह के कोर्स कराए जाते हैं, जिन उम्मीदवारों ने ग्रेजुएट लेवल पर फिजिकल एजुकेशन एक सब्जेक्ट के रूप में पढ़ा है वे एक साल वाला बीपीएड कोर्स कर सकते हैं। वहीं, जिन्होंने 12वीं में फिजिकल एजुकेशन पढ़ी हो वे तीन साल वाला स्नातक कोर्स कर सकते हैं। इसके एंट्रेंस टेस्ट में फिजिकल फिटनेस टेस्ट के साथ-साथ लिखित परीक्षा भी देनी होती है। एंट्रेंस टेस्ट में पास होने के बाद इंटरव्यू भी क्वालिफाई करना जरूरी है।
जूनियर टीचर ट्रेनिंग (Junior Teacher Training)
जूनियर टीचर ट्रेनिंग कोर्स के लिए न्यूतम योग्यता 12वीं है और इस कोर्स में दाखिला कहीं मेरिट के आधार पर तो कहीं प्रवेश परीक्षा के आधार पर होता है। इस कोर्स को करने के बाद उम्मीदवार प्राइमरी टीचर बनने के लिए एलिजिबिल हो जाते हैं।
डिप्लोमा इन एजुकेशन (Diploma in Education)
डिप्लोमा इन एजुकेशन का यह दो वर्षीय कोर्स बिहार और मध्य प्रदेश में प्राइमरी शिक्षक बनने के लिए कराया जाता है। इस कोर्स में 12वीं के अंकों के आधार पर एडमिशन होता है।
शिक्षक बनने के फायदे
- शिक्षक को समाज में बहुत ही सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है।
- शिक्षक बनने का एक फायदा यह है कि उन्हें एक साल में बहुत सारी छुट्टियां मिलती हैं। जैसे कि गर्मियों की छुट्टी, सर्दी की छुट्टी और बाकी सभी सरकारी छुट्टियां।
- शिक्षक अपने काम से कभी नहीं उबता है। वह अपने बच्चों की तरह ही उन्हें भी पढ़ाता है और अच्छे संस्कार भी देता है।
- शिक्षकों को बच्चों को पढ़ाने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती है क्योंकि हर साल उन्हें एक ही विषय पढ़ाना होता है जिससे कि उन्हें वह याद हो जाता है और आसानी से पढ़ा पाते हैं।
- शिक्षक को अपनी कक्षा में ज्यादा जिम्मेदारी नहीं उठानी पड़ती है। न तो कोई पैसे का कोई लेनदेन करना पड़ता है और न ही रोज नए लोगों का स्वागत करना पड़ता है।
- इसमें किसी तरह की असुरक्षा का डर नहीं रहता है। यदि किसी कारणवश कक्षा में जल्दी नहीं भी पहुंच पाते है तो उससे भी कोई फर्क नहीं पड़ता और इनसे किसी के जानमाल तक को नुकसान नहीं पहुंचता है।
- बचपन में जब अपने शिक्षक से पढ़ते हैं तब उनके पढ़ाने के अधिकतर क्रियाकलाप हम जान जाते हैं और उस वजह से हमें पढ़ाने में भी आसानी होती है।
- शिक्षकों को एक दिन में केवल कुछ ही क्लास पढ़ाना पड़ता है। बाकी क्लास दूसरे शिक्षक पढ़ाते हैं।
- शिक्षक को शारीरिक मेहनत नहीं करनी पड़ती है। कक्षा या कमरे में बैठकर आराम से बच्चों को केवल पढ़ाना होता है।