मंछामन गणेश की प्राचीन बावड़ी इंतजार कर रही कलेक्टर का

जल संवर्धन अभियान में इसकी साफ-सफाई जरूरी है

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अक्षरविश्व न्यूज उज्जैन। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के निर्देश पर जल संवर्धन अभियान चलाया जा रहा है। जिला प्रशासन द्वारा अब तक कई बावड़ी और कुंओं की सफाई की जा चुकी है। कलेक्टर नीरज कुमार सिंह के नेतृत्व में पूरे जिले में यह अभियान चल रहा है। लोगों में इस अभियान को लेकर जागृति आई है। पहली बार ऐसा हो रहा है कि बड़े स्तर पर जिले की बावडिय़ों की सुध ली गई है। शहर में एक ऐतिहासिक बावड़ी है, जिसका स्कंद पुराण में उल्लेख है। बावड़ी कब बनी इसके बारे में कई जनश्रुतियां हैं। यहीं पर मंछामन गणेशजी का मंदिर भी है। यह बावड़ी भी कलेक्टर की प्रतीक्षा कर रही है। यहां आने वाले श्रद्धालु भी इंतजार कर रहे हैं कि अधिकारियों का दल यहां आए और बावड़ी की सफाई की जाए।

स्कंद पुराण में उल्लेख है
मंदिर के पुजारी आसुतोष शास्त्री के अनुसार ऐसा माना जाता है कि वनवास के दौरान भगवान श्रीराम, लक्ष्मण और सीताजी तीन दिन तक यहां रुके रहे। इसके बाद ही वे चिंतामण गणेश मंदिर पहुंचे। जहां प्यास लगने पर लक्ष्मणजी ने तीर चलाकर जलधारा उत्पन्न की। जो अब बावड़ी के रूप में हमारे सामने है। बावड़ी के बारे में उन्होंने बताया कि स्कंद पुराण के अवंतिका खंड में इसका उल्लेख मिलता है। उज्जैन के महाकाल और त्रिवेणी के मध्य दक्षिण कोण में इसे सूर्यकुंड भी कहा जाता है। इसके चारों तरफ शिवालय है।

विज्ञान पर आधारित है मंदिर

मंछामन गणेश का स्ट्रक्चर और मूर्ति की स्थापना से प्रतीत होता है कि यह अकेला ऐसा मंदिर है जो विज्ञान पर आधारित है। कुंड के भग्नावेश बताते है कि यहां भी प्रतिमाएं है वह १००० साल पुरानी होंगी। प्राचीन बावड़ी के बारे में पंडित शास्त्री ने बताया कि १९८० तक यह क्षेत्र के लोगों को पानी दे रही थी। कमजोर होने के कारण एक तरफ की दीवार गिर गई। इसके बाद किसी ने सुध नहीं ली। २००८ में एक बार पुन: इसके पानी का उपयोग किया गया। पुजारी ने बताया कि बावड़ी का पानी चर्मरोगियों के लिए कारगर साबित होता है। मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं का कहना है कि यह शहर की ऐतिहासिक धरोहर है। यदि इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो यह इसी तरह टूटती चली जाएगी। इस इलाके में कॉलोनियों का जाल फैलने से यह बावड़ी और मंदिर लगभग शहर के बीच आ गए है।

सूर्य की पहली किरण करती है अभिषेक

मंछामन गणेश एक ऐसा मंदिर है जहां सूर्य की पहली किरण भगवान का अभिषेक करती है। गऊघाट क्षेत्र में स्थित इस मंदिर में गणेशजी के साथ रिद्धि-सिद्धि विरााजित हैं। इसकी छत में गणेश यंत्र स्थापित है। इस वजह से यह सिद्ध विनायक भी है। यहां गणेश जी संबंधित सभी अनुष्ठान होते हैं। पुजारी शास्त्री के अनुसार गणेशजी की प्रतिमा परमारकालीन याने १००० साल पुरानी हैं। इसके गर्भघर के स्थापत्य कला मराठाकालीन मानी जाती है। सूर्योदय के समय सूर्य की किरणें सीधे प्रतिमा पर परावर्तित होती है। इसलिए यह माना जाता है कि यह मंदिर किसी समय कालगणना का केंद्र भी रहा होगा। इसी क्षेत्र में राजा जयसिंह ने वैधशाला का निर्माण किया था।

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