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मुख्यमंत्री तो उज्जैन का विकास चाहते हैं लेकिन…

मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही डॉ. मोहन यादव ने सबसे पहले अपने ही शहर को तरजीह दी है। वे चाहते हैं कि अपना शहर भी प्रशासनिक दृष्टि से भोपाल बने लेकिन यहां के कुछ अफसर इसके लिए तैयार नहीं हैं। इसकी बानगी उस समय देखने को मिली जब सीएम की प्रेस कॉन्फ्रेंस होने वाली थी, लेकिन प्रशासन इसके लिए तैयार ही नहीं था।

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सबसे बड़ी जिम्मेदारी सिंहस्थ मेला कार्यालय और नगर निगम की थी। सिंहस्थ मेला कार्यालय के सभागार में अव्यवस्थाएं फैली थीं उसे देख अधिकारियों की हवाइयां उड़ रही थीं। सभागार में टेबलों पर धूल जमा थी, हार्पिक से सफाई हो रही थी। कुछ कुर्सियां दम तोड़ रही थीं। जिस कुर्सी पर सीएम को बैठाया जाना था वहां मटमैला तौलिया था जो यह बता रहा था कि उसे धोया नहीं गया है। ताबड़तोड़ स्थान बदला गया। पत्रकारों को ऑडिटोरियम ले जाया गया।

 

हद तो उस समय हो गई जब माइक भर्राने लगा था। कलेक्टर नीरज कुमार सिंह यह सब कुछ देख रहे थे। उन्होंने देखा कि अन्य अधिकारियों से व्यवस्था नहीं संभल रही है तो वे खुद मैदान में उतरे। उन्होंने माइक टेस्ट किया।

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उन्हें देख निगम आयुक्त आशीष पाठक, यूडीए सीईओ संदीप सोनी और जिला पंचायत सीईओ जयति सिंह भी इर्दगिर्द आ गए यानी माइक एक और अधिकारी चार। प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद सिर्फ यही चर्चा थी कि अकेले कलेक्टर क्या कर सकते हैं। अन्य अधिकारी यदि कलेक्टर की तर्ज पर काम करें तो सीएम का सपना साकार हो सकता है।

@नरेंद्रसिंह अकेला

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