उज्जयिनी के पौराणिक अष्ट भैरव मंदिरों की महिमा

भगवान वेदव्यास द्वारा रचित 18 पुराणों में 81100 श्लोकों वाला सबसे बड़ा है स्कंद महापुराण जिसके पाँचवे खण्ड के दो भागों में एक है अवन्ती-क्षेत्र-माहात्म्य और दूसरा है लिङ्ग-माहात्म्य जिनके क्रमश: 82 तथा 84 अध्याय हैं। दूसरे खण्ड में महाकाल-वन में स्थित 84 महादेव की कथाएं और महिमा का वर्णन है।
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स्कंदपुराण के अवंती तीर्थ महिमा अध्याय के अंतर्गत देवी पार्वती की जिज्ञासा शांत करते हुए यहाँ निवास करने वाले देवी-देवताओं की संख्या सहित प्राचीन अष्ट भैरव जी के जो नाम महादेव ने बताए वे इस प्रकार हैं— 1 दण्डपाणि, 2 विक्रांत भैरव 3 महाभैरव 4 सितासित/क्षेत्रपाल, 5 बटुक 6 बंदी 7 षट्पंचाशतक और 8 अपर काल भैरव। एक दो नामांतर के साथ विद्वान लेखकों ने उनके स्थान निम्नानुसार बताए हैं–दण्डपाणि भैरव ( देवप्रयाग के पास कार्तिक मेला क्षेत्र में कालिदास उद्यान), विक्रांत भैरव (ओखलेश्वर महाश्मशान, भैरवगढ़), महाभैरव (आताल-पाताल भैरव, सिंहपुरी चौक), सितासित/क्षेत्रपाल भैरव (कुटुम्बेश्वर महादेव मंदिर परिसर, सिंहपुरी), वटुक भैरव (ब्रह्मपोल, चक्रतीर्थ श्मशान में ऊपर दायीं ओर), षट्पंचाशतक यानी 56 भैरव (भागसीपुरा) और अपर कालभैरव (केंद्रीय जेल के आगे भैरवगढ़), आनंद भैरव (मल्लिकार्जुन पर, गंधवती प्रचलित नाम गंधर्व घाट रामघाट मार्ग पर), बालक, (गोर भैरव, माता गढ़कालिका चौराहा से पूर्व दिशा में विष्णु चतुष्टिका के आगे दायीं ओर खेत में) स्थित माने जाते हैं। उज्जैन में आनंद भैरव नाम के चार मंदिर हैं जिनमें भागसीपुरा स्थित मंदिर भी अति प्राचीन माना जाता है।
कलियुग में तन्त्र-साधना ही शीघ्र फलदायी
वास्तव में भैरव भगवान शिव के पांचवें अवतार हैं जबकि उन्होंने पहला अवतार महाकाल रूप में लिया था। भैरव का नाम सामान्यत: तन्त्र साधना से जुड़ा हुआ है। तन्त्र के क्षेत्र में शिव भैरव होते हैं तथा उमा भैरवी। कलियुग में तन्त्रोक्त साधना ही प्रशस्त मानी गई है। कलियुग में वैदिक जप, तीर्थ सेवन, भजन कीर्तन तथा यज्ञ की अपेक्षा तान्त्रिक विधि से देवों या भैरव का पूजन कर मनुष्य शीघ्र भुक्ति और मुक्ति प्राप्त कर सकता है। तन्त्र शक्ति पूजकों का शास्त्र होने से शक्ति की उपासना को प्रधान माना गया है। संक्षेप में कहा जाए तो तन्त्र समस्त आध्यात्मिक साधना की कुंजी है। सच तो यह है कि तामसिक पद्धति से तान्त्रिक साधना करने वाले छद्म तान्त्रिकों ने तन्त्र की बड़ी अपकीर्ति की है जबकि तन्त्रशास्त्र शिव प्रणीत है जिसके गूढ़ सूत्र सर्वप्रथम भगवान शिव ने देवी पार्वती को ही सुनाये थे।
उज्जयिनी के प्राचीन अष्ट भैरव मंदिरों का सौंदर्य
1 श्री दण्डपाणि भैरव
यह मंदिर शिप्रा किनारे कालिदास उद्यान में स्थित है। स्कंदपुराण के 83 वें अध्याय में देवप्रयाग तीर्थ की सोमतीर्थ से निकटता बताई गई है। करीब 450 वर्ग फीट के कक्ष के मध्य मात्र 20 वर्गफीट के गर्भगृह में श्री दण्डपाणि भैरव की मुण्ड आकृति रूप प्रतिमा विराजित है। देवमूर्ति सौम्य है, त्रिनेत्र धारी है तथा मूंछें रखे हुए है। पूर्वाभिमुख द्वार के ऊपर ‘वन भैरवÓ लिखा है जो कदाचित् इनका प्रचलित नाम है। गर्भगृह पर कांच के बहुरंगी टुकड़ों की कलात्मक पच्चीकारी दर्शनीय है। ये भक्तों की मनोकामना शीघ्र पूरी करते हैं, ऐसा विश्वास है।
2. ओखलेश्वर तीर्थ रूप महाश्मशान में स्थित
ओखरेश्वर महाश्मशान में श्री विक्रांत भैरव की वर्तमान मनोभिराम मूर्ति की खोज सन् 1960 के उत्तरार्ध में परम पूज्य (अब ब्रह्मलीन) श्री डबराल बाबा ने की थी। तब वे उनके मूल नाम श्री गोविंदप्रसाद कुकरेती से जाने जाते थे। वे उन दिनों विक्रम विश्वविद्यालय के गणित विभाग के कार्यालय अधीक्षक थे। वस्तुत: बचपन में उन्होंने अपने जन्म-स्थल ग्राम कठूड़ बड़ा (जिला पौड़ी गढ़वाल) में सुन रखा था कि भैरव तीन ताली बजा देते हैं तो बड़ा अनिष्ट हो जाता है, किंतु उनका तो जन्म ही भैरव-साधना के लिए हुआ था। कदाचित् इसीलिए वे अपने इष्टदेव भैरव को खोजते हुए पहले धार, फिर उज्जैन में माता गढ़कालिका मंदिर, काल भैरव मंदिर, सिद्धनाथ मंदिर तथा फिर अन्तत: भैरवगढ़ जा पहुंचे जहां उन्होंने शिप्रा नदी की बाढ़ के कारण मिट्टी से ढँकी हुई श्री विक्रांत भैरव की दिव्य मूर्ति को ढँढ निकाला। आज यह मंदिर एक तीर्थ का रूप ले चुका है। यहां हजारों भक्त प्रतिवर्ष भैरव जयंती पर तथा वर्ष भर प्रति रविवार व शुक्रवार को मंदिर पहुंचते हैं तथा विक्रांत भैरव की दिव्य चैतन्य प्रतिमा के दर्शन करते हैं। कुछ वर्षों पूर्व तक जो बाबा के शुभकीर्ति करकमलों से प्रसाद पाते रहे वे कल भैरव जयंती पर भी अपरान्ह से रात्रि तक चलने वाले भण्डारे का पुण्य लाभ प्राप्त करेंगे। तन्त्र के क्षेत्र में सर्वप्रथम सात्विक साधना एवं पूजन-अर्चन विधि का प्रणयन करने वाले श्री डबराल बाबा की सूक्ष्म उपस्थिति का आभास उन भक्तों को अवश्य होता है जिनके मन की आंखें सच्ची लगन और तीव्र उत्कण्ठा से उन्हें ढूंढ रही होती हैं। तो कल पहुँचिये श्री विक्रांत भैरव मंदिर, भैरवजी के दर्शन कीजिए तथा स्वयं देखिये कि कैसे एक पुराणप्रसिद्ध महाश्मशान अलौकिक भैरव-लीला की रंगभूमि बनकर तीर्थत्व प्राप्त कर चुका है।
3. श्री महाभैरव (आताल-पाताल भैरव)
यह मंदिर प्राचीन अवंतिका के सघन क्षेत्र सिंहपुरी के चौक में स्थित है। इसका प्रवेश द्वार व देवमूर्ति पूर्वाभिमुख है। भैरव जी की मूल मूर्ति का अधिकांश भाग भूमिगत है तथा कुछ भाग भूमि के ऊपर दिखाई देता है इसीलिए इन्हें आताल -पाताल भैरव कहा जाता है। मूर्ति के बाईं ओर तीन नाग प्रतिमाएं स्थित हैं। मंदिर अति प्राचीन है। यहाँ गुड़ी पड़वा पर निशान का पूजन किया जाता है। तीन दिवसीय भैरव जयंती महोत्सव के अंतर्गत अभिषेक पूजन के उपरांत दूसरे दिन भैरव जी की पालकी की सवारी समीपस्थ क्षेत्र में निकाली जाती है तथा वटुकों को भोजन कराया जाता है।
4. सितासित (क्षेत्रपाल) भैरव
यह भैरव मंदिर 84 महादेव में 14वें क्रम पर परिगणित श्री कुटुम्बेश्वर महादेव मंदिर परिसर में प्रवेश द्वार के बाईं और एक लंबे चबूतरे पर एक खोह में स्थापित है। सितासित या क्षेत्रपाल भैरव की मूर्ति करीब 30 इंच ऊंची है जो पूर्णत: सिंदूरचर्चित है जिसके बाईं ओर एक प्रस्तरदण्ड रखा हुआ है। मस्तक पर त्रिपुंड अंकित है तथा दाएं हाथ में त्रिशूल है। भैरव जयंती पर प्रात: सिंदूर का चोला चढ़ाकर मूर्ति का शृंगार तथा पंचामृत पूजन व अभिषेक किया जाता है। इस मंदिर में अनेक मूर्तियां दर्शनीय हैं ।
5. श्री वटुक भैरव
यह मंदिर शिप्रा नदी के तट पर स्थित नगर के सर्वाधिक सक्रिय श्मशान चक्र तीर्थ पर रैंप के पहले हमारे बायी ओर ऊपर ही स्थित है। मंदिर में कुछ सीढिय़ां उतरकर पांच फीट ऊंचे पूर्वाभिमुख गर्भगृह में भैरव की मुण्ड आकृति में बाल छवि के दर्शन होते हैं। गर्भगृह पर ऊंचा शिखर बना हुआ है। भैरव मूर्ति चतुर्भुज है जिसके दाएं हाथ में दंड और पाश आयुध हैं तथा बाएं हाथ वरद व आशीर्वाद मुद्रा में है। इनका स्वरूप सात्विक बालक का है। इस मूर्ति के ऊपर एक ताख़ में मां भैरवी की प्रतिमा स्थापित है। मूर्ति के सामने इस मंदिर में साधना करने वाले श्री अनंत विभूति मंगल बाबा का एक बड़ा चित्र लगा है जिनकी समाधि विक्रांत भैरव मंदिर परिसर में ऊपर ही स्थित है। भैरव जयंती पर छप्पन भोग के दर्शन होते हैं तथा गुरु पूर्णिमा पर भगवान की सवारी निकाली जाती है। यहां पूजन में नैवेद्य सात्विक रहता है।
6. श्री बालक (गोर) भैरव
यह मंदिर माता गढ़कालिका चौराहा से पूर्व दिशा में विष्णु चतुष्टिका स्मारक के पास एक खेत में स्थित है जिसका मात्र 4:30 फीट ऊंचा प्रवेश द्वार पीछे की ओर है। छोटे से गर्भगृह में 3 फीट ऊंची भैरव मूर्ति है जिसका दाया हाथ मुड़ा होकर प्रस्तरदण्ड धारण किए हैं। हमारे दाईं ओर बालक (गोर) भैरव की मूर्ति है जबकि सम्मुख काला भैरव की मूर्ति भी स्थापित है। समीप ही शिव पार्वती की उमा-महेश्वर स्वरूप प्रतिमा है। मध्य में स्थित मूर्ति के दाएं एक ओर भैरव मूर्ति है तथा बाईं ओर हनुमान जी विराजित हैं। काला भैरव की मूर्ति को मदिरा का पान कराया जाता है जबकि बालक गौर भैरव को दूध अर्पित किया जाता है। मंदिर परिसर ऊबड़-खाबड़ है यहाँ जीर्णोद्धार की शीघ्र अपेक्षा है।
7. श्री षट्पंचाशतक (छप्पन) भैरव मंदिर
उज्जयिनी में छप्पन भैरव नाम से सर्वज्ञात यह मंदिर नगर के सघन क्षेत्र भागसीपुरा में एक गली में स्थित है । करीब 120 वर्गफीट के गर्भगृह में 10 फीट लम्बा और 3 फीट चौड़ा संगमरमर जडि़त एक ढाई फीट ऊंचे प्लेटफार्म पर 56 भैरव विराजमान हैं जिनकी संयुक्त पिंड आकृति में लगभग 15 भैरव मुण्ड अथवा आवक्ष मुण्ड दिखाई देते हैं जिन पर आंखें, होंठ और मूंछें बनी हुई है? कुछ आकृतियों पर त्रिपुण्ड या त्रिशूल बने हैं। अधिकतम ऊंची भैरव आकृति ढाई फीट आकार तक की दिखाई देती है। कुछ वर्षों पूर्व मंदिर का सौन्दर्यीकरण किया गया है। यह मंदिर दर्शनीय है।
8. श्री आनन्द भैरव
शिप्रा नदी की बडऩगर रपट के पास गंधवती (प्रचलित नाम गंधर्व) घाट पर मल्लिकार्जुन क्षेत्र में यह अति प्राचीन मंदिर स्थित है। मंदिर का बाहरी भवन तथा शिखर अर्वाचीन है जबकि गर्भगृीह में स्थित मूर्तियां अपनी प्राचीनता का चाक्षुष प्रमाण हैं। पश्चिमाभिमुख प्रवेश द्वार के सामने आनंद भैरव की आनंदी, सुदर्शन एवं मनोरम खड़ी हुई मूर्ति प्रतिष्ठित है। मूर्ति सिंदूरचर्चित और सुश्रृंगारित बाल रूप में है जिसके दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में एक मुण्ड धारण किए हैं। कहते हैं यह मूर्ति मूलत: दिगंबर रूप में थी अब वस्त्रालंकृत है जिसके दोनों ओर नौ मातृकाओं की आकृतियां बनी हुई है। भैरव मूर्ति के दाएं कुछ ऊपर गज लक्ष्मी की दर्शनीय प्राचीन प्रतिमा भी स्थापित है।
रमेश दीक्षित
(लेखक दैनिक अक्षरविश्व में स्तंभकार हैं)









