विधानसभा चुनाव के लिए नामांकन का सिलसिला प्रारंभ हो गया है। इस प्रक्रिया के बीच दोनों प्रमुख दलों के घोषित खास उम्मीदवार के आवेदन जमा होने का कई लोग इंतजार कर रहे है। इन खास लोगों के नामांकन दाखिल करने नहीं करने से किसी की सेहत पर कोई बड़ा असर नहीं होने वाला है। महत्वपूर्ण तो नामांकन के साथ अनिवार्य तौर पर जमा होने वाले विभिन्न ब्योरे की जानकारी के शपथ-पत्र है। जिसमें उम्मीदवार की चल-अचल संपत्ति,अपराध की जानकारी,कर्ज-लोन,देनदारी-लेनदारी है। इस पर कई लोग नजर जमाए हुए है।
विरोध की लपटों से झुलस रहे
जैसे-जैसे चुनाव की घड़ी नजदीक आ रही है राजनीति और उलझती जा रही है। अपनों के विरोध की लपटों से दोनों ही दल झुलस रहे हैं। अपनी संगठन रचना पर गर्व करने वाले भाजपाई अनुशासन के डंडे से भी असंतुष्टों को मना नहीं पा रहे हैं। प्रदेश की धार्मिक राजधानी और भाजपा का गढ़ कहा जाने वाला उज्जैन भी इस आंच से बच नहीं पाया है। टिकट वितरण के पहले ही विधानसभा क्षेत्र सभी विधानसभा क्षेत्रों में दावेदारों की कवायद शीर्ष पर थी। प्रत्याशी घोषित होते ही निवर्तमान विधायक की नाराजगी को छोड़कर उज्जैन उत्तर के साथ उज्जैन दक्षिण,तराना,घट्टिया में तो चुप्पी छा गई लेकिन अन्य क्षेत्र महिदपुर,बडऩगर और नागदा-खाचरोद में बागियों के तेवर से मामला अब भी उलझा ही है।
चुनाव का एक दर्द यह भी…
विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटे प्रत्याशियों और राजनीतिक दलों के पदाधिकारियों को इस समय एक मिनट भी गंवाना बर्दाश्त नहीं। ऐसा नहीं है कि राजनेताओं को अचानक समय का महत्व समझ आने लगा हो। इसके पीछे की वजह चुनाव के पहले दीपावली का त्योहार है। 10 नवंबर से शुरू हो रहे इस पर्व में कार्यकर्ता और जनता दोनों ही राजनीति से दूर उत्सवी माहौल में डूब जाएंगे। सोचिए 17 को मतदान है और उसके पहले के पांच महत्वपूर्ण दिन मैदानी टीम त्योहारों में व्यस्त रहेगी तो प्रत्याशी और राजनीतिक दलों के पदाधिकारियों की मनस्थिति तो आसानी से समझी जा सकती है। बात निकलते ही नेताजी चुनाव आयोग के कैलेंडर को यह कहकर कोस रहे हैं कि और कोई तारीख नहीं मिली इन्हें। त्योहार पर कौन काम करेगा हमारा।