न यूडीए संचालक मंडल बन पाया, ना ही निगम में एल्डरमैन नियुक्त हो सके; निगम मंडलों में भी नियुक्तियां अटकी हैं

अब कार्यकर्ताओं और नेताओं को उम्मीद नियुक्तियों-मनोनयन की
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अक्षरविश्व न्यूज. उज्जैन प्रदेश का सबसे बडा पद मिलने के बाद कई नेताओं, कार्यकर्ताओं की उम्मीद जागी हैं कि उन्हें कोई पद मिलेगा। लम्बे समय से न यूडीए संचालक मंडल बन पाया, ना ही नगर निगम में एल्डरमैन नियुक्त हो सके है। निगम मंडलों में भी नियुक्तियां अटकी हैं।

उज्जैन जिले या शहर की बात करें तो नेताओं,कार्यकर्ताओं को खास पद नहीं मिले हैं। चुनाव आते ही उन्हें कहा जाता है- जुट जाएं, बूथ संभालें, पन्ना प्रभारी अपना मोहल्ला देखें, वरिष्ठ नेता घर-घर संपर्क अभियान चलाएं, सभाओं में भीड़ जुटाएं, लेकिन चुनाव निपटते ही कार्यकर्ता फिर खाली हाथ। उज्जैन में 09 साल से लगातार भाजपा सांसद है, 17 साल से भाजपा के महापौर और परिषद भी, विधायक भी कांग्रेस से ज्यादा, बावजूद उज्जैन विकास प्राधिकरण का संचालक मंडल हो या निगम में एल्डरमैन के लिए नेताओं का मनोनयन नहीं हो सका।
उज्जैन विकास प्राधिकरण में लंबे समय से बोर्ड मेंबर की नियुक्तियां नहीं हुई। यूडीए में करीब आठ माह पहले श्याम बंसल अध्यक्ष बने थे। बसंल के साथ संचालक मंडल के अन्य सदस्य तय नहीं किए गए थे। यूडीए में दो उपाध्यक्ष,तीन संचालक नियुक्त हो सकते है। निगम में नई परिषद को एक साल से ज्यादा हो चुका है। यहां भी अब तक एल्डर मैन की नियुक्ति नहीं हुई है। उज्जैन नगर निगम में 8 से 10 एल्डरमैन बनना हैं। इसके लिए भी नोटिफिकेशन अब तक नहीं किया गया।
इधर कांग्रेस में पद बचाने की चिंता
प्रदेश के चुनाव भले हो गए हों, लेकिन लोकसभा का मुकाबला अभी बाकी है। प्रदेश की जीत-हार को पीछे छोड़ दोनों दल बड़े संघर्ष की तैयारी में जुटे हैं। प्रदेश की नई सरकार योजनाओं को जारी रखने में जुटी है तो कांग्रेस की चिंता कुनबा जोडऩे की है। नए प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी के कुर्सी संभालते ही सबसे ज्यादा चिंता उन चेहरों को थी, जिन्हें प्रदेश संगठन में कुर्सी किसी और चेहरे ने दिलवाई थी। यह अलग बात है कि नगर निगम और विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद किसी ने इस्तीफा देना तो दूर पराजय की जिम्मेदारी नहीं ली। इसके विपरीत राजनीति में जहां दम वहां हम वाली तर्ज पर कइयों ने जीतू दरबार में हाजिरी भी लगानी शुरू कर दी थी। उसका उदाहरण प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बनने के बाद जीतू पटवारी के उज्जैन आगमन पर सामने आ गया। मगर बदलाव तो होंगे… इतना तय है। अब देखना है कि जीतू पटवारी गुट से बाहर के चेहरों को भविष्य में कहां जगह मिलती है।








