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पीड़ा पीपल के एक पेड़ की…

‘अभिरक्षा’ में हो गई हत्या…!

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वर्षों पुराने पीपल के पेड़ को बिना सोच-विचार के बेरहमी से काट दिया गया है। ४-५ दिन तक लगातार चली आरी ने वृक्ष की शाखा को अलग कर दिया, मगर किसी को कानोंकान खबर नहीं होने दी। सीने का असहनीय दर्द वृक्ष के प्राण को लेकर हवा हो चला।

पीपल के वृक्ष की पीड़ा है कि यह भी नहीं सोचा कि अपनी सांसें छोड़कर में तुम्हें जीवित रखता हूं। बोलता नहीं तो क्या हुआ हर बात समझता हूं। अब तक जो यहां रहे उनका हर सुख दुख का सहभागी बना। झूम उठती थी मेरी डालियां जब ख़ुशियों का मौका होता था। अनवरत खड़ा मैं कई जि़ंदगी में शामिल रहा। यह कैसा इंसाफ है बिना परोपकार की कथा जाने। काट दिया मुझे बिना मेरी व्यथा जाने।

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पता नहीं मेरा बीजारोपण कब हुआ, लेकिन कद-काठी से आप अनुमान लगा सकते थे कि मेरी उम्र ४ से ५ दशक यानी ४०-५० साल होगी। मुझे इस बात का गर्व था कि मैं जहां हूं, उनके संरक्षण, अभिरक्षा में हर कोई अपने आप को सुरक्षित मानता है। इस स्थान पर मेरा कोई बाल भी बाकां नहीं कर सकता है, लेकिन यह मेरी गलतफहमी रही। सुरक्षा और अभिरक्षा में मेरा वध करवा दिया गया।

मैं जिस परिसर में था,वहां जो पहले रहते थे,उन्हें मै बहुत प्यारा और अजीज था। अब जो रहते है,उनकी आंखों को न जाने क्यों मैं अखरने लगा। शायद आंगन में गिरे मेरे सूखे पत्ते अब किसी गन्दगी की तरह लगने लगे हैं। घर की सुंदरता में दाग सा लगने लगा था। ऐसे में मुझे कटना जरूरी हो गया। मुझे परिसर से हटाना उनकी सबसे बड़ी जरूरत हो गई। साब ने समय न गंवाते हुए मुझे कटाने का फैसला कर अपने अधिनस्थ को आदेश दिया पीपल के इस वृक्ष को ‘जमीन बदर’ करना है। सनत रहें कि इसकी खबर किसी को न हो। इसके बाद साहब के आदेश का पालन कर पेड़ काटने वालों को बुलवा लिया गया। परिसर सरकारी-मैं भी सरकारी, पर मुझे काटने के लिए निजी हाथ का साथ लिया गया। वैसे तो लिस्टेट वृक्ष को काटने की अनुमति देने और काटने के लिए सरकार महकमा है,पर वृक्ष कटने पर शोर मचने के भय से न अनुमति प्राप्त की न मदद ली।

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बहरहाल जैसा मैंने पहले कहा कि मेरी कद-काठी काफी विशालकाय थी,सो मुझे काटने वालों ने कहा कि पीपल बहुत बड़ा है, एक साथ काटने पर शोर मच सकता है। बंगले का ध्यान भी रखना है। साहब ने लंबी सांस भरकर हुक्म दे दिया..जैसे भी हो वृक्ष को काटना ही है। हुक्म की प्रतीक्षा में खड़े मजदूरों ने पल भर की देरी किए बगैर मुझ पर आरी चला प्रारंभ कर दी। पहले मेरी शाखाओं को काटना प्रारंभ किया गया।

हर शाखा चीख-चीख कर खुद को बचाने की फरियाद कर रही है लेकिन आमतौर पर शांत और सुरक्षित माने जाने वाले क्षेत्र और परिसर अन्य पेड़ों की विशालता के कारण न किसी की नजर मुझ पर पड़ी और ना ही मेरा कष्ट कहीं पहुंच पाया। जैसे-जैसे आरी चलती रही,वैसे-वैसे मेरे सीने में भी दर्द बढ़ता रहा। मुझे शनै-शनै हलाल किया जाता रहा।

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