बधाई…’ हो हजूर… आपने 6 लाख श्रद्धालुओं को ‘खदेड़’ दिया…!

उज्जैन।मंदिर प्रशासन भले यह कह कर अपनी पीठ थपथपा ले कि नागपंचमी पर सबकुछ ठीक रहा। लाखों श्रद्धालुओं का दर्शन करा दिए,पर दर्शन हुए कहां? वर्ष में एक बार खुलने वाले भगवान नागचंद्रेश्वर के मंदिर में श्रद्धालुओं को नहीं ठहरने देने की योजना कामयाब रही।
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दावा किया जा रहा है कि 24 घंटे के भीतर 6 लाख श्रद्धालुओं ने भगवान के दर्शन किए। आप तो यह बताएं कि वहां ‘दर्शन’ तो दूर भगवान को ‘देखने’ का अवसर भी दिया गया क्या..?
नहीं ऐसा नहीं हुआ। वहां तो अनुभवहीन पुलिस अफसरों की प्लानिंग कामयाब रही। यह कहना उचित नहीं है कि ‘दर्शन’ कराए गए। इसके लिए सही बात तो यह कि 6 लाख से अधिक श्रद्धालुओं को ‘धकिया’ दिया या ‘खदेड’ दिया गया। मंदिर प्रबंध समिति ने अपनी पूरी प्लानिंग पुलिस के भरोसे छोड़ दी।
फिर ‘पुलिसकर्मी’ तो पुलिसकर्मी ही है, उन्हें तो जो लाइन दी गई उसी पर काम करना है। ऐसा हुआ भी। श्रद्धालुओं को ‘भगवान के सामने’ नहीं रुकने देने की योजना में कई तो ऐसे रहे कि उन्हें पता ही नहीं लगा कि हम प्रभु के सामने से होकर गुजर गए हैं ।
माना कम समय में अधिक श्रद्धालुओं को दर्शन कराने की चुनौती थी, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि भक्तों को उनके भगवान का मुखारविंद भी नहीं निहारने दिया जाए। प्रभु और उनके भक्तों के बीच एक तो पुलिसकर्मी की दीवार थी और दूसरा भक्तों को प्रतिमा के बगल से धक्का दिया जा रहा था। ऐसे में पहली बार नागचंद्रेश्वर मंदिर आने वाले कई श्रद्धालुओं तो पता ही नहीं चला कि उन्होंने किस के दर्शन किए हैं। दूरदराज क्षेत्रों से आए अनेक लोग अपने आप को ठगा हुआ महसूस कर रहे थे।
छतरपुर के दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्र से सपरिवार भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन के लिए आए कृष्ण गोपाल बाजपाई ने बताया कि उन्हें कालसर्प दोष निवारण पूजन के बाद पारिवारिक पंडित ने सलाह दी थी कि नागचंद्रेश्वर के दर्शन पूजन करके आए। उनकी पीड़ा यह थी कि पुलिस वालों ने ऐसा धकेला कि दर्शन तो दूर, पता ही नहीं लगा के भगवान किस जगह ‘विराजित’ है।
केवल एक बार खुलने वाले भगवान नागचंद्रेश्वर मंदिर में मंगलवार को शीघ्र दर्शन के लिए अधिकारी इसे ‘माकुल इंतजाम” बताते रहे। जल्दी दर्शन करवाने के नाम पर आस्था के साथ खिलवाड़ होता रहा। भगवान नागचंद्रेशवर की मूर्ति को तो पुलिसवालों ने अपने कब्जे में ले रखा था। इस दौरान श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचे वह ना तो फूल-प्रसाद-दूध-जल अर्पित कर सकें और ना ही भगवान के दर्शन।