इस विधानसभा चुनाव में किसी महिला उम्मीदवार को अवसर मिलेगा क्या…?

नारी शक्ति वंदन अधिनियम बनने के बाद इस प्रश्न को लेकर उत्सुकता बढ़ी…

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योगेंद्र माथुरउज्जैन। लोकसभा व राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने संबंधी विधेयक के संसद के दोनों सदनों में पास होने के उपरांत राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने से इन चुनावों में महिलाओं की हिस्सेदारी तय करने वाला ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’अस्तित्व में आ गया है।

हालांकि इस अधिनियम पर अमल पांच वर्ष बाद शुरू होगा लेकिन इस अधिनियम के बनने से राजनीति के क्षेत्र में अपना भाग्य आजमा रहीं महिला नेत्रियों में उत्साह व उनकी सक्रियता खासी बढ़ती दिख रही है। दूसरी ओर आगामी नवंबर माह में होने वाले 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव के टिकट वितरण में महिलाओं को मिलने वाले संभावित प्रतिनिधित्व को लेकर सभी की उत्सुकता बढ़ गई है।

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इस संदर्भ में उज्जैन जिले की सातों विधानसभाओं के विगत चुनावों में विभिन्न राजनीतिक पार्टियों द्वारा महिलाओं को अब तक दिए गए प्रतिनिधित्व पर नजर डालने पर यह बात सामने आती है कि 1 नवंबर 1956 को मध्यप्रदेश राज्य के गठन के बाद पिछले 67 वर्षों में राज्य की विधानसभा का 15 बार निर्वाचन हुआ है। राज्य में विधानसभा का पहला चुनाव 1957 में हुआ था। तब से अब तक के 15 विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (पहले जनसंघ) ने उज्जैन जिले की सातों सीटों में से एक भी सीट पर महिला उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया है जबकि कांग्रेस ने पहले चुनाव से ही महिला को प्रतिनिधित्व देना आरंभ कर दिया था। कांग्रेस अब तक तीन विधानसभा सीटों पर 9 बार महिला प्रत्याशी को चुनाव लडऩे का अवसर प्रदान कर चुकी है। इनमें से 5 बार महिला प्रत्याशी ने विजय पताका फहराई तो 4 बार पराजय का मुंह देखना पड़ा है।

1957 के पहले विधानसभा चुनाव में उज्जैन जिले की उज्जैन उत्तर सीट से कांग्रेस ने किशोरी राजदान कुमार को टिकट दिया था। उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी मसूद अहमद को हरा कर कांग्रेस को जीत दिलाई थी। इसके बाद कांग्रेस ने सन 1962 में उज्जैन दक्षिण सीट से हंसाबेन पटेल को चुनाव मैदान में उतारा। वे भी अपने प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार जनसंघ के सुमेरसिंह जालमसिंह को पराजित करने में सफल रहीं। सन 1967 में कांग्रेस ने हंसाबेन पटेल को दोबारा चुनाव लडऩे का अवसर दिया। हालांकि इस बार वे जीत का मुंह नही देख पाईं। उज्जैन उत्तर की सीट पर भारतीय जनसंघ के महादेव गोविंद जोशी उन्हें हरा कर विजयी हुए।

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1967 से 1993 के बीच की 26 वर्ष की अवधि में चार बार विधानसभा चुनाव हुए लेकिन किसी भी पार्टी ने महिला उम्मीदवार को प्रतिनिधित्व नही दिया। 1993 में कांग्रेस ने उच्च शिक्षित व तेजतर्रार महिला नेत्री डॉ.कल्पना परुलेकर को महिदपुर से भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता बाबूलाल जैन के सामने चुनाव मैदान में उतारा लेकिन उन्हें पराजय का मुंह देखना पड़ा। पाँच वर्ष बाद सन 1998 में कांग्रेस ने बाबूलाल जैन के सामने पुन: डॉ.कल्पना परुलेकर पर ही विश्वास जताया। कांग्रेस का यह विश्वास फलीभूत हुआ और डॉ. परुलेकर ने श्री जैन को हराकर अपनी पिछली पराजय का हिसाब चुकता कर दिया।

1997 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने एक और महिला नेत्री को चुनाव मैदान में उतरने का अवसर दिया। उज्जैन दक्षिण सीट से प्रीति भार्गव को प्रत्याशी बना कर कांग्रेस ने भारतीय जनता पार्टी के दमदार नेता शिवा कोटवानी के सामने चुनौती खड़ी की। प्रीति भार्गव इस चुनौती पर खरी भी उतरीं और उन्होंने श्री कोटवानी को चुनाव में परास्त कर दिया। हालांकि अपनी इस सीट से 2003 में कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में दोबारा चुनाव में उतरी प्रीति भार्गव को भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार शिवनारायण जागीरदार के सामने हार का मुंह देखना पड़ा।

2007 में भाजपा के बाबूलाल जैन से पराजित होने के ठीक 10 वर्ष बाद डॉ. कल्पना परुलेकर महिदपुर से कांग्रेस के ही टिकट पर पुन: चुनाव मैदान में उतरीं और भाजपा प्रत्याशी बहादुरसिंह चौहान को हराया। हालांकि पहले की तरह ही पांच वर्ष बाद 2013 के विधानसभा चुनाव में डा. परूलेकर अपने प्रतिद्वंद्वी बहादुरसिंह चौहान से चुनाव हार गईं।

2013 के विधानसभा चुनाव के बाद से अब तक इन दस वर्ष की अवधि में उज्जैन जिले की सातों सीटों में से किसी पर भी, किसी भी पार्टी ने टिकट वितरण में महिला प्रत्याशी को प्रतिनिधित्व नहीं दिया है। लेकिन हाल ही में लोकसभा व विधानसभा चुनावों में महिलाओं को 33 प्रतिशत हिस्सेदारी देने वाले ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ के बनने से इस विधानसभा चुनाव को लेकर महिलाओं में नई उम्मीद जगी है।

यह देखना दिलचस्प होगा कि महिला अधिकारों की बात करने वाली पार्टियां इस विधानसभा चुनाव में महिलाओं को प्रतिनिधित्व देती हैं या नहीं और यदि देती हैं तो कितना? राजनीति से जुड़े लोगों की इसी प्रश्न उत्सुकता बनी हुई है।

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