उज्जैन:पार्षद प्रत्याशी के प्रचार में ‘महापौर’ नजरअंदाज

वार्ड 52 में कांग्रेस प्रत्याशी का प्रचार व्यक्तिगत उपलब्धि और वादों के आधार पर किया जा रहा है। 10 मिनट की इस प्रचार रिकार्डींग में सुलेखा राजेंद्र वशिष्ठ को वोट देने की अपील तो 10 से 15 बार हो रही है लेकिन महापौर पद के प्रत्याशी महेश परमार को वोट देने की अपील केवल एक बार ही हो रहीं है।

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प्रत्याशी के नाम का जिक्र कई बार किया जा रहा है। प्रचार की इस स्थिति में ध्यान से सुनने पर ही महेश परमार का नाम मतदाताओं तक पहुंच पा रहा है। प्रचार में पार्षद के उम्मीदवार के लिए तो वोट मांगे जा रहे है,पर ‘महापौर’ को अभी से नजरअंदाज किया जा रहा है।

यह स्थिति शनिवार को सुबह वार्ड 52 में सामने आ गई। कांग्रेस उम्मीदवार सुलेखा राजेंद्र वशिष्ठ का उदयन मार्ग, दमदमा के साथ ही आसपास के क्षेत्रों में जनसम्पर्क था।

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इस दौरान साथ चल रहे प्रचार वाहन पर रिकार्डेड प्रचार में सुलेखा वशिष्ठ की योग्यता,वार्ड को लेकर उनकी भावी योजना के साथ प्रत्याशी के पति राजेंद्र वशिष्ठ की उपलब्धियों का बखान किया जा रहा था। कुल मिलाकर इस वार्ड में व्यक्तिगत आधार पर ही चुनाव लड़ा जा रहा है।

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पंडित दिलवा रहे संकल्प

उज्जैन। नगर निगम चुनाव में जीतने के लिए प्रत्याशी कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। सुबह से शाम तक जनसंपर्क तो कर ही रहे हैं। वहीं कोशिश यह भी कर रहे हैं उनके वार्ड में स्टार प्रचार भी आ जाए। नुक्कड़ सभाएं भी कर रहे हैं। एक वार्ड में पंडितों और कथावाचकों को भी प्रत्याशी की सभा और जनसंपर्क में ले जा रहे हैं।

इस दौरान ये पंडित मतदाताओं से कह रहे हैं कि अभी तक हमने आपको कथा के दौरान संकल्प दिलाया और आपने पूरा किया। अब एक और संकल्प का समय है। आप इनकी जीत का संकल्प लें और चुनाव चिन्ह का बटन सूर्य की पहली किरण के साथ दबाए। यह विकास का संकल्प हैं जिसे पूरा करना है।

‘पहलवान’ अब ‘उस्ताद-खलीफा’ हो गए..

अखाड़ों से जो परिचित हैं, वे जानते हैं कि कोच/प्रशिक्षक को आमतौर की बोलचाल में ‘उस्ताद-खलीफा’ कहा जाता हैं और अखाड़ों के पूराने नामी पहलवान होते हैं।

खैर उज्जैन नगर निगम की राजनीतिक अखाड़े की बात करें तो यहां के दो पहलवानों ने इस बार के दंगल से खुद को अलग कर अपने शागिर्दों को चुनाव मैदान में उतार दिया और पाले के बाहर से दांवपेंच चल रहे हैं। दोनों ही पहलवान दो-दो,तीन-तीन मर्तबा अपने जौहर दिखा चुके हैं।

इस बार शागिर्दों की बारी हैं और पहलवान अब ‘उस्ताद-खलीफा’ भूमिका में हैं। दोनों पहलवान अपने ही अखाड़े (वार्ड) में जोर आजमाइश कर रहे पर अपने प्रशंसकों/समर्थकों के अखाड़े (वार्ड) में मदद के लिए नहीं जा रहे हैं। दोनों ही पहलवान पूर्व पर विधानसभा चुनाव लडऩे के लिए दावेदारी कर चुके हैं और उम्मीद है कि आने वाले समय में भी विधानसभा टिकट के लिए दावा करेंगे।

ऐसे में चर्चा यही है कि विधानसभा में उतरने के लिए केवल एक अखाड़े ही नहीं,बल्कि कई अखाड़ों से मदद की जरूरत पड़ेगी। ऐसे सिर्फ अपने अखाड़े की चिंता करना समझदारी नहीं है। कम से कम पहलवानों को अपने प्रशंसकों और समर्थकों के अखाड़े में भी जाकर सहयोग करना चाहिए।

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