Advertisement

गाडिय़ों की फिटनेस व्यवस्था लचर, टेस्टिंग के नाम से खानापूर्ति

बड़े वाहनों को केवल चालू कर देख लिया जाता है

Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!

Advertisement

उज्जैन। गाडिय़ों की फिटनेस व्यवस्था लचर बनी हुई है। टेस्टिंग के नाम से खानापूर्ति होती है। जरूरत पडऩे पर वाहन को चालू करवाकर देख लिया जाता है। इसके बाद वाहन को फिटनेस प्रमाण पत्र दे दिया जाता है, लेकिन सालों पुरानी व्यवस्था को बदलने की जरूरत है।

परिवहन विभाग के नियमों के अनुसार व्यावसायिक और यात्री वाहनों का फिटनेस होना जरूरी है। शहर में इसके लिए आरटीओ की अस्थायी फिटनेस शाखा है। यहां एक लिपिक वाहनों का निरीक्षण कर लेता है। वाहन की बाडी जांची जाती है। कागजी खानापूर्ति कर प्रमाण-पत्र जारी कर दिया जाता है। परिवहन विभाग में वाहनों की फिटनेस जांचने का काम मैन्युअल तरीके से हो रहा है। वहीं दूसरे राज्यों में यह काम आटोमैटेड फिटनेस ट्रैक से हो रहा है। व्यवस्था में जारी खानापूर्ति हादसों की वजह बन रही है। फिटनेस के दौरान वाहनों के टायर सहित कई बिंदुओं की बारीकी से जांच की व्यवस्था है लेकिन इसकी भी अनदेखी होती है। ट्रैफिक पुलिस नियम तोडऩे या गाडिय़ों के कागजात नहीं होने पर चालानी कार्रवाई करती है, लेकिन गति सीमा का उल्लंघन, अन्य सेफ्टी फीचर्स पर अब भी किसी का ध्यान नहीं है।

Advertisement

रिमोल्ड टायर पर चलते हैं वाहन…… जानकारों के अनुसार लगतार चलने वाले ट्रक-बस में तीन-चार माह में टायर खत्म हो जाते हैं। नए टायर और रिमोल्ड टायर की कीमत में आधी कीमत का अंतर होता है। ट्रेलर में टायरों की संख्या अधिक होती है। उसमें कुछ रिमोल्ड टायर लगवा लेते हैं, लेकिन सुरक्षा की दृष्टि से ये ठीक नहीं होते हैं। कई बार ये टायर फट जाते हैं। यात्री बसों में भी कई बस संचालक इनका उपयोग करते हैं। फिटनेस के समय अगर रिमोल्ड टायर दिख जाते हैं तो फिटनेस प्रमाण पत्र नहीं दिया जाना चाहिए लेकिन इस नियम की अनदेखी भी अक्सर होती है।

सड़कों पर दौड़ रहे पुराने वाहन
वाहनों की संख्या बढ़ती जा रही है, लेकिन बड़ी संख्या पुराने वाहनों की है। ठीक से इनकी जांच हो जाए तो इनमें से ज्यादातर चलन से बाहर होने योग्य हैं, क्योंकि ये फिटनेस के मापदंडों को पूरा नहीं कर रहे हैं। ट्रैफिक पुलिस का ध्यान सिर्फ व्यावसायिक वाहनों पर होता है, जबकि शहर की सड़कों पर चलने वाले सैकड़ों ऑटो, बस पुराने हो चुके हैं। नई कारों की कीमत अधिक होने के कारण लोग पुरानी कारों का भी खूब उपयोग कर रहे हैं। इन कारों में न तो सीट बेल्ट है, न ही दुर्घटना के समय जान बचाने के लिए एयर बैग लगे हैं। ऐसे वाहनों के कारण दुर्घटनाओं के समय लोगों का जीवन जोखिम में रहता है। शहर में ही बिना बैक लाइट और इंडिकेटर के वाहन सड़क पर दौड़ रहे हैं। फाग लाइट और रिफ्लेक्टर तो अभी काफी दूर की बात है। कंडम वाहन जब सड़क पर दौड़ते हैं तो यह खुद के साथ दूसरों के लिए भी यमराज साबित हो रहे हैं।

Advertisement

कोहरे में एंटी फागिंग लाइट जरूरी
कोहरे और धुंध के दौरान दोपहिया और चार पहिया के लिए फाग लाइट बहुत अहम है। यह हेडलाइट के साथ फिट की जाती है। इसकी कलरफुल लाइट कोहरे को हटा देती है और ड्राइवर को आगे का रास्ता साफ दिखाई देता है, लेकिन प्रदेश में चलने वाले अधिकांश पुराने वाहनों में इसकी सुविधा ही नहीं है। ट्रैफिक पुलिस ने भी इसे लेकर कोई प्रयास नहीं किए हैं।

Related Articles