चुनाव की बागडोर अब भाजपा केंद्रीय टीम के हाथ में

By AV NEWS

भाजपा ने किया विधानसभा के लिए 39 प्रत्याशियों का ऐलान, उज्जैन जिले के तराना-घट्टिया से भी नाम तय

चुनाव की बागडोर अब भाजपा केंद्रीय टीम के हाथ में

अक्षरविश्व न्यूज. उज्जैन:भाजपा ने विधानसभा चुनाव की घोषणा से पहले ही मध्य प्रदेश की 39 सीटों पर प्रत्याशियों का ऐलान कर दिया है। इससे साफ है कि मप्र विधानसभा चुनाव 2023 की अब भाजपा केंद्रीय टीम के हाथ में है। चुनाव के लिए जिन क्षेत्र के उम्मीदवार तय किए गए है,उसमें मालवा-निमाड़ के 66 सीट में 11 है और उज्जैन जिले की तराना और घट्टिया विधानसभा शामिल है।

राजनीतिक जानकारों के अनुसार विधानसभा चुनाव के लिए जिस तरह से अमित शाह सक्रिय हुए थे,उससे संकेत मिलने लगे थे कि चुनाव की रणनीति में उच्च स्तर का हस्तक्षेप रहने वाला है। टिकट का बंटवारा और चुनाव के सभी बड़े फैसले दिल्ली में होंगे। अब जिस तरह से विधानसभा चुनाव की घोषणा से पहले ही प्रत्याशी तय कर नामों को ऐलान किया गया है उससे साफ है कि इस बार का चुनाव अब केंद्रीय टीम के हाथ में चला गया है।

जिले की दोनों सीट कांग्रेस के पास

उज्जैन जिले की दो सीटों तराना और घट्टिया विधानसभा पर भी बीजेपी ने प्रत्याशी घोषित किये है। इन दोनों सीटों पर भी कांग्रेस का कब्ज़ा था।

घट्टिया विधानसभा:2013 में घटिया विधानसभा से 41 वर्षीय सतीश मालवीय ने चुनाव 17500 वोटो से चुनाव जीता था। उज्जैन घट्टिया विधान सभा क्षेत्र से बीजेपी ने सतीश मालवीय को टिकट देने की घोषणा कर दी है। सतीश मालवीय ने घट्टिया से 2013 में कांग्रेस के रामलाल मालवीय को हराकर चुनाव जीता था। इसके बाद 2018 में बीजेपी ने प्रेमचंद गुड्डू के बेटे अजित बोरासी को टिकट दिया था इसमें बीजेपी को हार का समाना करना पड़ा था। बीजेपी ने एक बार फिर सतीश मालवीय पर भरोसा किया है।

घट्टिया से अभी तक के विधायक

1977 गंगाराम परमार, जनता पार्टी 1980 नागूलाल मालवीय भाजपा,1985 अवंतिका प्रसाद मरमट कांग्रेस, 1990 रामेश्वर अखण्ड भाजपा,1995 रामेश्वर अखण्ड भाजपा,1998 रामलाल कांग्रेस, 2003 डॉ. नारायण परमार भाजपा, 2008 रामलाल मालवीय कांग्रेस, 201३ सतीश मालवीय भाजपा, 2018 रामलाल मालवीय कांग्रेस।

मालवा-निमाड़ में हुआ था नुकसान

भाजपा ने अपनी पहली सूची में जो ३९ नाम तय कर दिए है,उसमें से ११ सीट मालवा निमाड़ की है। मालवा-निमाड़ भाजपा का गढ़ माना जाता है, लेकिन 2018 के चुनाव में यहां पार्टी को नुकसान हुआ था। पूरे इलाके की बात करें तो कुल 66 में से भाजपा के खाते में 34 सीटें हैं। पिछले चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करने वाली कांग्रेस को 29 सीटें मिली थीं।

तराना विधानसभा क्षेत्र

जिले की तराना विधानसभा सीट पर बीजेपी ने करीब 20 वर्ष पुराने विधायक रहे ताराचंद गोयल को टिकट दिया है। गोयल को सत्यनारायण जटिया का समर्थक माने जाते है। ताराचंद गोयल ने 2003 में तत्कालीन मंत्री रहे बाबूलाल मालवीय को हराकर विधायक बने थे। २००८ में पार्टी ने इनका टिकट काटकर रोडमल राठौर को मौका दिया था। इसके बाद से गोयल का राजनीतिक वनवास चल रहा था। तराना से गोयल का नाम चौकाने वाला सामने आया है। तराना से उनका नाम फाइनल होना कई नेताओं को अचंभित कर रहा है।

तराना से अभी तक के विधायक

962 एम सिंह कांग्रेस, 1967 एम सिंह भारतीय जनसंघ , 1972 लक्ष्मीनारायण जैन कांग्रेस, 1977 नागूलाल मालवीय जनता पार्टी,1980 दुर्गा दास सूर्यवंशी कांग्रेस, 1985 दुर्गा दास सूर्यवंशी कांग्रेस, 1990 गोविंद परमार भाजपा, 1995 माधव प्रसाद शास्त्री भाजपा,1998 बाबूलाल मालवीय कांग्रेस,2003 ताराचंद गोयल भाजपा, 2008 रोडमल राठौर भाजपा, 2013 अनिल फिरोजिया भाजपा, 2018 महेश परमार कांग्रेस।

भाजपा के सामने तीन बड़ी चुनौतियां

भाजपा के सूत्रों के अनुसार प्रदेश में तीन ऐसी बड़ी चुनौतियां है, जिसके कारण पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को मोर्चा संभालना पड़ा है। भाजपा इस बार चुनाव में 200 सीटों को जीतने का लक्ष्य रखा है। जिसे पूरा करने के लिए 3 चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। यही वजह है कि केंद्रीय नेतृत्व अभी से मध्यप्रदेश में पूरी ताकत झोंक रहा है। जानकारों का मानना है कि 15 महीने की कांग्रेस सरकार को छोड़ दें तो प्रदेश में 18 सालों से भाजपा की सत्ता है। ऐसे में पार्टी पर एंटी इंकम्बेंसी का खतरा है, केंद्रीय नेतृत्व को इसका आभास है।

सर्वे रिपोर्ट में ठीक नहीं

भाजपा के अंदरूनी और कुछ टीवी चैनलों की सर्वे रिपोर्ट में भाजपा- कांग्रेस में लगभग बराबर का मुकाबला है। 2018 के चुनाव में भाजपा को जादुई आकंड़े 116 से 7 सीट कम होने के कारण सत्ता से दूर रहना पड़ा था। सर्वे रिपोर्ट में इस बार भी कुछ क्षेत्रों में कांग्रेस को बढ़त मिलती बताई गई है। भाजपा अब इन इलाकों में पार्टी ज्यादा फोकस कर रही है।

पुराने और बड़े नेताओं की नाराजगी

भाजपा के सामने मूल विचारधारा के पुराने और बड़े नेताओं की नाराजगी भी एक चुनौती है। इसका नुकसान नगरीय निकाय व पंचायत चुनाव में पार्टी पहले ही उठा चुकी है। केंद्रीय नेतृत्व ने प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं को असंतुष्टों को मनाने की जिम्मेदारी सौंप दी है।
बगावत का भय
उम्मीदवारों का चयन बहुत ही गंभीरता से किया जाएगा। कुल मिलाकर बात यह है कि जिताऊ उम्मीदवार को ही टिकट मिलेगा। यदि यह फॉर्मूला लागू होता है तो कुछ पुराने विधायकों के टिकट कटने की आशंका है। ऐसे में जिसे टिकट मिलेगा, उसके विरोध में बगावत के आसार बन सकते हैं। इन परिस्थितियों से निपटने की तैयारी की जाएगी।

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