जीरे की खेती कैसे करें? जानें जीरे की खेती का तरीका

By AV NEWS

छौंक लगाना हो या सब्‍जी का स्‍वाद बढ़ाना हो, जीरा (cumin) हर जगह काम आता है। मशालों में जीरे की मांग सबसे अधिक होती है। जीरा में कई औषधीय गुण होते हैं। जीरा पेट की कई समस्याओं के लिए रामबाण औषधि से कम नहीं है।

जीरा में आयरन, कॉपर, कैल्शियम, पोटैशियम, मैगनीज, जिंक, मैगनीशियम जैसे कई मिनरल्स पाए जाते है। इतना ही नहीं, जीरा की खेती से किसानों को लाभ भी अधिक होता है। जीरे की खेती से किसान कम लागत में ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं। आइए जानते हैं जीरे की उन्नत खेती का तरीका और इस दौरान ध्यान रखने वाली बातों के बारें में ताकि किसान भाइयों को इसकी खेती से लाभ मिल सके।

आवश्यक जलवायु

जीरा ठंडी जलवायु का फसल है। इसकी खेती रबी की मौसम में की जाती है। इसके लिए अधिकतम तापमान 30 सेंटीग्रेड और न्यूनतम 10 डिग्रीसेंटीग्रेड से कम नहीं होनी चाहिए। हमारे देश में लगभग 80 प्रतिशत जीरे का उत्पादन राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में सबसे अधिक होती है।

जीरे का वानस्पतिक नाम व पौधे की विशेषता

जीरा (वानस्पतिक नाम- क्यूमिनम सायमिनम) एपियेशी परिवार का एक पुष्पीय पौधा है। जीरा इसी नाम के जैविक पौधे के बीज को कहा जाता है। यह पौधा पार्स्ले परिवार का सदस्य है। इसका पौधा 30-50 सेमी (0.98-1.64 फीट) की ऊंचाई तक बढ़ता है और इसके फ़लों को हाथ से ही तोड़ा जाता है। यह वार्षिक फसल वाला मुलायम एवं चिकनी त्वचा वाला हर्बेशियस पौधा है। इसके तने में कई शाखाएं होती हैं एवं पौधा 20-30 सेंमी ऊंचा होता है। प्रत्येक शाखा की 2-3 उपशाखाएं होती हैं एवं सभी शाखाएं समान ऊंचाई लेती हैं जिनसे ये छतरीनुमा आकार ले लेता है। इसका तना गहरे हरे रंग का सलेटी आभा लिए हुए होता है। इन पर 5-10 सेमी. की धागे जैसे आकार की मुलायम पत्तियां होती हैं। इनके आगे श्वेत या हल्के गुलाबी वर्ण के छोटे-छोटे पुष्प अम्बेल आकार के होते हैं। प्रत्येक अम्बेल में 5-7 अम्ब्लेट होती हैं।

मिट्टी

जीरे के लिए रेतीली चिकनी बलुई और दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। इसके अलावा उपजाऊ काली और पीली मिट्टी में भी जीरा की खेती खूब होती है। यदि खेत में जलजमाव की स्थिति हो तो वहां जीरे की फसल नहीं लगाएं। इसके लिए पूर्णतः समतल जमीन का होना अतिआवश्यक है।

खाद व उर्वरक

बुवाई के 2 से 3 सप्ताह पहले गोबर खाद को भूमि में मिलाना लाभदायक रहता है। यदि खेत में कीटों की समस्या है, तो फसल की बुवाई के पहले इनके रोकथाम हेतु अन्तिम जुताई के समय क्विनालफॉस 1.5 प्रतिशत, 20 से 25 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से खेत में डालकर अच्छी तरह से मिला लेना लाभदायक रहता है। ध्यान रहे यदि खरीफ की फसल में 10-15 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डाली गयी हो तो जीरे की फसल के लिए अतिरिक्त खाद की आवश्यकता नहीं है। अन्यथा 10 से 15 टन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से जुताई से पहले गोबर की खाद खेत में बिखेर कर मिला देनी चाहिए। इसके अतिरिक्त जीरे की फसल को 30 किलो नत्रजन 20 किलो फॉस्फोरस एवं 15 किलो पोटाश उर्वरक प्रति हेक्टेयर की दर से दें। फॉस्फोरस पोटाश की पूरी मात्रा एवं आधी नत्रजन की मात्रा बुवाई के पूर्व आखिरी जुलाई के समय भूमि में मिला देनी चाहिए। शेष नत्रजन की आधी मात्रा बुवाई के 30 से 35 दिन बाद सिंचाई के साथ दें।

कब-कब करें सिंचाई

जीरे की बुवाई के तुरन्त बाद एक हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए। जीरे की बुवाई के 8 से 10 दिन बाद दूसरी एक हल्की सिंचाई दे जिससे जीरे का पूर्ण रूप से अंकुरण हो पाए। इसके बाद आवश्यकता हो तो 8-10 दिन बाद फिर हल्की सिंचाई की जा सकती है। इसके बाद 20 दिन के अंतराल पर दाना बनने तक तीन और सिंचाई करनी चाहिए। ध्यान रहे दाना पकने के समय जीरे में सिंचाई नहीं करनी चाहिए ऐसा करने से बीज हल्का बनता है।

खरपतवार 

जीरे की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए बुवाई के बाद सिंचाई करने के दूसरे दिन पेडिंमिथेलीन खरतपतवार नाशक दवा 1.0 किलो सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर का 500 लीटर पानी में घोल बनाकर समान रूप से छिडक़ाव करना चाहिए। इसके 20 दिन बाद जब फसल 25 -30 दिन की हो जाये तो एक गुड़ाई कर देनी चाहिए।

फसल चक्र 

जीरे के बेहतर उत्पादन के लिए फसल चक्र अपनाना बेहद जरूरी है। इसके लिए यदि एक ही खेत में बार-बार जीरे की फसल नहीं बोनी चाहिए इससे उखटा रोग का अधिक प्रकोप होता है। इसके लिए उचित फसल चक्र अपनाना को अपनाना चाहिए। इसके लिए बाजरा-जीरा-मूंग-गेहूं -बाजरा- जीरा तीन वर्षीय फसल चक्र को अपनाया जा सकता है।

कटाई

जब बीज एवं पौधा भूरे रंग का हो जाएं तथा फसल पूरी पक जाए तो तुरंत इसकी कटाई कर लेनी चाहिए। पौधों को अच्छी प्रकार से सुखाकर थ्रेसर से मंढाई कर दाना अलग कर लेना चाहिए। दाने को अच्छे प्रकार से सुखाकर ही साफ बोरों में इसका भंडारण करना चाहिए।

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