नए मुख्यमंत्री यादव की दिनचर्या उनका कहना…खाने के लिए क्या जीना, कभी मोरधन तो कभी दूध पीना’

अक्षरविश्व न्यूज. उज्जैन:उज्जैन से दक्षिण विधायक डॉ. मोहन यादव को राज्यपाल मंगुभाई पटेल द्वारा मुख्यमंत्री के लिए नियुक्त करने के बाद भोपाल में शपथ ग्रहण की तैयारियां हुई। बुधवार सुबह 11 बजे से समारोह शुरू हुआ . मोहन यादव ने बुधवार को मुख्यमंत्री पद और गोपनीयता की शपथ ली। वे MP के 19वें मुख्यमंत्री बने।
डॉ. यादव की दिनचर्या सबसे निराली है, वे रात को मोरधन या दूध लेते हैं और ज्यादा समय काम करने पर ध्यान देते हैं। इस कारण सचिवालय की कार्यशैली में भी बदलाव के आसार हैं। डॉ. यादव देर रात करीब 3 बजे तक बंगले पर मिलते रहे। सुबह वे सर्किट हाउस पहुंचे और शपथ ग्रहण समारोह की तैयारियों के सिलसिले में संघ और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से संपर्क कर अधिकारियों से चर्चा करते रहे। डॉ. यादव रात को अपने निज सचिवों से अक्सर कहते रहते हैं खाने के लिए क्या जीना।
रात के समय वे केवल दूध या मोरधन ही लेते हैं ताकि सुबह जल्दी उठकर काम कर सकें। भगवान महाकाल सहित सभी देवी देवताओं का आशीर्वाद लेकर गए थे…! डॉ. यादव रविवार को भोपाल के लिए निकले तो सबसे पहले भगवान महाकाल सहित देवी देवताओं के दर्शन किए थे। सूत्रों का कहना है कि उन्हें आभास हो गया था कि कोई बड़ी जिम्मेदारी मिलने वाली है। इसी कारण वे देवी देवताओं का आशीर्वाद लेकर निकले थे। प्रदेश की कमान संभालने के बाद वे सबसे पहले महाकाल मंदिर में दर्शन पूजन करेंगे।
प्राइवेट एग्जाम दिया था
विक्रम विवि के सेवानिवृत्त प्रोफेसर गोपालकृष्ण बताते हैं कि डॉ. मोहन यादव ने उज्जैन विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष रहते हुए पॉलिटिकल साइंस में एमए किया। उस समय उम्र का बंधन होने से रेगुलर प्रवेश नहीं दिया जा सकता था। बाद में तय हुआ कि प्राइवेट एग्जाम देकर एमए किया जाएगा। पढ़ाई करने के लिए वह रवि सोलंकी और शरद दुबे उनके घर आकर पढ़ते थे। पीएचडी के लिए भी लगातार घर आकर चर्चा करते।
डॉ. यादव बचपन से संघर्षशील- कर्मठ रहे मप्र के नए मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का जीवन संघर्ष में बीता। तंगहाली के चलते बचपन में एक टीचर ने उन्हें अपने साथ रखकर पढ़ाया। खर्च भी उठाया। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से राजनीति की शुरुआत करने वाले मोहन यादव पॉलिटिकल मैटर घर में शेयर नहीं करते। मॉर्निंग रुटीन के पक्के हैं।
टीचर ने उठाया था खर्च
मोहन यादव के पिता पूनम चंद यादव और बड़ी बहन ग्यारसी यादव ने बताया कि मोहन शुरू से ही कर्मठ रहा है। वह खेती के साथ पढ़ाई भी करता था। बात उन दिनों की है, जब पिता मिल में नौकरी करते थे। घर में ज्यादा इनकम नहीं हो पाती थी। तब मोहन स्कूल जाते थे। पढ़ाई में अच्छा होने के कारण वहां सालिगराम नाम के टीचर ने उन्हें अपने साथ रख लिया। उसे पढ़ाया-लिखाया। पूरा खर्च भी उठाया। सालिगराम अब इस दुनिया में नहीं हैं।
घर में कम समय दे पाते हैं
बड़ी बहन कलावती बाई ने बताया कि ‘ मोहन की शुरू से ही सामाजिक कार्यों में रुचि रही है। कॉलेज के दिनों में विद्यार्थी परिषद में आ गए। घर में कम समय दे पाते थे। व्यस्त रहने के बावजूद घर में बड़ों के प्रति भी दायित्व निभाते हैं। समाज में किसी को लगता नहीं है कि उनके पास इतना बड़ा दायित्व हैं। समाज में हर जगह जाते हैं।
बेटी कर्तव्य पूरा कर घर पहुंचीं
सीएम के नाम की घोषणा के समय उनकी डॉक्टर बेटी आकांक्षा अपने ही अस्पताल में ऑपरेशन की तैयारी कर रही थीं। यह खबर मिली तो पहले उन्होंने ऑपरेशन किया और फिर घर पहुंचीं। आकांक्षा यादव ने बताया, ‘मैं अस्पताल में पेशेंट देख रही थी, तभी फोन आया। चूंकि पिताजी ज्यादातर समय बाहर ही रहते हैं। देर रात तक घर आते हैं। इस कारण उनसे कम ही इंटरेक्शन होता है। राजनीतिक बातें घर में नहीं होती। वह राजनीति के बीच में परिवार को नहीं लाते।
लंदन में स्ट्रीट पर चलते-चलते अचानक क्यों रुक गए थे डॉ. यादव…?
डॉ. यादव जब उज्जैन विकास प्राधिकरण में अध्यक्ष थे, तब लंदन में एक समारोह में पुरस्कार लेने पहुंचे थे। संयोग से भाजपा के वरिष्ठ नेता और उनके करीबी रूप पमनानी भी लंदन में थे। दोनों वहां मिले और एक स्ट्रीट पर टहल रहे थे। डॉ. यादव अचानक रुके और कुछ कदम लौटे।
सड़क किनारे अपने हेट को उलटा लगाए बैठे व्यक्ति की टोपी में कुछ सिक्के डाले। पमनानी ने पूछा ये क्या? डॉ. यादव ने बताया जब यहां कोई व्यक्ति उलटा हेट लगाकर बैठता है तो समझो वह भिखारी है। मुझे आज इस बात की खुशी मिली की कई बरसों तक हमारे यहां राज कर लूटने वाले वाले अंग्रेज अब भी भीख मांग रहे हैं।
‘नागपुर की संस्था आनंद-आनंद के विवेक गुरु का खास सानिध्य
डॉ. मोहन यादव की धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्म के साथ प्रकृति-पर्यावरण में खासी रूचि रही है। इसके लिए नागपुर की संस्था आनंद ही आनंद के संस्थापक विवेक गुरु का सानिध्य डॉ. यादव को लंबे समय से मिल रहा है। आध्यात्मिक गुरु विवेक जी नर्मदा ज्ञानपीठ की स्थापना कर नर्मदा परिक्रमा के बाद नर्मदा किनारे स्थित तीर्थ पर शोध कर रहे हैं और डॉ. यादव उनके साथ है। डॉ. यादव के निकटवर्ती लोगों का कहना है कि गुरुजी और डॉ. यादव के संबंध और संपर्क कभी भी सामने नहीं आए। विवेक गुरु उज्जैन स्थित सच्चिदानंद आश्रम की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।