बच्चों की परवरिश करने के लिए बेस्ट है ये Parenting Tips

By AV NEWS

बच्चों की परवरिश के लिए मां-बाप दिन रात मेहनत करते हैं। वे अपने बच्चों को अच्छी और जरूरी बातें सिखाने के लिए हर मुमकिन कोशिश करते हैं। बच्‍चों को अच्छी और जरूरी बातों को सिखाना पेरेंट्स की सबसे पहली और सबसे बड़ी जिम्‍मेदारी होती है। ऐसे में पैरेंट्स को ये याद रखना चाहिए कि वो जिस तरह से अपने बच्चों के सामने रहेंगे बच्चों पर भी वैसा ही फर्क पड़ेगा। पेरेंट्स को अपने नेचर का ध्यान रखते हुए बच्चों की परवरिश करनी चाहिए। आज इस आर्टिकल में हम आपको कुछ टिप्स बताने जा रहे हैं जो पैरेंटिंग के मामले में आपकी मदद कर सकते हैं।

बच्चों को न करें परेशान

पैरैंटिग के समय में वे सबसे जरूरी बातें अकसर भूल जाते हैं और वो यहां गलती कर बैठते हैं। बाद में जब बच्चे कुछ अच्छा नहीं सीख पाते तो वो इसके लिए खुद को ही जिम्मेदार ठहराते हैं। कई बार पैरेंट्स अपने बच्चों को ज्यादा ही अच्छा बनाने के लिए उन्हें परेशान कर देते हैं। बच्चों पर इसका गलत असर पड़ता है। अब ऐसी स्थिति में आपको कोशिश करनी चाहिए कि बच्‍चे के साथ मिलकर उन्हें बताएं कि सही क्या हो सकता है लेकिन उनका लक्ष्‍य उन्हें खुद चुनने दें।

अथॉरिटेटिव पैरेंटिंग है सही

अथॉरिटेटिव पैरेंटिंग में पेरेंट्स अपने बच्चे के साथ पॉजिटिव रिश्ता रखना चाहते हैं। वे बच्चों के साथ रिश्ते बेहतर करने के लिए काफी मेहनत भी करते हैं। वे अपने बच्चों के लिए खुद ही नियम बनाते हैं और बच्चों को उसका कारण भी खुलकर बताते हैं। ऐसे में अगर बच्‍चा पैरेंट्स के बनाए हुए नियम तोड़ता है तो उसे सबक के तौर पर पनिशमेंट भी मिलती है। ऐसे माता-पिता बच्चों को पॉजिटिव डिसिप्लिन सिखाने में यकीन रखते हैं। माना जाता है कि अथॉरिटेटिव पेरेंट्स से पले हुए बच्चे बड़े होकर जिम्मेदार नागरिक बनते हैं।

नेगलेक्‍टफुल पेरैंटिंग है गलत

कई बार देखा जाता है कि माता-पिता अपने बच्चों के प्रति बड़े ही लापरवाह होते हैं। जिसके कारण बच्चों पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। लापरवाह माता-पिता बच्चों पर ध्यान नहीं देते। बच्चे बाहर निकलते हैं लेकिन उन्हें यह भी नहीं पता होता कि बाहर लोगों से कैसे मिलना जुलना है? कैसे बात करनी है? क्या बात करनी है और कैसे बिहेव करना है? भविष्य में उन्हें इस चीज के लिए काफी परेशानी उठानी पड़ती है। ऐसे माता-पिता बच्‍चों की परेशानी को भी नजरअंदाज कर देते हैं बच्‍चों को घर में मेंटल सर्पोट नहीं मिल पाता जिसके कारण वे अकसर परेशान रहते हैं।

परमिसिव पेरैंटिंग से होती है दिक्कत

ऐसे पैरेंट्स बच्चों के लिए अच्छे-अच्छे नियम तो बनाते हैं लेकिन उन पर कभी अमल नहीं करते। अगर बच्चे गलती कर देते हैं तो वो उन्हें सही रास्ता न दिखाकर इग्नोर कर देते हैं। उनका मानना होता है कि बच्चा खुद ही सीख जाएगा। वे बच्चों की जिंदगी में दखल नहीं देना चाहते हैं। जब बच्चों पर कोई बड़ी परेशानी आ जाती है तभी वे इसमें इन्वोल्व होते हैं। एक स्टडी में पाया गया है कि परमिसिव पेरैंट्स के बच्चे एकेडमिक्‍स में दूसरों बच्चों से पीछे रह जाते हैं।

स्ट्रिक्ट पैरेंटिंग बच्चों का कॉन्फिडेंस लेवल करता है कम

इस तरह की पैरेंटिंग ऑथोरिटेनियन्‍ट पैरेंटिंग भी कही जाती है। इसके अंतर्गत बच्‍चों को अपने बारे में कुछ भी सोचने की आजादी नहीं होती है। जो पैरेंट्स कहते हैं वही पत्थर की लकीर है। ऐसे पेरेंट्स अपने बच्चों के लिए बस फैसले लेते हैं। इसके बाद बच्चों को क्या फील होता उन्हें इससे कोई मतलब नहीं होता। कई बार बच्चों से उनके मन की बात जानने में भी इंटरेस्टेड नहीं होते। ऐसे बच्चों का कॉन्फिडेंस लेवल डाउन हो जाता है और वे भविष्य में लड़ाकू स्वभाव के हो जाते हैं।

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