रेवती नक्षत्र और मातंग योग में 3 फरवरी को बसंत पंचमी

शुक्र और चंद्रमा के एक साथ आने से बनता है यह कलात्मक योग

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अक्षरविश्व न्यूज उज्जैन। मां सरस्वती का पर्व बसंत पंचमी 3 फरवरी को रेवती नक्षत्र और मातंग योग में मनाया जाएगा। यह एक शुभ योग है जिसमें दान करने से इंद्र के समान सुख मिलता है। ज्योतिषाचार्य पं. अजय कृष्ण शंकर व्यास ने बताया जब शुक्र और चंद्रमा एक साथ आते हैं तो यह कलात्मक योग बनता है। इस योग से लोगों में रचनात्मकता बढ़ती है और कार्यक्षेत्र में सफलता मिलती है। पंचांग के अनुसार बसंत पंचमी पूजा का शुभ मुहूर्त 3 फरवरी को प्रात: उदय तिथि है जो मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। रेवती नक्षत्र और मातंग योग में शुभ या मंगल कार्य कर सकते हैं। ऐसे में इस योग में यात्रा करना, गृह प्रवेश, एक काम की शुरुआत, विवाह आदि करना शुभ होता है।

मां सरस्वती का अवतरण दिवस
सनातन धर्म में बसंत पंचमी का विशेष महत्व है। इस दिन मां सरस्वती की पूजा का विधान है। हिंदू पंचांग के अनुसार हर माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी पर्व मनाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन मां सरस्वती का अवतरण हुआ था। साथ ही इस दिन से बसंत ऋतु की शुरुआत होती है। इस दिन मां सरस्वती के साथ मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की भी पूजा की जाती है।

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बसंत पंचमी स्पेशल प्रसाद
बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती को आप पीले रंग के प्रसाद का भोग लगा सकते हैं। क्योंकि माता को पीला रंग प्रिय है। अगर आप भी माता को भोग मीठा चढ़ाना चाहते हैं तो आप लड्डू का भोग लगा सकते हैं।

बसंत पंचमी पर सरस्वती पूजा
बसंत पंचमी के दिन ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती की पूजा होगी। इस दिन को श्री पंचमी के नाम से भी जानते हैं। वसंत पंचमी के अवसर पर कामदेव और रति की भी पूजा करते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, बसंत पंचमी को देवी सरस्वती का प्रकाट्य हुआ था, इसलिए इसे सरस्वती जयंती भी कहते हैं। इस दिन मां सरस्वती की पूजा करने से ज्ञान में वृद्धि होती है।

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विद्यारंभ संस्कार का दिन
मां सरस्वती को ज्ञान और विद्या की देवी कहा जाता है। बसंत पंचमी के दिन को अबूझ मुहूर्त पर उनकी पूजा करने का विधान है। मान्यता है कि इस दिन शिक्षा, परीक्षा आरंभ करना भी काफी शुभ माना जाता है इसलिए इस दिन विद्यारंभ संस्कार किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन शिक्षा आरंभ करने से व्यक्ति बुद्धिमान और ज्ञानी बनता है। इसके अलावा मां सरस्वती को संगीत और कला की जननी भी माना जाता है इसलिए किसी भी संगीत या करता की शिक्षा शुरू करने से पहले हमेशा उनकी पूजा की जाती है।

बसंत पंचमी के दिन यह करें
पूजा विधि मां सरस्वती की प्रतिमा या चित्र को उत्तर दिशा में लगाना चाहिए। इस दिशा में मूर्ति लगाने से इंसान को शिक्षा संबंधी कार्यों में सफलता मिलती है और सभी काम बिना किसी बाधा के पूरे होने लगते हैं। मां सरस्वती की मूर्ति या तस्वीर पर पीले वस्त्र अर्पित करें, सरस्वती स्तुति वंदना पाठ करें, इच्छित फल प्राप्ति के व्रत करें।

यह है पौराणिक कथा
ज्योतिषाचार्य पं. व्यास ने बताया कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ब्रह्मदेव ने ब्रह्मांड की रचना की थी लेकिन वह परेशान थे कि उनका सारी रचना शांत और मृत शरीर के समान थी क्योंकि ब्रह्मांड में कोई ध्वनि और संगीत नहीं थी। ऐसे में ब्रह्मजी भगवान विष्णु के पास गए और उन्हें अपनी परेशानी बताई। भगवान विष्णु ने उन्हें सुझाव दिया कि देवी सरस्वती उनकी मदद कर समस्या का समाधान करेंगी। ऐसे में भगवान ब्रह्मजी ने देवी सरस्वती का आह्वान किया।

जब वह प्रकट हुईं और अपनी वीणा से ब्रह्मजी की रचना को जीवन प्रदान किया। जब उन्होंने वीणा बजाना शुरू किया तो पहला अक्षर ‘सा’ निकला जो सात सुरों में पहला है। इस प्रकार ध्वनि रहित ब्रह्मांड को ध्वनि प्राप्त हुई। इससे ब्रह्माजी प्रसन्न हुए और उन्होंने सरस्वती का नाम बागेश्वरी रखा। उनके हाथ में वीणा है इसलिए उन्हें वीणापाणि भी कहा जाता है।

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