भगवान शिव की महिमा का वर्णन करने वाले शिव पुराण में महादेव को पंचदेवों में प्रधान अनादि सिद्ध परमेश्वर बताया गया है. सावन महादेव का सबसे प्रिय महीना है. इस माह भगवान शिव की पूजा अर्चना करने के कई उपाय हैं. सावन में सोमवार का व्रत रखने से भगवान शिव भक्तों पर असीम कृपा करते हैं जिससे जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और सुख समृद्धि में वृद्धि होती है. आइए जानते हैं सावन सोमवार के चौथे व्रत की तिथि और पूजा विधि…
सावन में चौथा सोमवार व्रत
सावन माह में चौथे सोमवार का व्रत 12 अगस्त को है. इसके पांच सावन पूर्णिमा के दिन अंतिम और पांचवां व्रत होगा.
व्रत के मुहूर्त
सबसे उत्तम अमृत मुहूर्त सुबह 5 बजकर 45 मिनट से सुबह 7 बजकर 25 मिनट तक
इसके बाद शुभ मुहूर्त सुबह के 9 बजकर 6 मिनट से सुबह 10 बजकर 46 मिनट तक
शाम की पूजा शाम 5 बजकर 28 मिनट से रात 8 बजकर 28 मिनट तक
व्रत पूजा विधि
सावन में चौथे सोमवार का व्रत रखने के लिए पानी में गंगाजल डालकर स्नान करने के बाद शुभ मूर्त में शिवलिंग का अभिषेक करें. इसके बाद घी, दही और शहद से धारा के रूप में अभिषेक करें. चंदन के तिलक लगाकर प्रभु को दीपक, फूल, बेलपत्र, भांग, शमी की पत्तियां और मिठाई चढ़ाएं. शिव चालीसा का पाठ करें और आरती के बाद प्रसाद ग्रहण करें. इस दिन दान करने से भी भगवान शिव प्रसन्न होते हैं.
सावन सोमवार पूजा मंत्र
ॐ नंदराज नमः
ॐ भूतनाथ नमः
ॐ कैलाश पति नमः
ॐ ज्योतिलिंग नमः
ॐ नटराज नमः
सावन सोमवार के दिन भगवान शिव के इन 3 स्वरूपों की करें पूजा
नीलकंठ
समुद्र मंथन के दौरान जब हलाहल विष निकला, तब भगवान शिव ने अपने भक्तों की रक्षा के लिए इस विष को स्वयं ग्रहण कर लिया था. भोलेनाथ ने इस विष को अपने कंठ में ही रोक लिया, जिसके कारण उनका कंठ नीला हो गया. मान्यता है कि तभी से भगवान शिव नीलकंठ के रूप में जाने जाते हैं. भोलेनाथ के इस स्वरूप की पूजा विशेष महत्व रखती है. कहा जाता है कि भोलेनाथ के नीलकंठ स्वरूप की विधि विधान के साथ पूजा अर्चना करने से शत्रु बाधा, षड्यंत्र और तंत्र-मंत्र का प्रभाव समाप्त होता है.
सावन के सोमवारके दिन नीलकंठ स्वरूप की पूजा का विशेष महत्त्व होता है. इस दिन शिवलिंग का गन्ने के रस से अभिषेक करें और भगवान शिव के नीलकंठ रूप का स्मरण करें और ॐ नमो नीलकंठाय मंत्र का जाप करें. ऐसा करने से कुंडली मे स्थित ग्रहों से संबंधित हर बाधा से छुटकारा मिल जाता है और जीवन में शांति व समृद्धि का आगमन होता है. शिव जी के इस स्वरूप की उपासना से मानसिक शांति मिलती है और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है.
नटराज
नटराज स्वरूप, भगवान शिव के एक अद्भुत और महत्वपूर्ण रूप हैं, जिन्हें नृत्य के देवता के रूप में पूजा जाता है. इस रूप में भगवान शिव को सृष्टि, पालन और संहार का प्रतीक माना जाता है. नटराज की मूर्ति में भगवान शिव को तांडव नृत्य मुद्रा में दिखाया गया है, जो सृजन, संरक्षण और विनाश का प्रतीक है. उनके एक हाथ में अग्नि होती है, जो विनाश का प्रतीक है, और दूसरे हाथ में डमरू होता है, जो सृजन और नाद ब्रह्म का प्रतीक होता है. एक हाथ अभयमुद्रा में होता है, जो भय को दूर करने का संकेत है, और उनके एक पैर के नीचे अपस्मार नामक राक्षस होता है, जो अज्ञान और अहंकार का प्रतीक है. उनके शरीर पर सर्प लिपटे होते हैं, जो ऊर्जा और पुनर्जन्म का प्रतीक हैं, और उनके सिर पर गंगा की धारा और चंद्रमा का मुकुट होता है.
भगवान शिव के नटराज स्वरूप की पूजा से रचनात्मकता और कला के क्षेत्र में सफलता मिलती है, बाधाओं का नाश होता है और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है. उनकी पूजा से आत्मज्ञान और आध्यात्मिक उन्नति होती है. भगवान नटराज की आराधना करने से व्यक्ति को जीवन में ऊर्जा, संतुलन और शांति प्राप्त होती है. यह शिव के एक अत्यंत शक्तिशाली और प्रेरणादायक रूप का प्रतिनिधित्व करता है, जो नृत्य, संगीत और कला के माध्यम से जीवन के विविध पहलुओं को उजागर करता है.
महामृत्युंजय
भगवान शिव का महामृत्युंजय स्वरूप मृत्यु के भय से मुक्ति दिलाने वाला है. भगवान शिव का यह स्वरूप सबसे शक्तिशाली और करुणामय स्वरूपों में से एक माना जाता है. महामृत्युंजय मंत्र “ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्” का जाप करते हुए भोलेनाथ की पूजा करने से दीर्घायु, स्वास्थ्य और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है. इस स्वरूप की उपासना से असाध्य रोगों से मुक्ति, भय का नाश और जीवन में शांति मिलती है. शिव के महामृत्युंजय स्वरूप की आराधना से व्यक्ति को अपार शक्ति और आत्मबल प्राप्त होता है.