हे महाकालेश्वर… माफ करना आपकी नगरी के ‘लुटेरों’ को!

परिवहन से लेकर ठहरने, चाय-नाश्ते और भोजन के दाम की दोगुना वसूली

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हे महाकालेश्वर… माफ करना आपकी नगरी के ‘लुटेरों’ को!

20 रुपए से ऊपर…चाय, कचौरी-समोसा, पोहा

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अक्षरविश्व न्यूज. उज्जैन:हर धार्मिक, आस्थावान व्यक्ति अवसर और पर्व विशेष पर बेहद उम्मीद लेकर आता है, लेकिन व्यवस्था बार-बार भगवान महाकाल के भक्तों के साथ अन्याय करती है, लेकिन श्रद्धालु ‘कोई बात नहीं आगे अच्छा होगा’ यह सोचकर खुद को दिलासा देते रहते हैं। नागपंचमी के एक दिन पहले ही शहर में श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा है। रविवार को शहर के हर मार्ग पर रेलमपेल मची हुई थी।

वहीं मनमानी भी आसमान पर थी। परिवहन के साधनों के साथ ही ठहरने के स्थान, चाय-नाश्ते और भोजन के दामों में लूट मची है। एक स्थान से दूसरे स्थान जाने की दूरी के प्रति सवारी का जो 10- 15 रु. किराया लगता है, उसके 50-75रु. प्रति सवारी वसूला जा रहा था। 5 से 7 रु. की कट चाय के 15-20 रु. लिए जा रहे थे। कचोरी-समोसा-पोहा 25 से 30 रुपए बेचा जा रहा था। ऐसा ही कुछ भोजन की भोजन की थाली का था। होटल्स, धर्मशाला, रेस्ट हाऊस में ठहरने के ऐसा किराया रखा गया जो पहले कभी नहीं रहा। 24 घंटे, एक-दो-तीन दिन तो दूर 5-5, 6-6 घंटे के लिए कमरा उपयोग पर करने के 1500-2000 रुपए लिए गए।

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प्रशासन को श्रद्धालुओं से उम्मीद: श्रद्वालु अपने वाहन निर्धारित वाहन पार्किंग में ही खड़े करें। श्रद्धालु अपने साथ कीमती सामान लेकर नहीं आए। मोबाइल का उपयोग पूर्णत: प्रतिबंधित रहेगा। श्रद्धालु अपनी चरण पादुकाएं जूता स्टैंड पर उतारकर टोकन अवश्य प्राप्त करें।

जो तटस्थ हैं समय, लिखेगा उनका भी अपराध

लोग जनप्रतिनिधि इसलिए चुनते हैं ताकि वे लोगों की बात उचित माध्यम तक पहुंचा सकें और बेहत्तर व्यवस्था बनाने के लिए पहल कर सके। लेकिन उज्जैन की राजनीति इन दिनों किसी और ही दिशा में घूमती नजर आ रही है। इलेक्शन मोड में आ चुके नेताओं का पूरा फोकस इन दिनों विधानसभा के जोड़-घटाव पर ही केंद्रित है।

शहर में करीब एक माह से अधिकमास के कारण लगभग हर दिन अव्यवस्था सामने आ रही है, पर सांसद-विधायक-पार्षद और जनप्रतिधियों की लम्बी चौड़ी फौज में से किसी ने भी आवाज उठाने की जहमत नहीं उठाई। अफसर आएंगे-चले जाएंगे, लेकिन जनप्रतिनिधियों को तो यही रहना है और शायद यह नहीं जानते कि ‘समय’ सब देख रहा है। और ‘समय’ तटस्थ रहने वालों से भी इसकी वजह पूछेगा जरूर।

व्यवस्था मतलब केवल दर्शन करना ही नहीं…

अब भगवान महाकालेश्वर के दर्शन को ही लीजिए। प्रशासन के नुमाइंदे नए-नए प्रयोग कर अपने मॉडल लागू करते है। ऐसा लगता है कि प्रशासन का उद्देश्य इंतजाम के नाम पर केवल श्रद्धालुओं को दर्शन के लिए मंदिर में प्रवेश कराना और फिर भीड़ नियंत्रण का हवाला देकर परिसर से बाहर की ओर लाना है।

अन्य अव्यवस्था, मनमानी से किसी को कोई लेना-देना नहीं है। नागपंचमी के लिए अफसरों की फौज तैनात हो गई और लम्बे-चौड़े दिशा-निर्देश जारी कर दिए गए हंै। नहीं बदली तो हमारी शहर की मनमानी। भीड़ के उमड़ते ही शहर से नियम और शराफत दोनों गायब हो जाती है। ऐसी लूट मचती है कि जैसे कमाने का बाद में मौका ही नहीं मिलने वाला है।

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