हे महाकाल भक्तों माफ करना… व्यवस्था आपके लिए नहीं…
हे महाकाल भक्तों माफ करना… व्यवस्था आपके लिए नहीं। बेरिकेड्स के बीच सवारी के साथ चलने में अपनी शान का दिखावा करने वालों के लिए हैं। हे महाकाल भक्त आपको प्रभु के दर्शन कहां से कैसे होगें यह आप तय करें। हमें तो चिंता पालकी के पास या आगे पीछे चलकर अपनी शान बघारने वालों की हैं।
दरअसल सवारी में समस्या की मूल जड़ बेरिकेड्स, पालकी को घेरकर चलने वाले असीमित महाकालेश्वर मंदिर के पुजारी, उनके परिजन, पुलिसकर्मी, कथित स्वयं सेवक और कहार। यह इतनी अधिक संख्या मे चलते हैं कि प्रजा को राजा के दर्शन तो दूर पालकी तक की झलक नहीं मिलती हैं। सवारी के दौरान कोई बीच मार्ग पर नहीं आ सकें, इसके लिए सड़कों के दोनों तरफ बेरिकेड्स लगाकर आम श्रद्धालुओं को कैद कर दिया जाता है।
सवारी के पूर्व मार्ग तो पूरा खाली ही रहता हैं। सवारी निकलने में कोई दिक्कत कहां? परेशानी तो सवारी मार्ग के दोनों किनारे पर बेरिकेड्स में बुरी तरह से फंसे हुए भक्तों की हैं। जिन्हें एक तरह से सवारी मार्ग पर बंधक बना दिया जाता हैं। जो जहां खड़ा, वही का होकर रह जाता है। इनकी कोई सुनवाई नही। स्थानीय नागरिकों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
कभी बेरिकेड्स के पीछे जाकर देखें इंतजाम को
महाकालेश्वर सवारी मार्ग को 6-7 फीट ऊंचे बेरिकेड्स लगाकर भगवान महाकाल की सवारी निकालने वालों ने कभी बेरिकेड्स के पीछे जाकर इंतजाम देखें है क्या..? बेरिकेड्स के पार जाकर उस व्यवस्था से होने वाली दिक्कतों जानने की कोशिश की,जो आम लोगों को भगवान महाकाल के दर्शन में होती है।
अगर की जानने का प्रयास करें तो पता चलेगा कि आप ने, आम लोगो के लिए राजा महाकाल के दर्शन की कैसी व्यवस्था कर रखी है। ‘साहब लोग’ सवारी के दौरान बेरिकेड्स में फंसकर देखें कि वहां क्या हाल होता है भक्तों का..? बेरिकेड्स में फंसने के बाद महिला, बच्चों और बुजर्गों का क्या हाल होता है?
जाना बंद कर दिया हैं
इस वर्ष की तीन सवारी के दौरान देखने में आया कि राजा महाकाल के नगर भ्रमण के दौरान दर्शन के लिए श्रद्धा से आने वाले भक्तों को तो थप्पड़-धक्के, तिरस्कार मिल रहे है। उज्जैन के लोग व्यवस्था से जबरदस्त दु:खी हैं लेकिन कर क्या सकते हैं? उज्जैन में भी फैसले, उज्जैन में बाहर से आये लोग ले रहे हैं। जिन्हें आवाज उठाना चाहिए, वे इसलिए खामोश है कि उन्हें बेरिकेड्स खास महत्व मिलता है। ऐसे में फिर कौन बोलेगा? हालात इस कदर खराब है कि लोगो ने परिवार सहित सवारी के दर्शन करने जाना बंद कर दिया हैं।
राजनीति में कैसे-कैसे ‘डर’
जब बहुत पाने की तमन्ना होती है टॉप तो उतना ही डर खोने का भी होता है। राजनीति में इन दिनों यह उक्ति विधानसभा चुनाव के दावेदारों पर बिल्कुल सटीक बैठ रही है। उन्हें टिकट मिलेगा या नहीं इससे ज्यादा डर इस बात का है कि कहीं संगठन से कोई ऐसी जिम्मेदारी नहीं मिल जाए जो टिकट की दौड़ से बाहर कर दे।
पिछले दिनों चुनाव प्रबंध समिति के संयोजक नरेंद्र सिंह तोमर और प्रदेश भाजपा चुनाव प्रभारी भूपेंद्र यादव की बैठक के बाद जिला प्रभारी नियुक्त करने की खबर बाहर आई तो फिर ‘डर की लहर’ सिहरन पैदा करने लगी। उज्जैन के पदाधिकारी तो इतने परेशान हुए कि सीधे प्रदेश पदाधिकारियों से फोन कर गुहार लगा बैठे कि किसी भी तरह उनका नाम सूची में नहीं आ जाए। दूसरी ओर से भी जवाब मिला डरो मत डर के आगे ही जीत है। संयोजकों के नाम तय होने के बाद कई ने राहत की सांस ली।
आसान नहीं होगा स्वच्छता सर्वेक्षण अभियान में टॉप टेन मे आना
स्वच्छ सर्वेक्षण दल अगस्त के पहले पखवाड़े में उज्जैन पहुंच जाएगा। उज्जैन के लिए इस सर्वेक्षण में खुद को सर्वश्रेष्ठ साबित कर टॉप टेन में आना आसान नहीं होगा। उज्जैन को दस्तावेजीकरण में भले अच्छे अंक हासिल करने की उम्मीद है,लेकिन अपने पक्ष में जनता का फीडबैक और वाटर प्लस सर्टिफिकेट हासिल करना आसान नहीं होगा। शहरभर में सड़कें खोदी पड़ी हैं। गंदगी का आलम यह है कि जनप्रतिनिधि ही सफाई व्यवस्था पर ही सवाल उठ रहे हैं। ऐसे में आमजन स्वच्छ सर्वेक्षण दल के सामने क्या फीडबैक देंगे कहना आसान नहीं।
नगर निगम ने इस बार निगमकर्मियों और उनके स्वजन के लिए कई सुविधाएं दी हैं। इसका असर जरूर पडेगा क्योंकि सर्वेक्षण में इसके लिए अलग से अंक निर्धारित हैं। इस बार स्वच्छ सर्वेक्षण नौ हजार अंकों का होना है। इसमें से 1200 अंक वाटर प्लस सर्टिफिकेट के रहेंगे। इस वर्ष अब तक वाटर प्लस के लिए सर्वेक्षण ही नहीं हुआ है। वाटर प्लस सर्टिफिकेट प्राप्त करने के लिए नालों की सफाई, नदी में सीवेज का पानी मिलने से रोकना, गंदा और साफ पानी अलग-अलग करना जैसे काम करना होते हैं। बता दें कि पिछले दिनों बारिश के दौरान दो अवसर ऐसे आए जब शहर के नालों का गंदा पानी शिप्रा में जा मिला था और इसके लिए निगम की खासी आलोचना भी हुई थी।
एमपी स्टेट बार कौंसिल ने चेताया
मध्य प्रदेश के एक लाख से अधिक वकीलों का पंजीयन करने वाली सर्वोच्च संस्था एमपी स्टेट बार कौंसिल के वाइस चेयरमैन ने साफ किया है कि राज्य के सभी वकील इंटरनेट मीडिया पर अनर्गन पोस्ट से बचें। विशेषकर न्यायपालिका, न्यायाधीश व स्टेट बार के विरुद्ध इस तरह की टिप्पणी भारी पड़ सकती है। इस सिलसिले में विगत दिनों एक वकील की सनद यानि वकालत का लाइसेंस निलंबित किया जा चुका है। संविधान ने बोलने व लिखने की आजादी दी है, इसका यह आशय नहीं कि कुछ भी किया जाए। ऐसा करने से वकालत जैसे नोबल प्रोफेशन की गरिमा का हनन होता है। यह रवैया वकीलों के बीच अनुशासन को बढ़ावा देता है। कदारण के लिए दंड का प्रविधान है। इसलिए कदाचरण न किया जाए। ऐसा करने से लंबे समय के लिए वकालत करने से वंचित होने का खतरा मंडराने लगता है।