वोट बैंक देखें या शहरवासियों की इच्छा..?
उज्जैन। नगर निगम, उज्जैन के महापौर पद के प्रत्याशी के लिए भाजपा अभी तक अपने प्रत्याशी के नाम की घोषणा नहीं कर पाई है। नाम की घोषणा नहीं होने से जहां पार्टी कार्यकर्ताओं में उहापोह के हालात है। वहीं शहरभर में चर्चा है कि देखें इस बार भाजपा परंपरागत वोट बैंक को ही अपना आधार बनाती है या फिर अनुसूचित जाति के अन्य किसी वर्ग के प्रत्याशी को मौका देकर मिथक को तोडऩा चाहती है?
भाजपा की ओर से उज्जैन शहर का महापौर पद का प्रत्याशी कौन हो? इसे लेकर भाजपा के अंदर ही खलबली मची हुई है। हालात यह है कि मंत्री, सांसद, विधायक जहां चुप्पी साधे बैठे हैं। वहीं नगर भाजपा अध्यक्ष भोपाल का मुंह ताक रहे हैं। इनमें से कोई भी इस समय यह कहने की स्थिति में नहीं है कि महापौर पद का प्रत्याशी कौन हो सकता है? सभी अनौपचारिक चर्चा कर रहे हैं और अधिकृत रूप से कुछ कहने से बचते हुए इतना कह रहे हैं-पार्टी हायकमान जो तय करेगा, वही होगा उज्जैन शहर का महापौर पद का प्रत्याशी।
क्या कहते हैं शहरवासी ?
इधर शहरवासियों में जो चर्चा है, वह राजनीतिक सोच के विपरित है। वोट बैंक से अलग हटकर शहरवासियों की आम सोच यह सामने आ रही है कि इस बार भाजपा को वोट बैंक से हटकर अनुसूचित जाति के किसी अन्य वर्ग से कार्यकर्ता को टिकट देना चाहिए। इसके पीछे उनका कहना है कि वे पिछले चार नगर निगम चुनावों से लगातार एक ही वर्ग के प्रत्याशी को चुन रहे हैं। इस बार कुछ बदलाव होना चाहिए।
यह मांग अनुसूचित जाति के अन्य वर्गो से भी उठ रही है। इस बात को लेकर भी जनप्रतिनिधियों तथा पार्टी के दायित्ववानों ने चुप्पी साध रखी है। पूछने पर वे इतना ही कहते हैं- पार्टी को तय करना है। यदि हमने अपना मत दिया तो हो सकता है कि कोई एक वोट बैंक नाराज हो जाए। ऐसे में भोपाल में बैठे नेताओं पर ही छोड़ दिया है। ताकि भोपाल का निर्णय विपरित जाए तो कम से कम स्थानीय लोग तो बुराई से बच जाएं।