उज्जैन में ब्लैक फंगस से नहीं हुई मौत: डॉ. वैद्य

By AV NEWS

रैपिड रिस्पांस टीम के डॉक्टर ने कागज पर लिख दिया था, उसे आधार मान रहे परिजन

डॉ.वैद्य ने कलेक्टर को लिखा पत्र, डेथ ऑडिट में भी स्पष्ट किया

उज्जैन।आरडी गार्डी मेडिकल कॉलेज में भर्ती ढांचा भवन निवासी मरीज मोहनलाल पंवार की मौत ब्लैक फंगस से नहीं हुई है। उस मरीज की कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव थी और उसे निमोनिया था। शुगर अधिक होने के कारण हालत गंभीर बनी हुई थी। इसी के चलते मरीज की मौत हुई है। मरीज के परिजनों को कहा गया था कि यदि उन्हे लगता है कि मौत ब्लैक फंगस से हुई है, तो उसका पोस्टमार्टम करवा लो। हमने इस संबंध में कलेक्टर को पत्र लिखकर स्पष्ट कर दिया है। वहीं डेथ ऑडिट की रिपोर्ट भी देखी जा सकती है। जिसमें स्पष्ट है कि मरीज को ब्लैक फंगस थी ही नहीं। यह रैपिड रिस्पांस टीम के डॉक्टर की गलती है, जिसे मरीज के परिजन आधार बना रहे हैं।

यह दावा किया है आरडी गार्डी मेडिकल कॉलेज के वरिष्ठ नैत्र सर्जन और कोविड के नोडल अधिकारी डॉ.सुधाकर वैद्य ने। अक्षर विश्व से चर्चा में उन्होने कहा कि वे इस बात का खंडन कर रहे हैं कि मोहनलाल पंवार को ब्लैक फंगस बीमारी थी। मोहनलाल को दो दिन पूर्व शा.माधवनगर से हमारे यहां शिफ्ट किया गया था। रैपिड रिस्पांस टीम के किसी डॉक्टर ने पर्चे पर लिख दिया था कि मरीज को ब्लैक फंगस है।

यह लिखने के पूर्व आरआरटी ने किसी ईएनटी स्पेशलिस्ट को नहीं दिखाया और न ही राय ली। उस आधार पर मरीज के परिजनों ने कह दिया कि मोहनलाल को ब्लैक फंगस थी। हमारे यहां मरीज आया तो बहुत गंभीर था। उसे निमोनिया था। शुगर बढ़ी हुई थी। उसकी ऐसी स्थिति नहीं थी कि वह बहुत अधिक दिन जीवित रह जाता। हमने मरीज के परिजन के कहने पर उसकी इएनटी स्पेशलिस्ट से जांच करवाई। उन्होने कहाकि ब्लैक फंगस नहीं है। इसके बाद निमोनिया का उपचार देना शुरू किया गया। हमने मरीज के परिजन को कोई इंजेक्शन नहीं लिखा, जो कि ब्लैक फंगस बीमारी में दिया जाता है।

बहुत रिस्की है एम्फोटेरेसिन-बी इंजेक्शन
डॉ. वैद्य के अनुसार एम्फोटेरेसिन-बी इंजेक्शन अनसेफ है। इसका सीधा असर किडनी पर होता है। इस इंजेक्शन को ब्लैक फंगस के मरीज को देने से पूर्व पूरी जांचें होती है जिसमें करीब 20 घण्टे लगते हैं। मरीज की फिटनेस महत्वपूर्ण स्थान रखती है। मरीज की किडनी की जांच करवाई जाती है। जांच रिपोर्टआने के बाद उसे ड्रिप लगाई जाती है। इसके बाद टेस्ट ड्रग दिया जाता है। इसके करीब 15 घंटे बाद देखा जाता है कि कोई रिएक्शन तो नहीं है? नहीं होने पर उक्त इंजेक्शन के लगातार डोज दिए जाते हैं। यह रामबाण औषधि नहीं है।

एक मरीज को लगाना बंद किए
डॉ.वैद्य के अनुसार एक मरीज के परिजन सूरत से इंजेक्शन लाए थे। तीन इंजेक्शन लगाने के बाद मरीज की किडनी पर असर आ गया। इस पर तत्काल निर्णय लिया गया और एम्फोटेरेसिन-बी इंजेक्शन लगाना बंद कर दिया। हमारे लिए मरीज की जान सबसे महत्वपूर्ण है। अभी भर्ती ३4 मरीजों में से ३0 के इंजेक्शन प्रशासन के मार्फत आ गए हैं। लेकिन इन सभी की किडनी की जांच रिपोर्ट नहीं आई है। आज दोपहर बाद रिपोर्ट आने पर सभी को उक्त इंजेक्शन दिया जाएगा, लेकिन इसके पूर्व जांच प्रक्रिया से ये लोग गुजरेंगे।

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