उत्पन्ना एकादशी कब ? जानें इसका महत्त्व व पूजा विधि

हर वर्ष मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को उत्पन्ना एकादशी मनाई जाती है। तदनुसार, इस वर्ष 8 दिसंबर को उत्पन्ना एकादशी है। यह दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु को समर्पित होता है। इस दिन विधि विधान से भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। साथ ही उनके निमित्त व्रत उपवास रखा जाता है। धार्मिक मान्यता है कि एकादशी व्रत करने से अनजाने में किए हुए सारे पाप कट जाते हैं। साथ ही जीवन में सुख, समृद्धि और मंगल का आगमन होता है। आइए, उत्पन्ना एकादशी की तिथि, शुभ मुहूर्त एवं पूजा विधि जानते हैं

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उत्पन्ना एकादशी शुभ मुहूर्त
इस साल उत्पन्ना एकादशी का व्रत मार्गशीर्ष माह में 8 दिसंबर को मनाई जाएगी. एकादशी तिथि का प्रारंभ 8 दिसंबर सुबह 5 बजकर 6 मिनट से होगा और अगले दिन 9 दिसंबर सुबह 6 बजकर 31 मिनट पर समाप्त होगी. उत्पन्ना एकादशी व्रत का पारण समय 9 दिसंबर दोपहर 1 बजकर 31 मिनट से लेकर 3 बजकर 20 मिनट तक रहेगा. इस व्रत में जप तप, तपस्या और जान करने से जीवन में हमेशा सुख शांति बनी रहती है.

उत्पन्ना एकादशी का महत्व
कहा जाता है कि उत्पन्ना एकादशी का व्रत रखने की वजह से मनुष्य के पूर्व जन्म और वर्तमान दोनों जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं. अगर आप चाहते हैं कि आपके पापों का नाश हो जाए और आपके जीवन में सुख ही सुख हो तो उत्पन्ना एकादशी का व्रत आपके लिए सबसे उत्तम है. उत्पन्ना एकादशी का व्रत करने से भगवान विष्णु की असीम कृपा प्राप्त होती है और सभी तीर्थों के दर्शन के बराबर फल मिलता है.

उत्पन्ना एकादशी पूजा विधि

उत्पन्ना एकादशी व्रत रखने वाले व्यक्ति को पहले दिन ही यानी दशमी का रात्रि को भोजन नहीं करना चाहिए.

एकादशी के दिन प्रात: काल उठकर स्नान ध्यान के बाद व्रत का संकल्प कर लेना चाहिए.

इसके बाद विष्णु जी की पूजा करनी चाहिए और उन्हें पुष्प, जल, धूप, दीप, अक्षत आदि चीजें चढ़ानी चाहिए.

उत्पन्ना एकादशी के दिन केवल फलों का ही भोग भगवान को लगाना चागिए.

भोग लगाने के बाद भगवान विष्णु जी की आरती करनी चाहिए.

समय समय पर भगवान विष्णु का सुमिर करना चाहिए.

उत्पन्ना एकादशी पर रात्रि में जागरण करना जरूरी है.

अगले दिन द्वादशी को व्रत का पारण कना चाहिए.

इस दिन किसी जरूरतमंद व्यकित या ब्राह्मण को भोजन और दान दक्षिणा देनी चाहिए.

इसके बाद स्वयं को व्रत खोलने के लिए तैयार करना चाहिए और पारण के शुभ मुहूर्त में ही व्रत खोलना चाहिए.

उत्पन्ना एकादश के दिन घर में चावल नहीं बनाने चाहिए और न ही खाने चाहिए. एकादशी के एक दिन पहले से ही चावल खाने छोड़ देने चाहिए. कहा जाता है कि जो भी इस व्रत को करेगा उसके घर को लक्ष्मी जी कभी खाली नहीं होने देंगी और जीवन की सभी परेशानियों को दूर कर देंगी. इस व्रत में किया गया दान का फल कई जन्मों तक मिलता रहता है.

पारण का समय
साधक 9 दिसंबर को दोपहर 01 बजकर 15 मिनट से लेकर 03 बजकर 20 मिनट के मध्य व्रत खोल सकते हैं। इस समय से पूर्व पूजा कर जल और फल ग्रहण कर सकते हैं।

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