हिन्दू धर्म में हर तिथि हर व्रत का अलग-अलग महत्व है. साल में 24 एकादशी के व्रत रखे जाते हैं. हर महीने में 2 बार एकादशी व्रत किया जाता है. एक कृष्ण और दूसरा शुक्ल पक्ष में. धार्मिक मान्यता है कि एकादशी तिथि पर जगत के पालनहार भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की विशेष पूजा करने से जातक को शुभ फल की प्राप्ति होती है.
मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु के निमित्त उत्पन्ना एकादशी का व्रत किया जाता है. मार्गशीर्ष महीने की कृष्ण पक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है. माना जाता है कि अगर आप एकादशी का व्रत शुरू करना चाहते हैं तो उत्पन्ना एकादशी से व्रत शुरू कर सकते हैं, क्योंकि एकादशी की शुरुआत इसी दिन से हुई है. इस बार एकादशी पर कई शुभ योग बन रहे हैं.
कब मनाई जाएगी उत्पन्ना एकादशी
वैदिक पंचांग के अनुसार, इस बार उत्पन्ना एकादशी तिथि की शुरुआत 25 नवंबर को रात 02 बजकर 56 मिनट पर हो रही है. समापन अगले दिन 26 नवंबर की रात 01 बजकर 43 मिनट पर होगा. एकादशी तिथि का उदय 26 नवंबर को है, इसलिए उदया तिथि के अनुसार उत्पन्ना एकादशी का व्रत 26 नवंबर को रखा जाएगा.
कई शुभ योग में मनाई जाएगी एकादशी
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार एकादशी पर सबसे पहले प्रीति योग बन रहा है. इसके बाद आयुष्मान योग और शिववास योग भी बन रहे हैं. इनमें लक्ष्मी नारायण की पूजा का अलग ही महत्व है. भगवान भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं. घर-परिवार में सुख, समृद्धि और खुशहाली आती है.
उत्पन्ना एकादशी महत्व
हर एकादशी का अलग-अलग महत्व बताया गया है. मार्गशीर्ष में आने वाली एकादशी तिथि को मुर राक्षस योग निद्रा में लीन भगवान विष्णु पर प्रहार करने वाला था, तभी देवी एकादशी प्रकट हुईं और उन्होंने मुर से युद्ध किया और उसका अंत कर दिया. इस दिन देवी एकादशी की उत्पत्ति हुई, इस वजह से इस एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहा गया. जो लोग एकादशी व्रत का प्रारंभ करना चाहते हैं, वे उत्पन्ना एकादशी से एकादशी व्रत शुरू कर सकते हैं. भगवान विष्णु की कृपा से पाप मिटते हैं और जीवन के अंत में उनके श्री चरणों में स्थान मिलता है.
व्रत का संकल्प
एकादशी का व्रत रखने वालों को एक दिन पहले यानि दशमी तिथि से ही सात्विक भोजन करना चाहिए और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
इसके बाद एकादशी तिथि की सुबह ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए और भगवान विष्णु के समक्ष व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
पूजा सामग्री
पूजा स्थल के लिए भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर
तुलसी के पत्ते (इन्हें एकादशी तिथि से पहले ही तोड़ लें)
अक्षत (अटूट चावल)
दीपक, धूप, अगरबत्ती
गंगाजल, फल और फूल
पंचामृत (दही, घी, दूध, शहद, और शक्कर)
पूजा विधि
प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और पूजा स्थल की भी सफाई करें। इसके बाद भगवान विष्णु का आसन स्थापित करें।
गंगाजल से भगवान विष्णु का जलाभिषेक करें।
इसके बाद भगवान को पीले वस्त्र अर्पित करें।
तुलसी दल, फूल, अक्षत, और फल पूजा के दौरान आपको भगवान विष्णु को अर्पित करने चाहिए।
दीपक जलाकर विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें या “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें।
इसके बाद भगवान विष्णु को भोग लगाएं और अंत में आरती करें।
व्रत रखने वालों को दिनभर उपवास का पालन करना चाहिए। हालांकि, नियमित मात्रा में फलाहार इस दिन किया जा सकता है।
रात में भगवान विष्णु के भजन-कीर्तन करें और संभव हो तो जागरण करें।
व्रत का पारण
अगले दिन (द्वादशी) को सूर्योदय के बाद एकादशी का पारण आपको करना चाहिए। व्रत का पारण आप आंवला, खीर आदि खाकर कर सकते हैं।
व्रत के पारण के साथ ही ब्राह्मणों को भोजन कराना और यथासंभव दान करना भी शुभ माना जाता है।