कांग्रेस: 25 साल का बिछोह तय

शैलेष व्यास :जिले में भाजपा ने इंदौर की तरह क्लीन स्वीप तो नहीं किया है,लेकिन सत्ता से कांग्रेस का 25 साल का बिछोह तय हो गया है। ताजा परिणामों से भाजपा के लोगों की आंखें भी हैरत से फटी दिख रही हैं। विश्लेषक अब जीत को लाड़ली बहना की सफलता और मोदी मैजिक जैसे पैमानों पर तौलेंगे लेकिन कांग्रेस के लिए इस हार को समझ पाना और उबर पाना आसान नहीं होगा।
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कांग्रेस कार्यकर्ताओं और नेताओं के हताश चेहरे कहानी बयां कर रहे हैं। 2018 में 16 महीने के लिए सत्ता में वापसी करने के साथ कांग्रेस ने जैसे-तैसे संगठन को खड़ा करने की कोशिश की थी। इन चुनावों से पहले कमल नाथ की अगुवाई में कांग्रेस बीते वर्षों से कहीं ज्यादा आत्मविश्वास से भरी दिख रही थी। दावा भी किया जा रहा है कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने बीते दौर में सबसे ज्यादा मेहनत इन चुनावों में की है। परिणामों के साथ अब कांग्रेस के लिए अपने कार्यकर्ताओं को अगले पांच वर्षों के लिए संभालकर रखना और संगठन से जोड़े रखना बड़ी चुनौती बनता दिख रहा है। कांग्रेस ने ताजा चुनावों के लिए कम से कम साढ़े तीन साल की तैयारी की थी। टिकट से पहले पार्टी स्तर पर फीडबैक लेने के साथ स्वतंत्र एजेंसियों से भी सर्वेक्षण करवाए गए थे। इसके बाद भी परिणाम कांग्रेस को सोचने पर मजबूर कर रहे हैं कि आखिर कमी कहां रह गई। अति आत्मविश्वास या भाजपा का कांग्रेस पर उसी के हथियार से वार। भाजपा ने पहली सूची कांग्रेस से काफी पहले घोषित कर दी। इसमें ऐसे वरिष्ठ नेताओं के नाम थे, जिन्हें कांग्रेस उम्रदराज और जीत की दौड़ से दूर मान बैठी थी।
एक साल पहले की घोषणा का लाभ नहीं
कांग्रेस ने चुनाव से एक साल पहले महिला सम्मान योजना और तमाम घोषणाएं कर दी थी उसे बढ़त की उम्मीद थी। भाजपा ने उसी तर्ज पर लाड़ली बहना का ऐलान किया और लागू करते हुए खातों में राशि पहुंचा भी दी।यानी कांग्रेस की घोषणा से पहले उस पर अमल करते हुए उसी को उसी के हथियार से मात दे दी। अब जब परिणाम घोषित हो गए हैं तो कांग्रेस के अंदर से सवाल खड़े होंगे कि आखिर क्यों इतने वर्षों में कांग्रेस अपना संगठन खडा नहीं कर सकी। कार्यकर्ता पहले नाराज थे कि 2018 में सत्ता मिलने के बाद नेता उसे न संभाल नहीं सके ना ही कार्यकर्ताओं को लाभ दिया। अब बिना सत्ता के सूखे में कार्यकर्ता विपक्ष में पार्टी के झंडे उठाने के लिए मुश्किल से राजी होगा। आने वाले आम चुनाव में कांग्रेस के लिए लोकसभा क्षेत्र से अदद उम्मीदवार ढूंढना भी चुनौती से कम नहीं होगा।
बूथ, सेक्टर, मंडलम समितियां नहीं टिकी
मार्च 2020 में अल्पमत में आने के कारण सरकार छिनने के बाद कमल नाथ ने संगठन को भाजपा से मुकाबले के तैयार करने के लिए बूथ, सेक्टर और मंडलम पर काम किया। कांग्रेस ने भाजपा के संगठन से मुकाबला करने के लिए बूथ, सेक्टर और मंडलम स्तर पर समितियां बनाईं लेकिन वह कहीं टिक नहीं पाईं। न तो ये समितियां पार्टी की बात असरदार तरीके से मतदाताओं तक पहुंचा पाईं और न ही जनता की नब्ज को टटोलने में सफल हुईं।
जबकि, चुनाव का पूरा दारोमदार ही इन पर था। वहीं, युवा कांग्रेस को एक बूथ-दस यूथ बनाने का जो लक्ष्य दिया गया था, उस पर काम भी रस्मी ही रहा। प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में समितियां बनाईं। स्वयं इनकी निगरानी की और दौरों के समय पहले इन्हीं इकाइयों की बैठक की। प्रयास यही था कि संगठन को इतना मजबूत बना दिया जाए कि प्रत्याशी कोई भी हो, उसका कोई प्रभाव न पड़े पर यह प्रयोग कारगर नहीं हुआ। इसके समानांतर युवा कांग्रेस को प्रत्येक बूथ-दस यूथ की टीम तैयार करने का लक्ष्य दिया गया जो विधानसभा सीटों तक पहुंच ही नहीं पाया।
कांग्रेस का प्रचार नकारात्मक ज्यादा
लगभग सभी विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस का प्रचार नकारात्मक ज्यादा रहा। भाजपा ने रणनीति यह रखी कि वह विकास कार्यों, लाड़ली बहना जैसी योजनाओं और प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता पर ही केंद्रित रही। आरोप-प्रत्यारोप से पार्टी ने दूरी बनाकर रखी। इसका जबरदस्त फायदा मिला।









