गुजरात के ‘फार्मूले’ ने MP के कई विधायकों की नींद उडाईं

40 ‘ के टिकट काटकर 86 प्रतिशत सीटें जीत ली….
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शैलेष व्यासगुजरात में ऐतिहासिक जीत ने मध्यप्रदेश 2023 में विधानसभा का चुनाव लडऩे का सपना देखने वाले कई भाजपा विधायकों की नींद उड़ा दी है।
गुजरात में पार्टी ने 40 प्रतिशत के टिकट काटकर 86प्रतिशत सीटें जीत ली। गुजरात का यह ‘फार्मूला’ भाजपा ने मप्र में लागू कर दिया तो अनेक विधायकों और मंत्रियों को घर बैठना पड़ सकता है।
दरअसल भाजपा ने गुजरात में 2017 में चुनाव जीतकर आने वाले 38 विधायकों को हाल के विधानसभा चुनाव में मौका नहीं दिया और नए चेहरे मैदान में उतारे थे। पार्टी ने विधायक बदलने का यह ‘फार्मूला’ 2017 के चुनाव में भी लगाया था, लेकिन कम विधायकों के ही टिकट काटे थे।
पर 2022 के चुनाव में ‘फार्मूला’ पूरी ताकत से लागू कर कई दिग्गज-कद्दावर नेता यहां तक की पूर्व मुख्यमंत्री-मंत्री को टिकट नहीं दिया। उल्टे उनसे यह लिखित में लिया की वे चुनाव लडऩा नहीं चाहते ताकि पार्टी विरोधी बयान-काम नही कर सकें।
बहरहाल 2023 में मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव है और गुजरात ‘फार्मूले’ ने कई विधायकों को विचलित कर दिया है। गुजरात में टिकट काटने के मसले पर क्षेत्र प्रदर्शन, आयु के पैमाने के साथ अहम मानदंड ‘भ्रष्टाचार’ यानि साफ ‘छवि’ को भी रखा गया। चुनाव जीतने का गुजरात ‘फार्मूले’ अगर ‘मॉडल’ बनाकर मध्यप्रदेश में लागू कर दिया, तो कई विधायक-मंत्रियों के टिकट पर ‘तलवार’ लटकती नजर आ रही है।
गुजरात में डेरा डालकर पर्दे के पीछे सक्रिय रणनीतिकार के अनुसार भाजपा चरणबद्ध तरीके से बीते समय के चेहरों को अलग-थलग करना चाहती है, इसलिए वो नए चेहरों को ला रही है ताकि उन पर नियंत्रण रखा जा सके। 27 सालों के शासनकाल को देखते हुए भाजपा कुछ नया करना चाहती थी ताकि मतदाताओं को नए तरीके से लुभा सके।
इससे पार्टी को अगर कोई सत्ता विरोधी लहर है तो उससे निपटने में कामयाबी हासिल होगी, साथ ही युवाओं को आगे लाने से संगठन में नया जोश पैदा होगा। इसमें भाजपा को भारी सफलता भी मिली है। उम्मीदवारी तय करने में संगठन ने जिन बातों का ध्यान रखा उनमें एक है उम्र।
अधिकांश प्रत्याशी 40 से 55 वर्ष के बीच के थे।कई 40 से कम उम्र के और इनमें सबसे छोटे 29 वर्षीय प्रत्याशी थे। बहुत से ऐसे विधायक थे, जो 1990 या उससे पहले से ही चुनाव लड़ते आ रहे थे। उनकी जगह नए चेहरों को लाया गया।
इसमें शक नहीं कि विधायकों के काम का आकलन किया गया और जिसने अपने विधानसभा क्षेत्र में जितना काम किया उसी के हिसाब से उम्मीदवारी तय की गई। इसके साथ पार्टी ने ‘भ्रष्टाचार’ के मसले को भी नजरअंदाज नहीं किया।
जिससे कि काम न करने वाले विधायकों के खिलाफ आक्रोश को कम किया जा सके। जिनकी भाजपा के मातृ संगठन और उसके संबंद्ध पदाधिकारियों से पटरी नहीं बैठ रही थी उनके भी टिकट काट दिए गए। ऐसे में टिकट उसे ही दिया गया, जो मातृ संगठन की नीति और योजना से काम कर रहा था। जिसमें चुनाव जीतने की क्षमता थी और उसने अपने क्षेत्र में काम भी किया।