जानिए कब है ऋषि पंचमी व्रत, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, कथा और महत्व

हिंदू धर्म में व्रत व्यक्ति को पाप कर्मों से मुक्ति दिलाते हैं. ऐसा ही एक व्रत है ऋषि पंचमी. ये पर्व मुख्य रूप से महिलाओं का माना जाता है. धर्म ग्रंथों के अनुसार जो महिलाएं इस दिन व्रत रखकर पूजा करती हैं उन्हें अटल सौभाग्य की प्राप्ति होती है. जाने-अनजाने में हुए पाप नष्ट हो जाते हैं. ऋषि पंचमी का दिन देवी-देवता नहीं बल्कि सप्त ऋषियों को समर्पित है. आइए जानते हैं ऋषि पंचमी की डेट, मुहूर्त और महत्व.

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ऋषि पंचमी तिथि 2023 

भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि यानी ऋषि पंचमी 20 सितंबर 2023, बुधवार को मनाई जाएगी. ये पर्व गणेश चतुर्थी के एक दिन बाद मनाया जाता है. ऋषि पंचमी पर महिलाएं गंगा स्नान करें तो इसका फल कई गुना बढ़ जाता है. इस दिन ऋषि मुनि वशिष्ठ, कश्यप, विश्वामित्र, जमदग्नि, अत्रि, गौतम और भारद्वाज ऋषि की पूजा होती है.

ऋषि पंचमी 2023 मुहूर्त 

इस साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि 19 सितंबर 2023 को दोपहर 01 बजकर 43 मिनट पर शुरू होगी और 20 सितंबर 2023 को दोपहर 02 बजकर 16 मिनट पर इसका समापन होगा.

सप्त ऋषियों की पूजा का समय – सुबह 11.01 – दोपहर 01.28
अवघि – 2 घंटे 27 मिनट

महिलाओं के लिए क्यों खास है ऋषि पंचमी 

पौराणिक मान्यता के अनुसार स्त्रियों को रजस्वला में धार्मिक कार्य, घर के कार्य करने की मनाई होती है. ऐसे में इस दौरान अगर गलती से पूजा-पाठ की सामग्री को स्पर्श कर लें या फिर ऐसे धर्म-कर्म के काम में जाने-अनजाने कोई गलती हो जाए, तो इस व्रत के प्रभाव से स्त्रियां दोष मुक्ति हो जाती हैं. ये व्रत मासिक धर्म में हुई गलतियों के प्रायश्चित के रूप में किया जाता है. इसे हर वर्ग की महिला कर सकती है.

ऋषि पंचमी की पूजा विधि

इस दिन महिलाएं घर आदि को साफ-सुथरा करके स्नान आदि करके साथ वस्त्र धारण करना चाहिए. उसके बाद एक चौकी पर हल्दी, कुमकुम आदि से चौकोर मंडल बनाकर सप्तऋषि की स्थापना करे. स्थापना करने के बाद पंचामृत और जल अर्पित करे . उसके बाद चंदन से तिलक लगाएं.इसके साथ ही फूल, माला चढ़ा दें. इसके बाद वस्त्र के साथ जनेऊ चढ़ा दें. इसके बाद सप्तऋषि को शुद्ध फलों के साथ मिठाई का भोग लगा लें.भोग लगाने के बाद धूप, दीप जलाकर आरती कर लें. इसके साथ ही ऋषि पंचमी की व्रत कथा पढ़ लें. अंत में भूल चूक की माफी मांग कर सभी को प्रसाद वितरण कर लें. पूरे दिन फलाहारी रहकर सप्तऋषियों की विधिवत पूजा करें.

ऋषि पंचमी का मंत्र 

कश्यपोत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोय गौतम:।

जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषय: स्मृता:।।

गृह्णन्त्वर्ध्य मया दत्तं तुष्टा भवत मे सदा।।

ऋषि पंचमी व्रत कथा

एक बार एक राज्य में उत्तक नाम का ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ रहता था। इनके परिवार में एक बेटा और एक बेटी थी। ब्राह्मण ने अपनी बेटी का विवाह एक अच्छे और प्रतिष्ठित ब्राह्मण परिवार में किया। लेकिन जैसे – जैसे समय बीतता गया, लड़की के पति की अकाल मृत्यु हो जाती है और वह विधवा हो गई, और इस कारण अपके पिता के घर लौट गई। ठीक बीच में लड़की के पूरे शरीर पर कीड़े लग गए। उसके संक्रमित शरीर को देखने के बाद, वे दु:ख से व्यथित हो गए और अपनी बेटी को उत्तक ऋषि के पास यह जानने के लिए लेकर गए कि उनकी बेटी को क्या हुआ है।

उत्तक ऋषि ने उन्हें बताया कि कैसे उसने फिर से एक मनुष्य के रूप में पुनर्जन्म कैसे लिया। उन्होंने कन्या को पिछले जीवन के बारे में सब कुछ बताया। ऋषि ने अपने माता – पिता को लड़की के पहले जन्म के विवरण के बारे में बताया। और कहा कि कन्या पिछले जन्म में मनुष्य थी। उन्होंने आगे कहा रजस्वला – महावारी होने के बाद भी उसने घर के बर्तन आदि को छुआ था जिसके कारण उसे इन सभी पीड़ाओं का सामना करना पड़ रहा है। अनजाने में किए गए इस पाप के कारण उसके पूरे शरीर पर कीड़े पड़ गए।

प्राचीन ग्रंथों के अनुसार एक लड़की या महिला अपने मासिक धर्म (रजस्वला या महावारी) पर पूजा का हिस्सा नहीं बन सकती। लेकिन उसने इस पर ध्यान नहीं दिया और उसे किसी भी तरह इसकी सजा भुगतनी पड़ी।

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