झूला-चकरी की हड़ताल से कार्तिक मेले का रंग फीका

श्रद्धालुओं ने पुण्य तो कमाया पर आनंद से वंचित
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!
उज्जैन। इस हाइटेक युग में मनोरंजन के तमाम साधनों के बीच मेले का अपना एक अलग ही परंपरागत महत्व है और आनंद है। कार्तिक माह में नगर निगम की ओर से प्रति वर्ष मेले का आयोजन किया जाता हैं और इसमें मनोरंजन के खास साधन झूले-चकरी का आनंद लेने के लिए बड़ी संख्या में लोग पहुंचते है लेकिन इस बार मेले के पहले ही दिन बाहर से आने वाले लोग झूले-चकरी के आनंद से वंचित हो गए। दरअसल, नगर निगम के नियमों के विरोध में झूले-चकरी वालों ने हड़ताल कर रखी है और अपने उपकरण नहीं लगाए है।
कार्तिक मेले में लगने वाले झूले-चकरी के लिए अभी तक स्थान आरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं हुई है। उपकरणों के आकार के आधार पर जमीन दी जाती थी और प्रतिमाह के मान से इसका शुल्क भी लिया जाता था, लेकिन इस बार नगर निगम ने झूले-चकरी वालों के लिए ऑफर बीड आमंत्रित किए है। इसमें ९ वर्गमीटर का प्रति ब्लाक तय कर 6000 रुपए न्यूनतम ऑफर राशि रखी गई है। इसके अलावा 10 प्रतिशत अमानत राशि जमा करवाने की थी अनिवार्यता है। झूले-चकरी संचालक इसका विरोध कर रहे हैं।
झूला संचालकों ने अपने उपकरण तो पहुंंचा दिए है लेकिन उन्हें स्थापित नहीं किया है। ऐसी स्थिति में कार्तिक पूर्णिमा के पूर्व और माह के दौरान क्षिप्रा स्नान, देव दर्शन के लिए आने वाले हजारों श्रद्धालुओं झूले-चकीर के आनंद से वंचित होते नजर आ रहे है। झूला संचालक खेमचंद जैन का कहना है कि वे वर्षों से झूला लगा रहे है लेकिन हमेशा जमीन झूले के आकार के हिसाब से दी जाती है। इस बार ब्लाक बनाकर जमीन देने से झूले लगाने में दिक्कत होगी। एक अन्य झूला संचालक अब्दुल हमीद जैदी ने बताया कि झूला संचालक वर्षों से अमानत राशि जमा करा रहे है लेकिन निगम लौटाता ही नहीं है। इस बार तो खर्च की 10 प्रतिशत राशि मांगी जा रही है जो हर झूला संचालक के बस में नहीं है।










