टीनएज बच्चों की परवरिश में रखे इन बातों का ध्यान

टीनएज उम्र का वह पड़ाव है, जिसमें मानसिक, शारीरिक और सोशल कई तरह के बदलाव होते हैं. एक ओर जहां इस उम्र में बच्चे को सफलता के नए रास्ते मिलते हैं, वहीं यह उम्र बिगड़ने के लिए भी जिम्मेदार है. इस नाजुक उम्र में बच्चे को संभालने के लिए एक दोस्त जरूरी होता है. जी हां, एक ऐसा दोस्त जिससे बच्चा अपनी हर बात व इमोशंस शेयर कर सके. बच्चा ज्यादातर समय अपने पैरेंट्स के साथ रहता है. इसलिए जरूरी है कि पैरेंट्स और टीनएजर के बीच ऐसा संबंध हो जिससे उसे किसी अन्य दोस्त की जरूरत ही न पड़े. इस उम्र में दोस्त की अहमियत शायद पैरेंट्स से अधिक होती है.

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ऐसे करें टीनएजर बच्चों से दोस्ती की शुरुआत

साथ में थोड़ा वक्त बिताएं

टीनएज बच्चों के साथ थोड़ा वक्त बिताएं। उनसे दिनभर के बारे में जाने। इससे ना सिर्फ आपका रिश्ता मजबूत होगा बल्कि वो आपसे दोस्त की तरह हर बात भी शेयर करेंगे।

कम बोलें और ज्यादा सुनें

हर समय उपदेश के मूड में न रहें

टीनएज में बच्चे थोड़े सेंसटिव होते हैं। ऐसे में उन्हें हर वक्त सिर्फ लैकचर ना दें। हर वक्त उपदेश सुन-सुनकर बच्चे चिड़चिड़े हो जाते हैं। बच्चों के नजरिए से देखने की कोशिश करें।

बच्चों पर नजर रखें लेकिन आजादी भी दें

बच्चों पर नजर रखना और ध्यान देना दोनों अलग-अलग बातें है। उनपर ध्यान रखें लेकिन उनके खुलकर जीने की आजादी भी दें। हालांकि इसका मतलब यह नहीं कि वो अपनी मनमानी कर सकते हैं। उन्हें बताए कि क्या सही है और क्या गलत।

ईमानदारी से करें तारीफ व मोटिवेशन

अक्सर पेरेंट्स अपने बच्चों की तुलना दूसरे बच्चों से करते रहते हैं जबकि ऐसा करना गलत है। अगर आपका बच्चा कोई अच्छा काम कर रहा है तो ईमानदारी से उसकी तारीफ भी करें।

बच्चों को डांटे नहीं

कई बार बच्चों के पढ़ाई पर ध्यान न देने या कोई गलत काम करने पर आप उन्हें डांट देते है, जिससे कि बच्चें उन्हें नैगिटिव तरीके से ले लेते है इसलिए कभी भी उन्हें डांटे नहीं बल्कि प्यार से समझाए।

खुद की परेशानियों को भी करें शेयर

आप खुद की परेशानियों को बच्चों के साथ शेयर करें, इससे आपका भी मन हल्का होगा और आपके बच्चे का भी भरोसा आप पर बनेगा। इससे वो भी अपनी सारी दिक्कतों को सबसे पहले आपसे शेयर करेगा।

सही और गलत में फर्क समझाए

बच्चों को सही और गलत का फर्क नहीं पता होता है। यही कारण है कि वह कुछ भी बोलते हैं। जब बच्चा कोई गलत बात कहे तो उसे डांटने के बजाय उसे फनी तरीके से ट्रीट करें। फिर कोई उदाहरण देकर या बच्चों के सामने विकल्प रखकर उन्हें सही और गलत के बीच का फर्क बताएं।

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