फसल अवशेष जलाने की समस्या से ऐसे पाएं छुटकारा

By AV NEWS

फसल अवशेष जलाने की समस्या अब एक राज्य की नहीं रही है। ऐसा कई राज्यों के किसान कर रहे हैं। हालांकि कृषि विभाग की ओर से किसानों को फसल अवशेष जलाने से रोकने के लिए काफी प्रयास किए जा रहे हैं। इसके बाद भी फसल अवशेषों को जलाने की घटनाएं नहीं रूक पा रहीं है । इस समय कई राज्यों में गेहूं की कटाई चल रही है। कटाई पूरी होने के बाद फसल अवशेष की समस्या किसानों के समाने फिर खड़ी हो जाएगी और अगली फसल की बुवाई समय पर करने के लिए किसान को खेत से ये अवशेष हटाने होंगे। इसके चलते किसान भाई खेत खाली करने की जल्दी में फसल अवशेष को खेतों में जलाना शुरू कर देंगे। पर किसान भाइयों को यह समझना चाहिए कि फसल अवशेष को खेतों में जलाने से खेत तो खाली हो जाता है पर मिट्टी के पोषक तत्व खत्म होने लगते हैं। आज हम किसान भाइयों को फसल अवशेष प्रबंधन के बारें में बताएंगे कि वे किस तरह से इसका प्रबंधन करें जिससे उन्हें फसल अवशेष को जलाने की समस्या से छुटकारा मिलने के साथ उन्हें इसका लाभ मिल सके।

क्या है फसल अवशेष 

फसल अवशेष पौधे का वह भाग होता है जो फसल की कटाई और गहाई के बाद खेत में छोड़ दिया जाता है। भूसा, तना, डंठल, पत्ते व छिलके आदि फसल अवशेष कहलाते हैं। सरसों, गेहूं, धान, ग्वार, मूंग, बाजरा, गन्ना व अन्य दूसरी फसलों से काफी मात्रा में फसल अवशेष मिलते हैं। सबसे ज्यादा फसल अवशेष अनाज वाली फसलों में तथा सबसे कम अवशेष दलहनी फसलों से मिलते हैं।

खरीफ सीजन में 500 लाख टन फसल अवशेष का उत्पादन होता है। फसल के अवशेषों का सिर्फ 22 प्रतिशत ही इस्तेमाल होता है, बाकी को जला दिया जाता है।

फसलों की कटाई के मौसम में फसल अवशेषों को जलाने तथा इसके मानव स्वास्थ्य पर हो रहे दुष्प्रभाव की खबरें प्राय अखबारों की सुर्खियां बनी रहती है।  वास्तव में ये एक गंभीर समस्या है जिसके लिए बहुत हद खेती की परंपरागत शैली जिम्मेदार है। आपको इस बात की बानगी देखनी है तो पंजाब के गांवों की ओर रूख करना होगा। जहां पर फसल की कटाई के बाद बचे अवशेष जलाने से हवा में लगातार जहर घुल रहा है।

फसल अवशेष जलाने के दुष्प्रभाव:-

  • फसल अवशेष जलाने से बढ़ रहा ग्लोबल वार्मिंग- अवशेषों के जलने से ग्लोबल वार्मिंग के खतरे को बल मिलता है। फसल अवशेष जलाने से ग्रीन हाउस प्रभाव पैदा करने वाली व अन्य हानिकारक गैसों जैसे मीथेन कार्बन मोनो आक्साइड नाइट्रस आक्साइड और नाइट्रोजन के अन्य आक्साइड के उत्सर्जन होता है।
  • मृदा के भौतिक गुणों पर प्रभाव-फसल अवशेषों को जलाने के कारण मृदा ताप में वृद्धि होती है। जिसके फसलस्वरूप मृदा सतह सख्त हो जाती है एवं मृदा की सघनता में वृद्धि होती है साथ ही मृदा जलधारण क्षमता में कमी आती है तथा मृदा में वायु-संचरण पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
  • मृदा पर्यावरण पर प्रभाव- फसल अवशेषों को जलाने से मृदा में उपस्थित सूक्ष्म जीवों की संख्या पर बुरा प्रभाव पड़ता है और फसल अवशेष जलाए जाने से मिट्टी की सर्वाधिक सक्रिय 15 सेंटीमीटर तक की परत में सभी प्रकार के लाभदायक सूक्ष्म जीवियों का नाश हो जाता है। फसल अवशिष्ट जलाने से केचुएं, मकड़ी जैसे मित्र कीटों की संख्या कम हो जाती है 
  • मृदा में उपस्थित पोषक तत्वों की कमी-  फसल अवशेषों को जलाने के कारण मिट्टी में पाए जाने वाले पोषक तत्व जैसे नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश एवं सल्फर नष्ट हो जाते हैं, इससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति कम हो जाती है। 
  • मृदा में उपलब्ध कार्बनिक पदार्थ में कमी- फसल अवशेष जलाने से मृदा में उपस्थित मुख्य पोषक तत्व नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाश की उपलब्धता में कमी आती है।
  • जानवरों के लिए चारे की कमी-  फसल अवशेषों को पशुओं के लिए सूखे चारे के रूप में प्रयोग किया जाता है अतः फसल अवशेषों को जलाने से पशुओं को चारे की कमी का सामना करना पड़ता है।

फसल अवशेषों को खेत में मिला देने से होने वाले लाभ

  • किसान फसल अवशेषों को रोटावेटर की सहायता से खेत में मिला कर जैविक खेती का लाभ ले सकते हैं।
  • फसल अवशेषों को खेत में ही मिला देने से जैव विविधता बनी रहती है। जमीन में मौजूद मित्र कीट शत्रु कीटों को खा कर नष्ट कर देते हैं। जमीन में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ जाती है, जिस से फसल उत्पादन ज्यादा होता है।
  • दलहनी फसलों के अवशेषों को जमीन में मिलाने से नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे फसल उत्पादन भी बढ़ता है।
  • किसानों द्वारा फसल अवशेष जलाने के बजाय भूसा बना कर रखने पर जहां एक ओर उनके पशुओं के लिए चारा मौजूद होगा, वहीं अतिरिक्त भूसे को बेच कर वे आमदनी भी बढ़ा सकते हैं।

फसल अवशेषों का कैसे करें प्रबंधन

किसानों की सुविधा के लिए वैज्ञानिकों की ओर से कई सुझाव दिए गए हैं ताकि उनको प्रबंधन करने में किसी परेशानी का सामना नहीं करना पड़े। ये सुझाव इस प्रकार हैं-

  • फसल अवशेषों को पशु चारा अथवा औद्योगिक प्रबंधन के लिए एकत्रित किया जा सकता है।
  • धान की पुआल का यूरिया/कैल्शियम हाइड्रोक्सॉइड से उपचार या फिर प्रोटीन द्वारा संवंर्धन कर पशु चारे के रूप में उपयोग किया जा सकता है।
  • खेत में स्ट्रा बेलन मशीन की मदद से फसल अवशेषों का ब्लॉक बनाकर कम जगह में भंडारित करते हुए पशु चारा के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
  • गेहूं के फानों पर रीपर मशीन को चलाकर भूसा बनाया जा सकता है।
  • फसल अवशेषों को मशरूम की खेती में सार्थक प्रयोग किया जाना संभव है।
  • वर्तमान में किसान आग लगाने की बजाय गेहूं की कटाई के बाद खेत में खड़े फानों में किसान जीरो टिलेज मशीन या टर्बो हैप्पी सीडर से मूंग या ढैंचा की बुआई कर फसल अवशेष प्रबंधन कर सकते हैं।

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