कौन है जिम्मेदार..पुलिस, नगर निगम या आरटीओ..?
उज्जैन।शहर के बिगड़े यातायात को सुधारने की जिम्मेदारी हर समय आम नागरिक के सिर डाल दी जाती है। नगर निगम कभी इस बारे में सोचता नहीं है।
यातायात पुलिस केवल चालान बनाकर यातायात सुधरने का रास्ता देखती है। रही बात आरटीओ की,तो स्वयं आरटीओ संतोष मालवीय और उनके स्टॉफ को नहीं पता कि शहर में कितने अवैध वाहन,कौन-कौन से चल रहे हैं। यह कहना हमारा नहीं,सोश्यल मीडिया पर शहरवासियों द्वारा यातायात पर की जा रही टिप्पणियों से निकले निष्कर्ष हैं।
जिम्मेदारों से चर्चा की गई तो यह बात सामने आई….
महापौर मुकेश टटवाल ने कहाकि शहर के यातायात को सुधारने का जिम्मा पुलिस विभाग का है। यदि चौराहों पर सख्ती होगी,तो लोग अनुशासन का पालन करेंगे और वाहन चलाने में सावधानी के साथ गति पर नियंत्रण रखेंगे। केवल चालान बनाने से काम नहीं चलेगा। समझाईश भी देना होगी। यातायात के नियम समझाने होंगे। हमारी ओर से जो जो भी सहयोग चाहिए, हम देने को तैयार हैं।
एसपी सत्येंद्र कुमार शुक्ल ने कहा कि सबसे पहले नगर निगम दो काम कर ले। पहला यह कि चौराहों पर जहां स्वचलित सिग्नल आवश्यक है,वहां सिग्नल लगवाए।
ताकि यातायात व्यवस्था सुचारू चलाने में पुलिस को सहयोग मिले। दूसरा काम प्राथमिकता से यह करे कि शहर के प्रमुख चौराहों,मार्गो पर जहां भी बायीं ओर मोड़ आता है,वहां मुडऩे के लिए पर्याप्त जगह निर्मित करे। ताकि एक ही जगह वाहनों का न तो जाम लगे और न ही यातायात रूकने के कारण प्रदूषण बढ़े। यह दोनों काम केवल नगर निगम कर सकता है।
शहर की खस्ताहाल ट्रैफिक व्यवस्था पर हर जगह आलोचना का शिकार हो रहे आरटीओ मालवीय से सोशल मीडिया पर किए जा रहे हैं यह सवाल-
शहर में कितने चार पहिया,तीन पहिया,दो पहिया वाहन अवैध रूप से चल रहे हैं, क्या वास्तविक संख्या पता है ?
शहर में किसने यात्री बसों को घुसने की परमिशन दी है? क्या परमिट में शहर के भीतर का मार्ग शामिल है?
देवासगेट से अवैध रूप से बगैर अनुमति के यात्री बसों का संचालन हो रहा है,इसे क्यों नहीं रोक पा रहे हैं?
शहर में अवैध रूप से बगैर परमिट के टाटा मैजिक,ऑटो, ई रिक्शा चल रहे हैं? क्या इन्हे जब्त करने की कार्रवाई किसी दबाव में रोकी जा रही है?
शहर में अनफिट कारों का ढेर लग गया है। क्या इन पर कोई कार्रवाई नए वर्ष में संभावित है?