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बाहर से आए श्रद्धालुओंके साथ लूट हो रही है

मंगलनाथ मंदिर दर्शन के लिए गए थे। प्रसाद काउंटर पर 100, 200, 500 और 1 किलो प्रसाद की रेट लिस्ट क्रमश: 50 , 100, 200 और 400 रुपए लगी हुई हैं। रेट लिस्ट पढ़ ही रहे थे कि वहां बैठे सज्जन ने कहा कि कुछ मत देखो, केवल 100 वाले पैकेट ही हैं।

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हमने कहा कि आधा किलो और एक किलो के पैक कब तक आ जाएंगे, तो बोले कि डेढ़ महीने से नहीं आ रहे। इस पर मैंने कहा कि एक किलो लेना है। आप 400 रुपए में 200 ग्राम के 5 पैकेट तो देंगे नहीं। इस तरह तो बाहरी श्रद्धालुओं के साथ लूट हो रही है। जिन्हें अधिक मात्रा में प्रसाद चाहिए उन्हें एक किलो के 500 रुपए देना पड़ रहे हैं। मंदिर प्रशासन और संबंधित कृपया ध्यान दें।

यह पोस्ट उज्जैन वाले ग्रुप पर सुनील दत्त रावल नामक सोशल मीडिया यूजर ने लिखी हैं। उन्होंने महाकाल मंदिर में बिकने वाली लड्डू प्रसादी को लेकर व्यवस्था पर सवाल उठाया है। सोशल मीडिया पर यह मैसेज वायरल हो रहा है और कईं लोगों की प्रतिक्रिया आई हैं।

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आइए पढ़ते हैं लोग क्या प्रतिक्रिया दे रहे हैं।

200 ग्राम 500 रुपए किलो और 500 ग्राम 400 रुपए किलो। ऐसा क्यों? प्रसाद का भाव तो सभी पैकिंग में एक समान ही हैं। 200 ग्राम 400 रुपए का ही देना चाहिए। 100 रुपए किलोग्राम का अंतर साइज के नाम पर गलत है। – चित्रेश मित्तल

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धर्म के नाम पर ठगी कर रहे हैं लोग।-विवेक भारद्वाज

यह बात विचार करने योग्य हैं। प्रशासन ध्यान दें। कमाई पर कम ध्यान दें। मंदिर प्रबंधन समिति श्रद्धालुओं पर भी ध्यान दें। प्रसाद को कमाई का जरिया ना बनाए। प्रसाद तो बल्कि फ्री में देना चाहिए। -शुभम जायसवाल

मुझे लगता है हमें मंदिर जाते समय प्रसाद मार्केट से ही खरीद लेना चाहिए। ताकि ऐसी समस्या का सामना ही ना करना पड़े। – दीपक साहू

कुछ नहीं है सब माल कमाने में लगे हैं। ब्राह्मणों को कोसते हैं सब माल की महिमा है। ५०० में सो बचते हैं सब मिली भगत हैं। सब बराबर माल बन रहा है। कमाई का जरिया है लेकिन सब निकल जाएगा कहीं ना कहीं, आनंद मंगल कर लो अभी। -दिर्लेश व्यास

मंदिर में कर्मचारियों की बहुत बड़ी फौज है। बहुत अच्छा वेतन मिलता है। फिर भी व्यवस्था के नाम पर कोई चीज नहीं दिखती।– राजेंद्र सिंह मीणा

सेवा नहीं कमाई का साधन बना रखा है। -आशीष शिवनारायण राय

100 रुपए में चिरोंजी भी पैकेट में मिल रही है। – राहुल कछवाय

कुछ भी व्यवस्था नहीं है। मंगलनाथ मंदिर पर गवर्नमेंट की तरफ से बस रसीद के नाम पर वसूली की जा रही है। – पं. शुभम जोशी

कलयुग में इन लोगों के लिए भगवान सिर्फ बिजनेस हैं।– शुभम सिंह जादौन

नहीं सुधरना है भाई, ये खुद ही ईश्वर के अवतार हैं। – मुकेश सोलंकी

बिल्कुल प्रसाद लेने की जरूरत नहीं है क्योंकि वह प्रसाद है ही नहीं, मिठाई के डिब्बे हैं जो मिठाई की दुकान पर मिलते हैं। उसमें और इसमें कुछ फर्क नहीं है। ये जो प्रसाद के नाम पर काउंटर पर मिलता है यह बाजार या सांची से खरीदे पेड़े हैं। ना तो इनको विधिवत भगवान के लिए बनाया गया है और ना ही इनका भोग लगाया जाता है। तिरूपति, सांवरिया जी नाथद्वारा इन जगहों पर प्रसाद मंदिर में बनता है भगवान को अर्पित होता है फिर बेचा जाता है। महाकाल और मंगलनाथ सब जगह लचर व्यवस्था है। -प्रदीप तिवारी

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