लंपी वायरस से उज्जैन जिले में अब तक हो चुकी दस गायों की मौत

567 पशु बीमार, परिवहन और हाट बाजार पर लगाई रोक

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उज्जैन।पिछले करीब दो माह से लम्पी वायरस से गायें बीमार हो रही हैं। जिले में अब तक इस बीमारी से 10 गायों की मौत हुई। खाचरौद तहसील में सबसे अधिक गोवंश प्रभावित हुए हैं।

खाचरौद के बाद लंपी वायरस महिदपुर, घट्टिया, तराना तहसील में फैैल गया है। हालांकि अभी उज्जैन तहसील में इसके मामले सामने नहीं आए हैं। प्रशासन ने धारा 144 लगाकर पशुओं के परिवहन और हाट बाजारों पर रोक लगा दी है, वहीं जिला स्तर पर टीमों का गठन किया गया है। टीमें गांवों में भेजी जा रही हैं।

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पशु पालन एवं डेयरी विभाग के उपसंचालक डॉ. एमएल परमार ने चर्चा में बताया कि लंपी वायरस से जिले में अब तक कुल 117 गांव प्रभावित हुए हैं और 10 गायों की मौत हुई हैं। 437 गायें इसी बीमारी से ग्रसित हुई हैं जिसमें से 363 को रिकवर किया गया है।

जिले में खाचरौद में सबसे अधिक पशु प्रभावित हैं। खाचरौद तहसील रतलाम जिले के करीब है और वहां पर सबसे पहले यह बीमारी दिखाई दी थी। पशुओं के आपस में संपर्क में आने से तेजी से फैलती हैं। जिले में खाचरौद के अलावा महिदपुर, तराना, घट्टिया में कुछ पशुओं में इस बीमारी के लक्षण दिखाई दिए हैं। सेम्पल जांच के लिए भोपाल भी भेजे गए।

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डॉ. परमार का कहना है कि इस बीमारी में रिकवरी बेहतर है इसलिए जिले की अन्य तहसीलों में स्थिति गंभीर नहीं हैं। जिले में 25 पशु चिकित्सालय और 30 औषधालय के अलावा अन्य सेंटर भी हैं। यह बीमारी गाय तक ही सीमित है। भैंसों में तो अभी देखने में नहीं आई है। यह जैनेटिक डिसीज है। इसलिए गाय से इंसान में नहीं पहुंचती।

25 हजार से अधिक को लगाए टीके…डॉ. परमार ने बताया कि जिले में गोवंश की कुल संख्या 2  लाख 63 हजार है जिसमें से 25 हजार 443 को टीके लगाए जा चुके हैं। वहीं लगातार टीके लगाने का काम चल रहा है। जो मवेशी पालक सतर्क वे पशु चिकित्सालय में पहुंचकर टीके लगवा रहे हैं। पशु चिकित्सा विभाग की टीमें गोशालाओं में पहुंचकर टीकाकरण कर रही हैं।

जिले में दूध की कमी नहीं

इस बीमारी में गायें खाना पीना छोड़ देती हैं। उनके शरीर पर चकते और गठानें उभर आती हैं। उनकी दूध उत्पादन क्षमता भी कमजोर हो जाती है। बीमारी से ग्रसित पशुओं से अलग रखना बहुत जरूरी हैं। इसके अलावा इसका चारा-पानी भी अलग रखा जाना चाहिए। जहां पर यह बीमारी अधिक हैं वहां पर दूध की कमी आ सकती हैं। हालांकि पशु चिकित्सक बताते हैं कि यह बीमारी भैंसों में नहीं हैं। इसलिए दूध की कमी नहीं दिखाई दे रही हैं।

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