राजधानी से ‘वेट एंड वॉच’ के संकेत
उज्जैन।नगर सरकार का शपथ समारोह। नए महापौर की ताजपोशी। 54 पार्षदों के कार्यारंभ का दिन। शहर के नए प्रथम नागरिक और उनकी टीम से बहुत सारी उम्मीदें। ढेर सारे सपने।
कुछ नया होने की आस। कुछ नया देखने का उत्साह। इन सब के बीच अब शहर की हवाओं में जो सवाल तैर रहा है कि महापौर किस गुट के है? यह स्थिति चुनाव परिणाम आने से लेकर शपथ ग्रहण समारोह तक शहर के कई नेताओं द्वारा मुकेश टटवाल को साथ और करीब रखकर ‘अपना’ बताने के कारण आई है।
हाल के दिनों में कुछ ऐसे प्रसंग सामने आए हैं, जिन्हें देखने और समझने से यही लगता है कि भाजपा में ऐसे नेताओं की लंबी फेहरिस्त जो यह जताने का अवसर हाथ से जाने देना नहीं चाहते हैं कि मुकेश टटवाल उनके साथ है। एक गुट पहले ही दिन से टटवाल के साथ डटा हुआ है।
चुनाव प्रबन्धन से लेकर मैदानी जमावट में भी आगे था। जीत का सेहरा भी इसी गुट के माथे पर बांधा गया। इस गुट के मुखिया भाजपा के वरिष्ठ नेता पारस जैन है।
चुनाव के बीच में उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव का गुट भी टटवाल के लिए दम भरता रहा। सांसद अनिल फिरोजिया के गुट का दावा है कि आरक्षण और जातिगत समीकरण से टटवाल की हमने मदद की। इन सब के बीच मुकेश टटवाल का उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव के काफिले के साथ बाबा साहेब अंबेडकर की जन्म स्थली जाना।
इसके बाद भाजपा के नेता अनिल जैन कालूहेड़ा द्वारा शपथ ग्रहण समारोह को लेकर शहरभर में होर्डिंग्स लगाना आखिर यहीं संदेश दे रहा है कि सभी गुट टटवाल को ‘अपना’ बताने की होड़ में है और यहीं से यह सवाल बन रहा है कि किस गुट के है महापौर?
सतर्क तो रहना होगा
जानकारों का कहना है कि महापौर को कई मामलों में उन लोगो से सतर्क रहना होगा जो कुर्सी पर बैठने से पहले उनकी ‘घेराबंदी’ में जुट गए हंै। उस कॉकस ( गठजोड़) से भी सावधान रहना होगा, जो बेमेल है पर स्वार्थपूर्ति के लिए हमेश एक्टिव रहता है। जो देर सबेर नगर सरकार के मुखिया को घेरेबंदी में ले लेता है।
उस ब्यूरोक्रेसी से सावधान रहना होगा…
जो टटवाल जैसे व्यक्तित्व को शहर के प्रथम नागरिक के रूप में देखना ही नही चाहती थी और न अब हजम कर पा रही है। यह ब्यूरोक्रेसी अब भी चाहती है कि उसका निगम पर भी कब्जा कायम रहे। जैसा पहले बना हुआ है। उन सलाहकारों से भी सावधान रहना जो सलाह के नाम पर अपने एजेंडे सेट करने की मंशा पाले हुए हैं। उन नेताओं से भी सावधान रहना जो आपको अपना ‘शागिर्द’ बनाने पर आमादा है।
निगम में व्याप्त भ्रष्टाचार से भी सावधान रहना। एमआइसी के मुद्दों पर भी सावधान रहना। टेण्डर प्रक्रिया पर होशियार रहना। उन ठेकेदारों से सावधान रहना जो रिश्वत के दम पर निगम को अपनी जेब मे रखने का दावा किये बरसों से निगम में काबिज़ है। महापौर टटवाल को सावधान रहना होगा अपनी मति ओर गति को लेकर।
‘मुकेश’ किस पाले के है
भाजपा सूत्रों का कहना है कि मुकेश टटवाल पार्टी के झंडे तले महापौर तो बने है, पर वे किस पाले के है? शहर के नए महापौर मुकेश टटवाल के लिए ‘राजधानी’ ने वेट एंड वॉच की रणनीति अपनाई है? यानी रुको और इंतजार करो। यह नोबत भाजपा के अलग-अलग गुट द्वारा मुकेश को ‘अपना’ बताने के कारण आई है।
सूत्र बताते हैं कि प्रदेश संगठन-सत्ता ही भांपना चाहती रहा है कि ‘मुकेश’ किस पाले का आदमी है और किस ‘खेमे’ से जुड़कर अपनी पारी खेलेगा? नतीजतन अभी नए नवेले महापौर को ‘छुट्टा छोडऩे’ की रणनीति अपनाई गई है।
सरकार की ‘ब्यूरोक्रेसी’ ने भी इसी आशय की राय जाहिर की। हालांकि सबसे बड़ी बात यह कि नगर निगम फिलहाल अमले की कमी से जूझ रही है।