हिसाब-किताब के चलन से बाहर हो गया बही-खाता केवल शगुन के तौर पर ही खरीद रहे हैं व्यापारी…

80 प्रतिशत तक गिर गया जिल्दसाजों का व्यापार….
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!
उज्जैन। हाईटेक युग में पेपर लेस सिस्टम का का बड़ा असर बही-खाता के उपयोग पर हुआ है। बही-खाता केवल पुष्य नक्षत्र और धनतेरस-दीपावली पर पूजन-शगुन के लिए लिए खरीदा जाता है। हर क्षेत्र में कम्प्यूटर की महत्ता बढ़ी जरूर है लेकिन कम्प्यूटर की तमाम सुविधाओं के बावजूद पुरानी बही खाता प्रणाली की साख आज भी शगुन के तौर पर बरकरार है। छोटे-बड़े व्यापारियों के अलावा बड़े उद्यमी सभी दिवाली पर बहियों का पूजन कर नए खाते की शुरुआत करते है।
सीमित हो गया व्यापार
व्यवसायी अब्दुल अली खान भाई ने बताया कि डिजिटल जमाने के चलते बही-खातों की मांग पहले की तुलना में काफी कम हो गई है। यही वजह है कि उनका व्यवसाय भी पहले से काफी कम हो गया है लेकिन कुछ व्यवसाय अभी भी बही खातों के परंपरागत हिसाब में विश्वास रखते हैं। इसीलिए उनका व्यवसाय धीरे-धीरे चल रहा है और उन्हें परिवार पालने के लिए सीमित ही सही लेकिन आमदनी हो रही है।
एक लिखा…सौ कहा…
कागज पर लिखी हुई हिसाब की विश्वसनीयता इन पंक्तियों से साफ पता चलती है। लिखे हुए हिसाब की विश्वसनीयता की डोर थामे हुए आज के डिजिटल जमाने में भी व्यवसायी बही-खातों के हिसाब की परंपरा को निभा रहे हैं। दीपावली से पूर्व आने वाले पुष्य नक्षत्र को व्यवसायी नए बहीखाते खरीदने की परम्परा का निर्वहन करते है। शहर में पुष्यनक्षत्र पर खूब बहीखातों की बिक्री हुई।
सिर्फ दो ही निर्माता बचे हैं…
व्यापारी अब्दुल हुसैन यूसुफ भाई ने बताया कि एक समय था कि कमरी मार्ग पर जिल्दसाजों के आठ व्यापारी हुआ करते थे। वर्तमान में केवल दो ही रह गए हैं। खाता-बही या लेजर उस मुख्य बही को कहते हैं जिसमें पैसे के लेन-देन का हिसाब रखा जाता है। आजकल यह कम्पयूटर-फाइल के रूप में भी होती है। खाता बही में सभी लेन-देन को खाता के अनुसार लिखा जाता है जिसमें डेबिट और के्रडिट के दो अलग-अलग कॉलम होते हैं।
बही-खाता या पुस्तपालन या बुककीपिंग एक ऐसी पद्धति है जिसमें वित्तीय लेनदेन के आंकड़े शामिल होते है। कभी उज्जैन शहर में इस का निर्माण और कारोबार करने वाले १० से अधिक कागदी (जिल्दसाज) थे और अब सिर्फ दो ही बचे हे,जो यह काम करते हैं।









