होली कब है? जानें पूजा विधि महत्त्व व शुभ मुहूर्त

By AV News

होली का त्योहार दो दिन मनाया जाता है। एक दिन होलिका दहन किया जाता है तो दूसरे दिन रंगवाली होली खेली जाती है। जिसे धुलण्डी के नाम से भी जाना जाता है। ये त्योहार भगवान कृष्ण का प्रिय माना जाता है।

होलिका दहन मुहूर्त –
होलिका दहन होली से एक दिन पहले यानी 13 मार्च गुरुवार किया जाएगा. इस दिन होलिका दहन का शुभ मुहूर्त रात 11 बजकर 26 मिनट से 14 मार्च की मध्यरात्रि 12 बजकर 48 मिनट तक रहेगा.

होलिका दहन का महत्व

होलिका दहन में पूजा-पाठ करने से संतान की प्राप्ति होती है. घर में सुख-शांति बनी रहती है. भद्राकाल में होलिका दहन शुभ नहीं माना गया है, इसलिए भद्रा का खास ध्यान रखना चाहिए. भद्राकाल के समाप्त होने के बाद ही होलिका दहन की पूजा करनी चाहिए, तभी शुभकारी होगा.

होलिका दहन पूजा विधि

होलिका दहन के दौरान एक पेड़ की टहनी को भूमि में स्थापित किया जाता है और उसे चारों ओर से लकड़ियों, कंडों व उपलों से ढक दिया जाता है. शुभ मुहूर्त में इस संरचना में अग्नि प्रज्ज्वलित की जाती है. होलिका दहन रात में किया जाता है. दहन से पहले माता होलिका की पूजा की जाती है. सूर्योदय के समय उठकर स्नान करना चाहिए.

वस्त्र धारण करके होलिका दहन के स्थान पर जाएं. वहां जल, फूल, फल, माला, अक्षत, भोग, गन्ना आदि अर्पित करें. घी का दीपक जलाएं. होलिका के चारों तरफ कच्चा सूत लेकर पांच बार परिक्रमा करें. ऐसा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है. इसमें छेद वाले गोबर के उपले, गेहूं की नई बालियां और उबटन अर्पित किए जाते हैं.

ऐसा विश्वास किया जाता है कि यह अग्नि व्यक्ति को पूरे वर्ष स्वस्थ बनाए रखने में सहायक होती है और नकारात्मक शक्तियों को नष्ट कर देती है. होलिका दहन के बाद राख को घर लाकर तिलक लगाने की भी परंपरा है. कई स्थानों पर इसे छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है.

रंगवाली होली क्यों खेली जाती है

होली पर रंग क्यो खेलते हैं? एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्री कृष्ण सांवले रंग के थे और राधा जी गौर वर्ण की थीं। ऐसे में श्री कृष्ण हमेशा अपनी मां से इस बात की शिकायत किया करते थे कि राधा क्यों इतनी गोरी हैं और हम क्यों काले रंग के है? एक दिन माता यशोदा ने इस बात का जवाब देते हुए अपने पुत्र कृष्ण से कहा कि तुम राधा जी के मुख पर रंग लगा दो जिससे तुम्हरी ये शिकायत दूर हो जाएगी। इस प्रकार माता के कहे अनुसार भगवान कृष्ण ने राधा जी के मुख पर रंग लगा दिया। कहते हैं जिस दिन श्री कृष्ण ने राधा रानी को रंग लगाया उस दिन से होली त्योहार मनाए जाने की परंपरा शुरू हो गई।

होली से जुड़ी कहानी

हिराण्यकश्यप और प्रहलाद की कथा होली की ये कथा सबसे ज्यादा प्रचलित है. दरअसल, हिराण्यकश्यप दैत्यों का राजा था. उसने ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या की और उनसे वरदान पाकर बहुत शक्तिशाली हो गया था. हिराण्यकश्यप जगत के पालनहार भगवान श्री हरि विष्णु से नफरत करता था. वो भगवान विष्णु को अपना सबसे बड़ा शत्रु मानता था. क्योंकि वाराह अवतार में भगवान विष्णु ने उसके भाई हिरण्याक्ष का वध किया था. हिराण्यकश्यप के राज में भगवान विष्णु की पूजा तक वर्जित थी, लेकिन उसका अपना पुत्र प्रहलाद भगवान का परम भक्त था. इसके चलते उसने अपने पुत्र कई यातनाएं दी और मारने के भी कई प्रयास किए. अंत में उसने प्रहलाद को मारने के लिए अपनी बहन होलिका को आदेश दिया कि वो प्रहलाद को अग्नि पर लेकर बैठ जाए. क्योंकि होलिका को ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त था कि अग्नि उसको नहीं जलाएगी, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रहलाद को कुछ नहीं हुआ और होलिका जल गई. तब से ही हर साल फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि पर होलिका दहन किया जाता है.

राधा-कृष्ण की होली होली के त्योहार का संबंध भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी से भी बताया जता है. एक कथा के अनुसार, एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी माता यशोदा से पूछा कि मां राधा इतनी गोरी है. फिर मैं इतना काला क्यों हूं. इस पर माता यशोदा ने मजाक में उनसे ये बात कही की कान्हा तुम जाकर राधा को अपने जैसा रंग लगा दो. फिर क्या था भगवान श्रीकृष्ण पहुंच गए राधा रानी और उनकी सखियों को रंग लगाने. उन्होंने राधा रानी और उनकी सखियों को जमकर रंग लगाया. इस तरह होली मनाने की परंपरा की शुरुआत हो गई.

पूतना वध होली की एक कथा भगवान श्रीकृष्ण और उनके दुराचारी मामा कंस से भी जुड़ी बताई जाती है. दरअसल, कंस के लिए ये भविष्यवाणी की गई थी कि उसकी बहन देवकी के आठवें पुत्र के हाथों उसकी मृत्यु होगी. कंस ने देवकी के सात पुत्रों को तो कारागार में ही मार दिया, लेकिन भगवान श्रीकृष्ण को उनके पिता सुरक्षित गोकुल छोड़ आए. तब कंस से उनको मारने के लिए राक्षसी पूतना को भेजा. पूतना बच्चों को विष पिलाकर मार देती थी, लेकिन भगवान श्रीकृष्ण ने उसे पहचान लिया और उसका वध कर दिया. कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने पूतना का वध फाल्गुन माह की पूर्णिमा के दिन किया था. तब से होली मनाई जाने लगी.

शिव-पार्वती और कामदेव की कथा एक कथा में बताया गया है कि जो संसार की पहली होली थी, वो भगवान भोलेनाथ ने खेली थी. दरअसल, एक बार भगवान कैलाश पर्वत पर साधना में लीन थे. तभी कामदेव ने उनकी साधना भंग कर दी. इसके बाद क्रोधित महादेव ने अपना त्रिनेत्र खोल दिया और कामदेव भस्म गए. इसके बाद कामदेव की पत्नि रती बहुत दुखी हुईं और उन्होंने भगवान से अपने पति को दोबारा जीवन देने की प्रार्थना की. भगवान शिव ने रती की विनती स्वीकार की और कामदेव को फिर जीवित किया. इसी खुशी में उत्सव मनाया गया, जिसमें सभी देवी-देवता शामिल हुए. ये उत्सव फाल्गुन माह की पूर्णिमा के मनाया गया. इसे ही बाद में लोग होली के रूप में मनाने लगे.

राक्षसी धुंधी की कथा एक कथा के अनुसार, एक नगर में पृथु नाम के राजा थे. उनके समय में एक धुंधी नाम की राक्षसी हुआ करती है. कहा जाता है कि वो बच्चों को खाती थी. उसका वध कोई नहीं कर सकता था, लेकिन बच्चे जो शरारत करते थे उससे राक्षसी को खतरा था. इसलिए फाल्गुन माह की पूर्णिमा पर बच्चों ने आग जलाई और राक्षसी पर किचड़ फेंककर शोर मचाया. इससे राक्षसी नगर छोड़कर भाग खड़ी हुई. माना जाता है कि तब से ही हैलिका दहन और धूलिवंदन करने की परंपरा की शुुरुआत हो गई.

Share This Article