80 बरस की तपस्या के बाद मिला पद्माश्री का फल

पद्माश्री पुरस्कार की घोषणा से खुश हैं पं. शर्मा और डॉ. पुरोहित, देरी से मिलने का दोनों को नहीं मलाल

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अक्षरविश्व न्यूज. उज्जैन:लंबे अंतराल के बाद पद्म पुरस्कार की दुनिया में महाकाल नगरी उज्जैन का नाम चमका है। शहर की दो विभूतियों माच गुरु पंडित ओमप्रकाश शर्मा और इतिहासविद डॉ. भगवतीलाल राजपुरोहित को पद्मश्री पुरस्कार देने की घोषणा की गई है। पं.शर्मा ने कहा यह तपस्या का फल है। दोनों ने अक्षरविश्व से कहा निर्णय होने में कोई देरी नहीं हुई, जब जो होना है तभी होता है।

देश के सर्वोच्च पुरस्कार में चौथे क्रम के पद्मश्री पुरस्कार उज्जैन निवासी माच गुरु पंडित शर्मा को 86 वर्ष और इतिहासविद डॉ. पुरोहित को 81 साल की उम्र में दिया जा रहा है। इंदौर रोड पर नानाखेड़ा स्थित अथर्व विहार कॉलोनी निवासी पंडित शर्मा ने कहा गुरुवार शाम जब वे घर पर थे, तभी उन्हें यह सूचना दी गई कि पद्मश्री पुरस्कार के लिए उनका चयन किया गया है। उन्होंने कहा यह तपस्या का फल है। इसे पाकर वे।प्रसन्न होंगे। जब उनसे पूछा गया कि इस निर्णय में देरी तो नहीं हुई, वे बोले जब जो काम होना होता है तभी होता है। पंडित शर्मा गायक रविंद्र जैन, अनूप जलोटा, अनुराधा पौड़वाल जैसी हस्तियों के साथ जुगलबंदी कर चुके हैं।

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माच कला के संरक्षक पं. शर्मा

पंडित ओमप्रकाश शर्मा ने अपनी जिंदगी के 70 साल मालवा की 200 साल पुरानी इस पारंपरिक लोक नृत्य नाटिका को दिए हैं। वे माच के उस्ताद कालूराम स्कूल से हैं। उस्ताद कालूराम उनके दादा थे। पंडित ओमप्रकाश शर्मा बचपन से ही माच लोक कला का अभ्यास करते रहे हैं। उज्जैन के 85 वर्षीय ओमप्रकाश शर्मा को केंद्र सरकार ने पद्म श्री सम्मान के लिए चुना है। वे माच और हिंदी रंगमंच के उस्ताद कालूराम शर्मा जी के पौते और पंडित शालिग्राम शर्मा बेटे हैं। पं. शर्मा भारत सरकार के संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, मध्यप्रदेश सरकार के शिखर सम्मान, तुलसी सम्मान सहित कई पुरस्कारों से नवाजे जा चुके हैं। आठ नाटकों का लेखन कर चुके हैं।

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साहित्य साधना चलती रहेगी…

बिलोटीपुरा निवासी डॉ. राजपुरोहित ने कहा पद्मश्री सम्मान मिलना प्रसन्नता की बात है। उन्हें इस बात की खुशी है कि इससे पूरे नगर का नाम रोशन होगा। डॉ.।राजपुरोहित को भी इस बात का मलाल नहीं है कि पुरस्कार के लिए उनका चयन करने में देरी हुई, बोले हर काम का एक समय निर्धारित होता है। उज्जैन में 30 साल से ज्यादा लंबे अंतराल बाद पद्मश्री पुरस्कार देने के मामले में उन्होंने कहा यह शासन की व्यवस्था है।

पुरस्कार के लिए चयन करने की प्रक्रिया है। उन्होंने कहा साहित्य साधना उनकी इसी तरह चलती रहेगी। विक्रमादित्य को सप्रमाण स्थापित करने वाले डॉ. भगवती लाल राजपुरोहित का जन्म धार जिले के चंदोडिय़ा में 2 नवंबर 1943 को हुआ। धार के भगवती लाल राजपुरोहित ने कई किताबें लिखी हैं। इनमें प्रमुख रूप से ‘भारतीय कला और संस्कृति’, ‘भारतीय अभिलेख और इतिहास’, ‘राजा भोज’, ‘भारत के प्राचीन राजवंश’ ‘राजा भोज का रचनाविश्व’, ‘उज्जयिनी और महाकाल’ प्रमुख हैं। उन्होंने मालवी भाषा में ‘सेज को सरोज’ उपन्यास भी लिखा है। कालीदास के मेघदूत का मालवी भाषा में हलकारो बादल नाम से रूपांतरण किया है। डॉ. राजपुरोहित हिंदी, संस्कृत तथा प्राचीन इतिहास में एमए पीएचडी हैं।

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